"कबीर": अवतरणों में अंतर

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'''कबीर''' या '''भगत कबीर''' 15वीं सदी के [[भारतीय]] रहस्यवादी कवि और [[संत]] थे। वे [[हिन्दी साहित्य]] के [[भक्तिकाल के कवि|भक्तिकालीन युग]] में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के [[भक्ति आंदोलन]] को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के [[आदि ग्रंथ]] में भी देखने को मिलता है।<ref name=britannicakabir>[http://www.britannica.com/EBchecked/topic/309270/Kabir Kabir] Encyclopædia Britannica (2015)Accessed: July 27, 2015</ref><ref name="Tinker1990">{{cite book|author=Hugh Tinker|title=South Asia: A Short History|url=https://books.google.com/books?id=n5uU2UteUpEC&pg=PA76|accessdate=12 July 2012|year=1990|publisher=University of Hawaii Press|isbn=978-0-8248-1287-4|pages=75–77}}</ref>
 
वे [[हिन्दू धर्म]] व [[इस्लाम]] कों न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाजिक सामाज में फैली कुरीतियोँ,कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।<ref name=britannicakabir/><ref name="GarciaHenderson2002">{{cite book|author1=Carol Henderson Garcia|author2=Carol E. Henderson|title=Culture and Customs of India|url=https://books.google.com/books?id=CaRVePXX6vEC&pg=PA70|accessdate=12 July 2012|year=2002|publisher=Greenwood Publishing Group|isbn=978-0-313-30513-9|pages=70–71}}</ref> उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।<ref name="Tinker1990"/>
 
[[कबीर पंथ]] नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।<ref>David Lorenzen (Editors: Karine Schomer and W. H. McLeod, 1987), The Sants: Studies in a Devotional Tradition of India, Motilal Banarsidass Publishers, {{ISBN|978-81-208-0277-3}}, pages 281–302</ref>
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:"'''काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये''' "
 
कबीर के गुरु के सम्बन्ध में प्रचलित कथन है कि कबीर को उपयुक्त गुरु की तलाश थी। वह वैष्णव संत आचार्य रामानंद को अपना अपना गुरु बनाना चाहते थे लेकिन उन्होंने कबीर को शिष्य बनाने से मना कर दिया लेकिन कबीर ने अपने मन में ठान लिया कि स्वामी रामानंद को ही हर कीमत पर अपना गुरु बनाऊंगा ,इसके लिए कबीर के मन में एक विचार आया कि स्वामी रामानंद जी सुबह चार बजे गंगा स्नान करने जाते हैं उसके पहले ही उनके जाने के मार्ग में सीढ़ियों लेट जाऊंगा और उन्होंने ऐसा ही किया। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियां उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।कबीर के ही शब्दों में-
: '''काशी में परगट भये , रामानंद चेताये'''
 
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== धर्म के प्रति ==
साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे- 'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।'उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुंह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्तिमूर्त्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मसजिदमस्जिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे।
 
वे कभी कहते हैं- <blockquote>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कबीर" से प्राप्त