"संवत": अवतरणों में अंतर

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== लोधी संवत ==
[[लोधी संवत]] जिस तहर न्यायप्रिय शासक महाराज [[विक्रमादित्य]] के समय [[विक्रम संवत]] का उल्लेख मिलता है। उसी तरह महाराज विक्रमादित्तय के बाद महाराज ब्रहा्रस्वरुप लोधी के राज्याभिषेक के समय प्रारंभ हुआ था। लोधी संवत का उल्लेख अब से 1832 वर्ष पूर्व (अर्थात 160 ई॰ पु॰) राज सिंहासन पर विराजमान राजा शालिवाहन ने, मैसूर के मुम्मड़े नामक नगर में शिलालेख में उत्कीर्ण कराया था।
 
यह शिलालेख प्राकृत, संस्कृत, पाली तथा तेलगू भाषा में उत्कीर्ण है। इस में महाराज विक्रमादित्य के पश्चात महाराज ब्रहा्रस्रुप लोधी के राज्यारोहरण पर लोधी संवत के उसके राज्य में प्रचलन का वर्णन खुदा हुआ है। लोधी संवत की प्रारंभ तिथि के बारे में विद्वानों के मत अलग-अलग है। पं. काशीलाल जायसवाल, जुगल किशोर मुख्तार, डा॰ हेमन्त जेकोवी इन सभी के मतों का समाधान करते हुए, जार्ज जामान्टियर ने ब्रहा्रस्वरुप लोधी के राज्याभिषेक को ही प्रमाण मानकर लोधी संवत का प्रारंभ काल माना है।
लोधी क्षत्रिय बृहत् इतिहास के लेखक लोधी खेमसिंह वर्मा के मतानुसार, लोधी संवत प्रचलन काल ईस्वी सन की पहली या दूसरी शताब्दी रहा होगा। यहां पर सभी के मतों व समीपवर्तीय संवतों को ध्यान मे रखकर इतिहासकारों के मतानुसार अनुमानित तारीख इस प्रकार है। वीर संवत का प्रचलन 76 ई॰ पू॰ हुआ, तथा विक्रम संवत का प्रचलन 57/58 ई॰ पू॰ हुआ तथा लोधी संवत का प्रचलन इसके बाद हुआ और लोधी संवत के पश्चात शक संवत प्रचलन में आया। जिसका प्रचलन काल सन् 78 ई॰ बताया जाता है। और इन दोनों संवतों के मध्य के समय में विक्रमादित्य के पुत्र चन्द्रसेन व पौत्र शालिवाहन ने शासन किया, क्योंकि शालिवाहन ने ही शकों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में शक संवत चलाया तथा सन् 160 ई॰ में उपयुक्त संवतों का उल्लेख शिलालेखों पर अंकित कराया, जो प्रमाणस्वरुप आज भी देखे जा सकते है। दोनों पीढि़यों का शासन काल 50-60 वर्ष मान लिया जाये और कुछ समय ब्रहा्रस्वरुप लोधी का शासनकाल जोड़कर देखा जाए, तो लोधी संवत का प्रचलनकाल अनुमानित ईस्वी सदी का दूसरा दशक का मध्यान्तरण् रहा होगा।
 
इस हिसाब से सन् 2004 लोधी संवत 1990 हो सकता है। [[बोद्धकाल]] में बौद्ध धर्म की प्रगति व प्रसार और वैदिक धर्म के पतन के कारणों से चिन्तित आर्य ऋषियों ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये समस्त क्षत्रियो राजाओं को आमंत्रित कर आबू पर्वत पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें अनेक राजाओं को यज्ञाग्नि के समक्ष दीक्षित कर उन्हें राजपूत नाम दिया। तभी से अग्निवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई। तभी से यज्ञ में सम्मिलित [[चन्द्रवंशी लोधी क्षत्रियों]] नें बड़ी संख्या में अपने उपनाम के रुप में राजपूत शब्द अपनाया। और वे अपने को लोधी राजपूत कहने लगे। आजकल क्षत्रिय और राजपूत दोनो
 
== इन्हें भी देखें ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/संवत" से प्राप्त