"शिक्षक": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
कुछ परिवर्तन स्वयं के ज्ञान से किये है और कुछ परिवर्तन किसी और से कॉपी किये हैं |
संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) छो Saurabh soni 2406 (Talk) के संपादनों को हटाकर AshokKumarShukl के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=जून 2015}}
शिक्षा देने वाले को '''शिक्षक''' ( अध्यापक ) कहते हैं।
शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जो जागृत कर पाते हैं वे ही शिक्षक कहलाते हैं।
शिक्षक के द्वारा व्यक्ति के भविष्य को बनाया जाता है एवं शिक्षक ही वह सुधार लाने वाला व्यक्ति होता है। [[प्राचीन भारत|प्राचीन भारतीय]] मान्यताओं के अनुसार शिक्षक का स्थान भगवान से भी ऊँचा माना जाता है क्योंकि शिक्षक ही हमें सही या गलत के मार्ग का चयन करना सिखाता है।इस बात को कुछ ऐसे प्रदर्शित किया गया है-गुरु:ब्रह्मा गुरुर् विष्णु: गुरु: देवो महेश्वर: गुरु:साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:। कबीर कहते हैं गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय बलिहारि गुरु आपनो गोविंद दियो बताय।शिक्षक आम तौर से समाज को बुराई से बचाता है और लोगों को एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। इसलिए हम यह कह सकते है कि शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक है।
'''शिक्षक एक समाज सुधारक के रूप में-'''
▲आदि.. इनके आलावा एक समाज सुधारक के रूप में भी शिक्षक अहम भूमिका निभाते हैं। वह समाज को एक नयी दिशा देता है, वह चाहे तो समाज में फैली कई प्रकार की कुरीतियों और बुराइयों को मिटा सकता है।
[[श्रेणी:शिक्षा]]
[[श्रेणी:शब्दावली]]
|