"खानवा का युद्ध": अवतरणों में अंतर
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'''खानवा का युद्ध''' 16 मार्च 1527 को [[आगरा]] से 35 किमी दूर खानवा गाँव में [[बाबर]] एवं [[मेवाड़]] के [[राणा सांगा
==परिचय==
इस युद्ध के कारणों के विषय में इतिहासकारों के अनेक मत हैं। पहला, चूंकि पानीपत के युद्ध के पूर्व बाबर एवं राणा सांगा में हुए समझौते के तहत इब्राहिम के खिलापफ सांगा को बाबर के सैन्य अभियान में सहायता करनी थी, जिससे राणासांगा बाद में मुकर गये। दूसरा, सांगा बाबर को दिल्ली का बादशाह नहीं मानते थे।इन दोनों कारणों से अलग कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह युद्ध बाबर एवं राणा सांगा की महत्वाकांक्षी योजनाओं का परिणाम था। बाबर सम्पूर्ण भारत को रौंदना चाहता था जबकि राणा सांगा तुर्क-अफगान राज्य के खण्डहरों के अवशेष पर एक हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहता थे, परिणामस्वरूप दोनों सेनाओं के मध्य 17 मार्च, 1527 ई. को खानवा में युद्ध आरम्भ हुआ।
इस युद्ध में राणा सांगा का साथ महमूद लोदी दे रहे थे। युद्ध में राणा के संयुक्त मोर्चे की खबर से बाबर के सौनिकों का मनोबल गिरने लगा। बाबर अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए [[शराब]] पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध् की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली, उसने मुसलमानों से ‘तमगा कर’ न लेने की घोषणा की। तमगा एक प्रकार व्यापारिक [[कर]] था जिसे राज्य द्वारा लगाया जाता था।
कालान्तर में अपने किसी सामन्त द्वारा विष दिये जाने के कारण राणा सांगा की मृत्यु हो गई। खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने ‘ग़ाजी’ की उपाधि धरण की।
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