"सिंधु घाटी सभ्यता": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:IVC Map.png|thumbnail|right|260px|हड़प्पा संस्कृति के स्थल]]
सभ्यता का क्षेत्र संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से अनेक गुना बड़ा और विशाल था।<ref>{{cite web |url= http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B5-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%AE-%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
|title=सरस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता|access-date=[[१५ जनवरी]] [[२००९]]|format=|publisher=इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)|language=}}</ref> इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा [[Www.historyguruji.com|सिन्ध]] में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में मांडा में रावी नदी के तट से लेकर दक्षिण में [[दैमाबाद]] (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में [[बलूचिस्तान]] के [[मकरान]] समुद्र तट के सुत्कागेनडोर पाक के सिंंध प्रांत से लेकर उत्तर पूर्व में आलमगिरपुुुर में हिरण्‍‍य तक [[मेरठ]] और कुरुक्षेत्र तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था (उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में गुजरात के भोगत्रार तक और पश्चिम में अफगानिस्तान के [[सुत्कागेनडोर]] से पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ तक था और इसका क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर था।) इस तरह यह क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान से तो बड़ा है ही, [[प्राचीन मिस्र]] और [[मेसोपोटामिया]] से भी बड़ा है। ईसा पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में संसार भर में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति से बड़ा नहीं था। अब तक [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में इस संस्कृति के कुल 1000स्थलों का पता चल चुका है। इनमें से कुछ आरंभिक अवस्था के हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तरवर्ती अवस्था के।
परिपक्व अवस्था वाले कम जगह ही हैं। इनमें से आधे दर्जनों को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं - [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो (शाब्दिक अर्थ - ''प्रेतों का टीला'')। दोनो ही स्थल वर्तमान [[पाकिस्तान]] में हैं। दोनो एक दूसरे से 483 किमी दूर थे और [[अन्दुस नदी]] द्वारा जुड़े हुए थे। तीसरा नगर मोहें जो दड़ो से 130 किमी दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल पर था तो चौथा नगर [[गुजरात]] के [[खंभात की खाड़ी]] के ऊपर '''[[लोथल]]''' नामक स्थल पर। इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में '''[[कालीबंगा]]''' (शाब्दिक अर्थ -''काले रंग की चूड़ियां'') तथा हरियाणा के [[हिसार जिला|हिसार जिले]] का [[बनावली]]। इन सभी स्थलों पर परिपक्व तथा उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं। सुतकागेंडोर तथा सुरकोतड़ा के समुद्रतटीय नगरों में भी इस संस्कृति की परिपक्व अवस्था दिखाई देती है। इन दोनों की विशेषता है एक एक नगर दुर्ग का होना। उत्तर हड़प्पा अवस्था गुजरात के [[कठियावाड़]] प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी स्थलों पर भी पाई गई है। इस सभ्यता की जानकारी सबसे पहले १८२६ में चार्ल्स मैन को प्राप्त हुई।