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शिक्षा देने वाले को '''शिक्षक''' ( अध्यापक ) कहते हैं। दूसरेशिक्षिका शब्दों( मेंअध्यापिका कहें) तोशब्द जो,'शिक्षक' शिष्य( केअध्यापक मन) में सीखने की इच्छा को जो जागृत कर पाते हैं वे ही शिक्षक कहलाते हैं। 'शिक्षक' का स्त्रीलिंग रूप है '''शिक्षिका'''।है। यह एकवचन अथवा बहुवचन दोनों तरह से प्रयुक्त किया जा सकता है।
 
शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जो जागृत कर पाते हैं वे ही शिक्षक कहलाते हैं।
एक शिक्षक का कर्तव्य होता है अपने शिष्य को शिक्षित और संस्कारी बनाना अर्थात उसे सही ज्ञान प्रदान करना। प्राचीन समय में शिक्षक के लिए '''गुरु''' शब्द प्रयुक्त होता था, इस शब्द का प्रभाव ही बड़ा गहरा था और आज भी है। [[प्राचीन भारत|प्राचीन भारतीय]] मान्यताओं के अनुसार '''शिक्षक(गुरु)''' का स्थान भगवान से भी ऊँचा माना जाता है क्योंकि वही हमें सही या गलत के मार्ग का चयन करना सिखाता है।
 
शिक्षक के द्वारा व्यक्ति के भविष्य को बनाया जाता है एवं शिक्षक ही वह सुधार लाने वाला व्यक्ति होता है। [[प्राचीन भारत|प्राचीन भारतीय]] मान्यताओं के अनुसार शिक्षक का स्थान भगवान से भी ऊँचा माना जाता है क्योंकि शिक्षक ही हमें सही या गलत के मार्ग का चयन करना सिखाता है।इस बात को कुछ ऐसे प्रदर्शित किया गया है-गुरु:ब्रह्मा गुरुर् विष्णु: गुरु: देवो महेश्वर: गुरु:साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:। कबीर कहते हैं गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय बलिहारि गुरु आपनो गोविंद दियो बताय।शिक्षक आम तौर से समाज को बुराई से बचाता है और लोगों को एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। इसलिए हम यह कह सकते है कि शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक है।
एक श्लोक जो हमारे देश में गुरु की महिमा का वर्णन करता है इस प्रकार है:-
 
'''शिक्षक एक समाज सुधारक के रूप में-'''
'''ॐ गुरुब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर: !'''
 
'''गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मे श्री गुरवे नमः !!'''
 
अर्थात्, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही देवों के देव शंकर है। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म स्वरुप है, अतः ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
 
 
आदि.. इनके आलावा एक समाज सुधारक के रूप में भी ''शिक्षक अहम भूमिका निभाते हैं। वह समाज को एक नयी दिशा देता है, वहहै।वह चाहे तो हमारे समाज में फैली कई प्रकार की कुरीतियों और ,बुराइयों को मिटा सकता है।''
संत कबीरदास जी ने एक दोहा कहा है जो इस श्लोक का और विस्तार करता है:
 
'''गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांय'''
 
'''बलिहारि गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय'''
 
अर्थात्, मेरे सम्मुख(सामने) गुरु और गोविन्द(परमात्मा) दोनों ही खड़े हैं, मैं किसके पाँव पहले पडूँ, हे गुरुदेव मैं आपका आभारी हूँ की अपने मुझे गोविन्द के दर्शन करने योग्य बनाया अतः मैं पहले आपको वंदन करता हूँ।
 
शिक्षक आम तौर से समाज को बुराई करने से और लोगों को श्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। इसलिए हम यह कह सकते है कि शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक है।
 
'''शिक्षक के कर्तव्यों को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं :'''
 
* व्यक्ति को सही और गलत की पहचान करने योग्य बनाना
* कमजोर व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाना
* व्यक्ति को सत्य के लिये लड़ने और असत्य को हराने के योग्य बनाना
* व्यक्ति को अच्छे कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना
 
आदि.. इनके आलावा एक समाज सुधारक के रूप में भी शिक्षक अहम भूमिका निभाते हैं। वह समाज को एक नयी दिशा देता है, वह चाहे तो समाज में फैली कई प्रकार की कुरीतियों और बुराइयों को मिटा सकता है।
 
प्राचीन काल में शिक्षा का उद्देश्य ‘'''सा विद्या या विमुक्तये’''' रहा है अर्थात् विद्या वही है, जो मुक्ति दिलाए। लेकिन आज शिक्षा का उद्देश्य ‘'''सा विद्या या नियुक्तये’''' हो गया है अर्थात् विद्या वही जो नियुक्ति दिलाए। आज के शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना बहुत ही जरुरी है, अपने शिष्यों के अंदर केवल शब्द '''ज्ञान''' ही नहीं भरना है बल्कि उसे नैतिकता, कर्तव्य परायणता, सजगता का पाठ पढ़ाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
[[श्रेणी:शिक्षा]]
[[श्रेणी:शब्दावली]]