"रुहेलखण्ड राज्य": अवतरणों में अंतर

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== भूगोल ==
[[गंगा नदी]] के पूर्वी हिस्से की ओर स्थित रुहेलखण्ड का अधिकांश भाग समतल मैदान पर स्थित है, जो अंततः [[अवध]] की ओर बढ़ जाता है। अवध और रुहेलखण्ड के बीच कोई प्राकृतिक बाधा नहीं है और दोनों हिमालय पर्वत श्रृंखला के नीचे की अपनी स्थिति के कारण एक नम जलवायु साझा करते हैं। दोनों ही जगह अपने आसपास के क्षेत्रों की तुलना में अधिक बेहतर वनस्पति है, और उन्हें लकड़ी की अधिक से अधिक बहुतायतता के लिए जाना जाता है। बर्फीले हिमालय पर्वत की चोटी की दृश्यता ने इस क्षेत्र को समग्र रूप से सुखद पहलू दिया।
 
== इतिहास ==
 
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दिल्ली के मुगल शासक कमजोर हो गये तथा अपने राज्य के जमींदारों, जागीरदारों आदि पर उनका नियन्त्रण घटने लगा। उस समय इस क्षेत्र में भी अराजकता फैल गयी तथा यहाँ के जमींदार स्वतन्त्र हो गये। इसी क्रम में, रुहेलखण्ड भी मुगल शासन से स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा, और बरेली रुहेलखण्ड की राजधानी बनी। १७४० में अली मुहम्मद रुहेलखण्ड शासक बने, और उनके शासनकाल में रुहेलखण्ड की राजधानी बरेली से [[आँवला (नगर)|आँवला]] स्थानांतरित की गयी। १७४४ में अली मुहम्मद ने [[कुमाऊँ राज्य|कुमाऊँ]] पर आक्रमण किया, और राजधानी [[अल्मोड़ा]] पर कब्ज़ा कर लिया,<ref name="IGOI pg-4">{{cite web |title=Imperial Gazetteer2 of India, Volume 7, page 4 -- Imperial Gazetteer of India -- Digital South Asia Library |url=https://dsal.uchicago.edu/reference/gazetteer/pager.html?objectid=DS405.1.I34_V07_010.gif |website=dsal.uchicago.edu |accessdate=18 अगस्त 2019}}</ref> और सात महीनों तक उनकी सेना अल्मोड़ा में ही रही। इस समय में उन्होंने वहां के बहुत से मंदिरों को नुकसान भी पहुंचाया। हालाँकि अंततः क्षेत्र के कठोर मौसम से तंग आकर, और कुमाऊँ के राजा द्वारा तीन लाख रुपए के हर्जाने के भुगतान पर, रुहेला सैनिक वापस बरेली लौट गये। इसके दो वर्ष बाद मुग़ल सम्राट [[मुहम्मद शाह (मुग़ल)|मुहम्मद शाह]] ने क्षेत्र पर आक्रमण किया, और अली मुहम्मद को बन्दी बनाकर [[दिल्ली]] ले जाया गया।<ref name="IGOI pg-4" /> एक वर्ष बाद, १९४८ में अली मुहम्मद वहां से रिहा हुए, और वापस आकर फिर रुहेलखण्ड के शासक बने, परन्तु इसके एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी, और उन्हें राजधानी आँवला में दफना दिया गया।<ref name="IGOI pg-4" />
 
[[चित्र:Tomb of Hafiz Rahmat Khan, Bareilly (U.P.). May 1789.jpg|अंगूठाकार|बरेली में स्थित हाफिज रहमत खान का मकबरा, मई १७८९|left]]
अली मुहम्मद के पश्चात उनके पुत्रों के संरक्षक, हाफ़िज़ रहमत खान रुहेलखण्ड के अगले शासक हुए।<ref name="IGOI pg-4" /> इसी समय में [[फर्रुखाबाद]] के नवाब ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया, परन्तु हाफ़िज़ रहमत खान ने उनकी सेना को पराजित कर नवाब को मार दिया।<ref name="IGOI pg-4" /> इसके बाद वह उत्तर की ओर सेना लेकर बढ़े, और [[पीलीभीत]] और [[उधम सिंह नगर जिला|तराई]] पर कब्ज़ा कर लिया।<ref name="IGOI pg-4" /> फर्रुखाबाद के नवाब की मृत्यु के बाद [[अवध]] के वज़ीर [[सफदरजंग]] ने उनकी संपत्ति को लूट लिया, और इसके कारण रुहेलखण्ड और फर्रुखाबाद ने एक साथ संगठित होकर सफदरजंग को हराया, [[इलाहाबाद]] की घेराबन्दी की, और अवध के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।<ref name="IGOI pg-4" /> इसके परिमाणस्वरूप वजीर ने [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] से सहायता मांगी, और उनके साथ मिलकर आँवला के समीप स्थित बिसौली में रुहेलाओं को पराजित किया।<ref name="IGOI pg-4" /> उन्होंने चार महीने तक पहाड़ियों की तलहटी में रुहेलाओं को कैद रखा; लेकिन [[अहमद शाह दुर्रानी]] के आक्रमण के समय उपजे हालातों में दोनों के बीच संधि हो गयी, और हाफिज खान पुनः रुहेलखण्ड के शासक बन गये।<ref name="IGOI pg-4" />
 
