"द्वयाधारी संख्या पद्धति": अवतरणों में अंतर
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→इतिहास: सबसे पूर्व इस द्वयाधारी पद्धति का वर्णन वेदों में ही प्राप्त होता है । वहाँ भगवान गणेश का एक नाम दिया है "एकदन्त" जिसका अर्थ होता है; एक अर्थात् 1 या माया और दन्त का अर्थ है शून्य(0) या ब्रह्म (god) । एकदन्त अर्थात् शून्य और एक पर आधारित गणितीय विधि । किन्तु वेदों के प्राचीन विद्वानों ने इसे *द्वयंकपद्धति* के नाम से व्यवहार किया था । गोवर्द्धन-मठ पुरीपीठ के 143वें श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी भरती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने अपनी पुस्तक वैदिक गणित में द्वयंकपद्धति के नाम से इसका... टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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== इतिहास ==
सबसे पूर्व इस द्वयाधारी पद्धति का वर्णन वेदों में ही प्राप्त होता है । वहाँ भगवान गणेश का एक नाम दिया है "एकदन्त" जिसका अर्थ होता है; एक अर्थात् 1 या माया और दन्त का अर्थ है शून्य(0) या ब्रह्म (god) । एकदन्त अर्थात् शून्य और एक पर आधारित गणितीय विधि । किन्तु वेदों के प्राचीन विद्वानों ने इसे *द्वयंकपद्धति* के नाम से व्यवहार किया था । गोवर्द्धन-मठ पुरीपीठ के 143वें श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी भरती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने अपनी पुस्तक वैदिक गणित में द्वयंकपद्धति के नाम से इसका उल्लेख किया है ।[[भारत]] के विद्वान [[पिंगल]] (लगभग ५वीं से - २री शती ईसापूर्व) ने [[छन्द|छन्दों]] के वर्णन में द्वयाधारी संख्या पद्धति का अत्यन्त बुद्धिमतापूर्वक प्रयोग किया है। इस प्रकार पिंगल द्वयाधारी संख्या पद्धति का वर्णन करने वाले प्रथम व्यक्ति हैं। वर्त्तमान समय में पुरी के 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी ने भी द्वयंक पद्धति नमक एक पुस्तक लिख कर इसे और अधिक उपयोगी बना दिया है ।
दशमलव पद्धति मानवीय उपयोग के लिये सरल है, इसलिये आरंभिक रूप यही प्रचलित हुई और बाद में भी जब गणना के कई तरीके सामने आए तो दशमलव पद्धति को प्रमुख स्थान मिला था। हालांकि द्वयाधारी भी काफी हद तक एक प्राकृतिक पद्धति है। कई आध्यात्मिक परंपराओं में, जैसे पाइथागोरस स्कूल और प्राचीन भारतीय संत परंपरा में भी इसका प्रयोग होता था। द्वयाधारी पद्धति का आरंभ ईसा पूर्व छठी शताब्दी से माना जाता है। सन् १८५४ में गणितज्ञ जॉर्ज बूल ने द्वयाधारी पद्धति पर आधारित एक पत्र प्रकाशित किया था। इसी के साथ [[बूलीय बीजगणित|बूलियन एलजेब्रा]] (बीजगणित) की आधारशिला पड़ी थी। सन् १९३७ में क्लॉड शैनन ने [[द्वयाधारी बीजगणित]] के आधार पर थ्योरी ऑफ सर्किट की नींव रखी थी। १९४० में बाइनरी कंप्यूटिंग की शुरुआत बैल लैब्स कॉम्प्लेक्स नंबर कंप्यूटर के साथ हुई थी।
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