"हापुड़": अवतरणों में अंतर

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चंद्रलोक, आदर्श नगर, शकुन विहार, रघूवीर गंज, ग्रीन वैली, [[रफ़ीक़ नगर]] , [[राजीव विहार]], अर्जुन नगर, किलाकोना, देवलोक, आवास विकास, चमरी, लज्जापुरी, न्यु शिवपुरी , कलेक्टर गंज, गंगानगर, श्रीनगर, रामगंज, पटेल नगर, राधापुरी, सीता गंज, अतरपुरा चौपला आदि।
 
== इन्हें भी देखें ==
== गाँव-सावी -...बल्लभगढ़ के राजा राजा नाहरसिंह (21.4.1823 – 9.1.1858) तेवतिया वंश में नरेश हुआ। सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध, जो अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ा गया, के समय राजा नाहरसिंह की शक्तिशाली सेना ने दिल्ली के दक्षिण तथा पूर्व की ओर से अंग्रेजी सेना को दिल्ली में प्रवेश नहीं होने दिया। अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये. इस पर अंग्रेज सेनापति ने भी कहा “दिल्ली के दक्षिण पूर्वी भाग में राजा नाहरसिंह की जाट सेना के मोर्चे लोहगढ़ हैं, जिनको तोड़ना असम्भव है।” अंग्रेजों ने इस वीर योद्धा राजा नाहरसिंह को धोखे से पकड़ लिया और चांदनी चौक में 9.1.1858 को फांसी पर लटका दिया.[2] ==
 
== बल्लभगढ़ से भटौना आगमन: अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित राज परिवार तथा अन्य देशभक्त तेवतिया जाटों ने एक विशेष रणनीति और समय के अनुसार वहां से हटना ही उचित समझा. यह परिवार काफी बड़ा था इन्हीं में चौधरी चरणसिंह के पितामह बादामसिंह भी थे, जिन्होंने बुलंदशहर जनपद में तेवतिया जाटों द्वारा बसाये गए गांव भटौना में आकर शरण ली. भटौना में जमीन कम थी और शरणार्थी ज्यादा आ गए. धीरे-धीरे वे आसपास के कई गाँवों में फैल गए. भटौना-सावी-नूरपुर आगमन - चौधरी बादामसिंह भी अपने परिवार के साथ हापुड़ के पास सावी गांव में आकर बसे. उन की पांच संताने थी आयुक्रम के अनुसार सर्वश्री 1. लखपत सिंह, 2. बूटा सिंह, 3. गोपाल सिंह, 4. रघुवीर सिंह तथा 5. मीर सिंह. ==
 
== परिवार बड़ा था और आजीविका के साधन कम. अतः नए सिरे से फिर कृषि भूमि तलाशने का कार्य शुरू हुआ. इसी क्रम में यह परिवार सावी से कुछ हटकर हापुड़-बाबूगढ़ के पास नूरपुर गांव आ गया. कुचेसर की कुछ जमीन बटाई पर ले ली और वहीं छप्पर की  बाद में नूरपुर की  में ही सही पर अपनी आयु के 18 बसंत देख  सिंह के पुत्रों ने अपने अथक परिश्रम से असिंचित जमीन को  लहर दौड़ गई जब यहां पहली बार  लखपतसिंह के सबसे छोटे भाई मीर  सुशील समझदार कन्या नेत्रकौर को पत्नी के रूप में  दुलारी बहू नेत्रकोर को  थे.चौधरी मीरसिंह और नेत्रकौर की कड़ी मेहनत खेती में रंग लाई और परिवार संपन्नता और स्मृद्धि की ओर अग्रसर होने लगा. यही वह समय था जब नेत्रकौर की कोख से 23 दिसम्बर 1902 को बालक चरण सिंह ने नूरपुर की मड़ैया में जन्म लिया, जो आगे चलकर भारत के प्रधानमंत्री बने. ==
 
== [पृ.166]: नूरपुर की मढैया को भारत के प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह की जन्मस्थली होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. ==
 
* [[हापुड़ ज़िला]]