"तारणपंथ": अवतरणों में अंतर

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==विवरण==
तारण पंथ अर्थात मोक्ष मार्ग। तारणपंथ(मोक्षमार्ग) की स्थापना किसी आचार्यने नहीं तारणकी।स्वयं तरणतरते देवहुए दूसरों ने की थी आचार्यको तारने वाले(तारण -तरण) देवजिनेंद्र केभगवान द्वारा प्रतिरूप होने के कारण यहां पंथ 'तारणपंथ' के नाम से विख्यात हुआ।है। आचार्य प्रवर[[ आचार्य संत तारण तरण देव जी स्वामी]] ने १४ [[ग्रंथों]] की रचना की थी। इनमें सर्वप्रथम 9 ग्रंथो की प्रचलित ज़िनागम सम्मत व्याख्या [[धर्म दिवाकर-ब्र.शीतल प्रसाद जी]] और शेष 5 ग्रंथो की उल्था [[समाज रत्न ब्र.जय सागर जी]] के द्वारा हुई। विद्वत जनों की परंपरा में ब्र.ज्ञानानंद जी के द्वारा कतिपय ग्रंथो की पुनः व्याख्या हुई । तारण पंथी १८ क्रियाओं का पालन करने वालों को कहते हैं। तारण पंथ का अर्थ है-मोक्ष मार्ग।
तारणपंथी मूर्ति पूजा नहीं करते। जितने भी तीर्थंकर परमात्मा हुए हैं उन्होंने अपनी निज आत्मा का ध्यान करते हुए ही मुक्ति श्री को प्राप्त किया है इसलिए इस पंथ में शुद्धात्मा को ही परम देव माना जाता है जैसा कि तीर्थंकर भगवन्तों ने दर्शाया है एवं वह अपने चैत्यालयों में विराजमान शास्त्रों की आराधना करते हैं। इनके यहां आचार्य तारण तरण देव जी द्वारा रचित ग्रंथों के अतिरिक्त <ref>{{cite web|url=http://osho.nl/New-Osho-NL/EnglBooks/BooksIHave.htm |title=Books I have Loved |publisher=Osho.nl |date= |accessdate=१३ दिसम्बर २०१५}}</ref> अन्य दिंगबर जैनाचायों के ग्रंथों की भी मान्यता है। [[आचार्य तारण तरण देव ]] का अध्यात्म का मार्ग विश्व मे विख्यात हैं।