"मोपला विद्रोह": अवतरणों में अंतर

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[[मालाबार]] क्षेत्र में मोपलाओं द्वारा 1922ई. में विद्राह किया गया। प्रारम्भ में यह विद्रोहअंग्रेज़ हुकूमत
और छंद रूप से स्थानीय ज़मींदारों के विरुद्ध था। जिसे बाद अंग्रेज़ो व ज़मींदारों ने हिन्दू मुस्लिम बनाने का प्रयास किया जो कुछ जड़ तक सफल भी हुए, [[महात्मा गाँधी]], [[मौलाना शौकत अली|शौकत अली]], [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]] जैसे नेताओं का सहयोग इस आन्दोलन को प्राप्त था। इस आन्दोलन के मुख्य नेता के रूप में 'अली मुसलियार' चर्चित थे। 15 फ़रवरी, 1922. को सरकार ने निषेधाज्ञा लागू कर ख़िलाफ़त तथा कांग्रेस के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद यह आन्दोलन स्थानीय मोपला नेताओं के हाथ में चला गया। 1922ई. में इस आन्दोलन ने हिन्दू-मुसलमानों के मध्य साम्प्रदायक आन्दोलन का रूप ले लिया, जो कि स्थानीय ज़मींदारों व अंग्रेज़ अफसरों की मिली भगत के कारण ही सम्भव हुआ,इस दंगे में जान माल का बहुत ज़्यादा नुकसान नही हुआ,हालांकि(सावरकर जिन्हें लेकर भारत के लोगो मे काफी मतभेद है)ने इस पर एक उपन्यास भी लिखा है,)जिसमें हजारों हिंदुओ के मारे जाने की बात कही है,
 
 
सच्चाई ये है कि
हजारों निर्दोषों की हत्या, सैंकड़ों स्त्रियों के बलात्कार, संपत्ति, मालमत्ता की लूट और महात्मा गांधी की इन सभी घटनाओं को मूक सहमति!
 
मोपला- सरकारी पाठ्यक्रम में इसे विद्रोह कहा गया, कुछ लेखकों ने इसे दंगा कहा लेकिन प्रामाणिक रूप से कहें तो यह एक नृशंस नरसंहार था।
"मोपला नरसंहार"
केरल मालाबार का रमणीय प्रदेश जहां नांबूद्री/नायर ब्राह्मण रहते थे लेकिन 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में श्रीरंगपटनम के हैदर/टीपू जैसे धर्मांध M की सेनाओं ने बारंबार आक्रमण कर धर्म परिवर्तन का लंबा दौर चलाया, स्थानिको की संपत्ति जमीनें हड़प ली गईं और ब्राह्मणों को खदेड़ दिया गया।
धर्मांधों के बाद आए अंग्रेजों प्रदेशमें शांति स्थापित करने के प्रयास किए और प्रदेश छोड़ गए लोगों को वापसी का मौका मिला लेकिन इस घटनाक्रम के दौरान वहां के मोपला अंग्रेजों और ब्राह्मणों से बदला लेने के मौके तलाशते रहे। मोपलाओं को यह मौका दिया गांधी जी के ख़िलाफत आंदोलन ने…
स्वभावगत यह समुदाय छोटे मोटे दंगों को अंजाम देता रहा लेकिन बड़ा शक्ति-प्रदर्शन करने का दबा हुआ अग्नि अब उबालें मार रहा था। इसी बीच तुर्की खलीफा के लिए चलाए गए ख़िलाफत में गांधीजी ने भारतीय जनता को घसीट दिया। हमेशा की तरह गांधी का यह पांसा भी बुमरेंग साबित होने वाला था।
शुरुआत में शांतिपूर्ण तरीके से चले आंदोलन ने कब हिंसक स्वरूप ले लिया गांधी यह समझने में नाकाम रहे। संचार माध्यमों की अनुपस्थिति में मालाबार के कट्टरपंथियों ने अफवाह फ़ैला दी कि ख़िलाफत सफल रहा है और हिंदूस्थान में निज़ाम ए मुस्तफा स्थापित कर दिया गया है, अब भारत इस्लामी राज्य है।
इस मौके का फायदा उठाते हुए मोपलाओं ने मालाबार के निशस्त्र नांबूद्री नायरों पर हमला कर दिया। फिर से महिलाओं पर बलात्कार, ज़मीन संपत्ति पर कब्जा, धर्म परिवर्तन का वही नृसंश दौर चला। इन घटनाओं के बारे में गांधी पूरी तरह से अवगत थे पर इसे रोकने के लिए उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया।
यहां देखने वाली बात यह है कि चौरीचौरा जैसे इक्का-दुक्का किस्सों पर देशव्यापी आंदोलन समेट लेने वाले गांधी मुंह में मुंग दबाए चुपचाप बैठे रहे। आंदोलन के नेता होने के रूप में भी इस नरसंहार को रोकना गांधी की जिम्मेदारी थी। पर गांधी धृतराष्ट्र बने अपने मानसपुत्रों के कुकर्म देखते रहे।
गांधी चुप थे पर अंग्रेजी सत्ता नहीं, अंग्रेजों ने कड़े कदम उठाते हुए दंगाइयों को कुचला। पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। मृतकों के शवों से कुंए भर दिए गए। महिलाओं की आबरू मजहबी तरीके से उनके परिवारजनों की नजरों के सामने लूटी गई ताकि हिन्दूओं में मुस्लिमो का खौफ बना रहे।
हिन्दू समुदाय के सामने बस दो ही विकल्प बचे थे, आसमांनी पुस्तक चुन कर जान बचाते या शमशीर चुन कर जान गंवाते। मजह्ब नहीं चुनने वाले 15000+ लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। मालाबार तट को अंधकार युग में पहुंचा दिया गया। एक वक्त के साधन संपन्न लोग पलभर में भिखारी बने और सड़क पर आ गए।
कांग्रेस समर्थित ख़िलाफत कमेटी ने मोपलाओं की धर्मांध सेना को "दीन के रक्षक" कहा। गांधी भी मोपलाओं की 'बहादुरी' के गुणगान गाते नहीं थक रहे थे। यह शर्मनाक था। जब गांधी को नरसंहार के बारे में पूछा जाता तो वह इसे छोटी-मोटी घटना बता कर टाल देते।
एक ओर जहां कांग्रेस, गांधी और वामपंथियों ने मोपलाओं का समर्थन किया वहीं बाबू राजेंद्र प्रसाद और डॉ आंबेडकर जैसे नेताओं ने इस घटनाक्रम की घोरतम निंदा की। मालाबार नरसंहार के बाद महामना मालवीय जी जैसे बड़े नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग हो गया।
मालाबार नरसंहार के बाद सावरकर जी की विचारधारा में आमूल परिवर्तन आया। वो काफी व्यथित हुए। वो समझ चुके थे कि इस समुदाय को मुख्य धाराप्रवाह में जोड़ने का प्रयास करना व्यर्थ है।
 
== इन्हें भी देखें==