"कथासरित्सागर": अवतरणों में अंतर
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== मूल स्रोत ==
कथासरित्सागर गुणाढ्यकृत '''बड्डकहा''' ('''[[बृहत्कथा]]''') पर आधृत है जो [[पैशाची भाषा]] में थी। महाकवि सोमदेव भट्टराव ने स्वयं कथासरित्सागर के आरंभ में कहा है : ''मैं बृहत्कथा के सार का संग्रह कर रहा हूँ।'' बड्डाकहा की रचना गुणाढय ने [[सातवाहन]] राजाओं के शासनकाल में की थी जिनका समय ईसा की प्रथम द्वितीय शती के लगभग माना जाता है। आंध्र-सातवाहनयुग में भारतीय [[व्यापार]] उन्नति के चरम शिखर पर था। स्थल तथा जल मार्गो पर अनेक सार्थवाह नौकाएँ और पोतसमूह दिन-रात चलते थे। अत: व्यापारियों और उनके सहकर्मियों के मनोरंजनार्थ, देश-देशांतर-भ्रमण में प्राप्त अनुभवों के आधार पर अनेक कथाओं की रचना स्वाभाविक थी। गुणाढय ने सार्थो, नाविकों और सांयात्रिक व्यापारियों में प्रचलित विविध कथाओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से गुंफित कर, बड्डकहा के रूप में प्रस्तुत कर दिया था।
मूल बड्डकहा अब प्राप्य नहीं है, परंतु इसके जो दो रूपांतर बने, उनमें चार अब तक प्राप्त हैं। इनमें सबसे पुराना बुधस्वामीकृत '''बृहत्कथा श्लोकसंग्रह''' है। यह संस्कृत में है और इसका प्रणयन, एक मत से, लगभग ईसा की पाँचवीं शती में तथा दूसरे मत से, आठवीं अथवा नवीं शती में हुआ। मूलत: इसमें 28 सर्ग तथा 4,539 श्लोक थे किंतु अब यह खंडश:प्राप्त है। इसके कर्ता बुधस्वामी ने बृहत्कथा को गुप्तकालीन स्वर्णयुग की संस्कृति के अनुरूप ढालने का यत्न किया है। बृहत्कथा श्लोकसंग्रह को विद्धान् बृहत्कथा की [[नेपाली]] वाचना मानते हैं किंतु इसका केवल हस्तलेख ही नेपाल में मिला है, अन्य कोई नेपाली प्रभाव इसमें दिखाई नहीं पड़ता।
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