१७५४ में जब [[शुजाउद्दौला]] अवध के अगले वज़ीर बने, तो हाफिज भी रुहेलखण्ड की सेना के साथ उन पर आक्रमण करने निकली मुगल सेना में शामिल हो गये, लेकिन वज़ीर ने उन्हें ५ लाख रुपये देकर खरीद लिया।<ref name="IGOI pg-5">{{cite web |title=Imperial Gazetteer2 of India, Volume 7, page 5 -- Imperial Gazetteer of India -- Digital South Asia Library |url=https://dsal.uchicago.edu/reference/gazetteer/pager.html?objectid=DS405.1.I34_V07_011.gif |website=dsal.uchicago.edu |accessdate=18 अगस्त 2019}}</ref> १७६१ में हाफ़िज़ रहमत खान ने [[पानीपत का तृतीय युद्ध|पानीपत के तृतीय युद्ध]] में [[अफ़ग़ानिस्तान]] तथा [[अवध]] के नवाबों का साथ दिया, और उनकी संयुक्त सेनाओं ने मराठों को पराजित कर उत्तर भारत में [[मराठा साम्राज्य]] के विस्तार को अवरुद्ध कर दिया।<ref name="IGOI pg-5" /> अहमद शाह के आगमन, और शुजाउद्दौला के ब्रिटिश सत्ता से संघर्षों का फायदा उठाकर हाफ़िज़ ने उन वर्षों के दौरान [[इटावा]] पर कब्ज़ा किया, और लगातार अपने शहरों को मजबूत करने के साथ-साथ और नए गढ़ों की स्थापना करते रहे।<ref name="IGOI pg-5" /> १७७० में, [[नजीबाबाद]] के रुहेला शासक नजीब-उद-दौला ने [[सिंधिया]] और होल्कर मराठा सेना के साथ आगे बढ़े, और उन्होंने हाफ़िज़ खान को हरा दिया, जिस कारण हाफ़िज़ को अवध के वज़ीर से सहायता मांगनी पड़ी।<ref name="IGOI pg-5" />
 
शुजाउद्दौला ने मराठों को ४० लाख रुपये का भुगतान किया, और वे रुहेलखण्ड से वापस चले गए।<ref name="IGOI pg-5" /> इसके बाद, अवध के नवाब ने हाफ़िज़ खान से इस मदद के लिए भुगतान करने की मांग की। जब हाफ़िज़ उनकी यह मांग पूरी नहीं कर पाए, तो उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर [[वारेन हेस्टिंग्स]] और उनके कमांडर-इन-चीफ, अलेक्जेंडर चैंपियन की सहायता से रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया। १७७४ में दौला और कंपनी की संयुक्त सेना ने हाफ़िज़ को हरा दिया, जो मीराँपुर कटरा में युद्ध में मारे गए, हालाँकि अली मुहम्मद के पुत्र, [[फ़ैजुल्लाह ख़ान]] युद्ध से बचकर भाग गए।<ref name="IGOI pg-5" /> कई वार्ताओं के बाद उन्होंने १७७४ में ही शुजाउद्दौला के साथ एक संधि की, जिसके तहत उन्होंने सालाना १५ लाख रुपये, और [[रामपुर रियासत|९ परगनों]] को अपने शासनाधीन रखा, और शेष रुहेलखण्ड वज़ीर को दे दिया।<ref name="IGOI pg-5" />
 
१७७४ से १८०० तक रुहेलखण्ड प्रांत अवध के नवाब द्वारा शासित था। अवध राज में [[सआदत अली खान द्वितीय|सआदत अली]] को बरेली का गवर्नर नियुक्त किया गया था।<ref name="IGOI pg-5" /> १८०१ तक, ब्रिटिश सेना का समर्थन करने के लिए संधियों के कारण सब्सिडी बकाया हो गई थी। कर्ज चुकाने के लिए, नवाब सआदत अली खान ने १० नवंबर १८०१ को हस्ताक्षरित संधि में रुहेलखण्ड को [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] को सौंप दिया।<ref name="IGOI pg-5" />
 
== जनसांख्यिकी ==