"सातवाहन": अवतरणों में अंतर

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हाल के प्रधान सेनापति विजयानन्द ने अपने स्वामी के आदेशानुसार [[श्रीलंका]] पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस विजय अभियान से वापिस लौटते समय वह कुछ समय के लिये सप्त गोदावरी भीमम् नामक स्थान पर रूका। वहाँ विजयानन्द ने श्रीलंका के राजा की अति रूपवान पुत्री लीलावती की चर्चा सुनी जिसका वर्णन उसने अपने राजा हाल से किया। हाल ने प्रयास कर लीलावती से विवाह कर लिया। किवदंती है कि हाल ने पूर्वी दक्कन में कुछ सैनिक अभियान किये परन्तु साक्ष्यों के अभाव में अधिकतर विद्वान इसे गलत मानते हैं। यद्यपि हाल तक के सातवाहन शासकों के शासनकाल में राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त साहित्यिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक विकास हुआ तथा व्यपार-वाणिज्य शहरों के विकास एवं जलपरिवहन की उन्नति हुई जो कि प्रथम शताब्दी ई0 के दूसरे मुण्डलक अथवा पुरिद्रंसेन के शासन काल में अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गई, तथापि आने वाले लगभग पचास वर्ष सातवाहन साम्राज्य के लिए बड़े ही कठिन साबित हुए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो के [[पश्चिमी क्षत्रप|पश्चिम क्षत्रपों]] के रूप में हुए विदेशी आक्रमण के साथ ही सातवाहन साम्राज्य का पतन होने को है। कुषाण उत्तर-पश्चिम में अपना प्रसार कर रहे थे तथा उनके दबाव में शक तथा पहलाव शासक मध्य तथा पश्चिमी भारत की ओर आकर्षित होकर सातवाहनों से संघर्ष करने को आतुर थे। क्षहरात वंश के पश्चिमी क्षत्रपों ने अपने को पश्चिमा राजपुताना, गुजरात तथा काठियावाड़ में स्थापित कर लिया था। इन शक शासकों ने 35 ई0 से लेकर लगभग 90ई0 तक सातवाहन राज्य पर आक्रमण किये। उन्होंने सातवाहनों से पूर्वी तथा पयिचमा मालवा प्रदेशों को जीता; उत्तरी कोंकण (अपरान्त) उत्तरी महाराष्ट्र, जो कि सातवाहन शक्ति का केन्द्र था तथा बनवासी (वैजयन्ती) तक फैले दक्षिणी महाराष्ट्र पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। क्षहरात वंश का पहला शासक घूमक था जिसकी जानकारी के स्रोत कुछ सिक्कें है जो कि अधिकांशतः गुजरात काठियावाड़ के तटीय प्रदेश तथा यदाकदा मालवा से पाए हैं। घूमक का उत्तराधिकारी नहपान था जिसकी जानकारी हमें उसके बहुसंख्य सिक्कों पर राजा (अथवा राजन्) की उपाधि धारण की है। वहीं शिलालेखों उसकी उपाधि क्षत्रप तथा महाक्षत्रप मिली। नासिक, कारले तथा जुनार (उत्तरी महाराष्ट्र) के उसके शिलालेख; एसके बहुसंख्य सिक्कें तथा उसके जामाता शक अशवदात के द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में दिए गए दान सब के सब ये प्रमाणित करते हैं कि नहपान के समय में क्षहरात वंश का साम्राज्य काफी विस्तुत था तथा उसने सातवाहन शासकों से काफी बड़ा प्रदेश छीन कर ही अपने साम्राज्य को इतना विशाल बनाया था। नहपान तथा उसके जामाता शक अशवदत ने मालवा, नर्मदा घाटी, उत्तरी कोंकण, बरार का पश्चिमा भाग एवं और दक्षिणी महाराष्ट्र को जीतकर पश्चिमी दक्कन में सातवाहन शक्ति को ल्रभ्र उखाड़ फैंका। वे सातवाहन राजा जो नहपान के हाथों पराजित हुए कदाचित सुन्दर शातकर्णी, चकोर शातकर्णी तथा शिवसाती थे जिनका कि कार्यकाल बहुत ही छोटा था (इनमें से पहले दो का शासन काल मात्रा डेढ़ वर्ष था) परन्तु यह परिस्थितियां अधिक समय तक नही चली तथा गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के सातवाहन शासक बनते ही इस क्षहरात-सातवाहन संघर्ष में नया मोड़ आया।
 
== गौतमी पुत्रापुत्र श्री शातकर्णी (70ई0-95ई0)==
लगभग आधी शताब्दी की उठापटक तथा शक शासकों के हाथों मानमर्दन के बाद गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित कर लिया। गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक था जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया अपितु एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की। गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारें में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। कुछ विशेषज्ञों द्वारा गौतमिपुत्र सत्कर्णी को राजा शालीवाहन भी माना जाता है। उन्होंने पूरे भारत को एकजुट कर दिया और विदेशी हमलावरों के खिलाफ बचाया।
उसके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि उसने क्षत्रियों के अहंकार का मान-मर्दन किया। उसका वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शससकों के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी। जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने दुबारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छीने गए प्रदेशों को पुर्नविजित कर लिया। नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गौतमी पुत्र का ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) आदि प्रदेशों पर भी अधिपत्य था। उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में [[मालवा]] तथा [[काठियावाड़]] से लेकर दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] तक तथा पूवै में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था। उसने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए। गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे। इसका प्रमाण हमें टलमी द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है। ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई0 के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ़ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है। यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शातकर्णी के सभी प्रदेशों को उससे [[रूद्रदमन]] ने हथिया लिया। ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करदामक शकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रूद्रदमन द्वारा हथियाए गए अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करने का प्रयास किया।