"रॉलेट एक्ट": अवतरणों में अंतर

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'' रॉलेट kanun
''(काला कानून प्रस्ताव) मार्च 1919 ('''The Anarchical and Revolutionary Crime Act, 1919''') में [https://historyguruji.com/indian-national-movement/ भारत की ब्रिटिश सरकार] द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था।इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। ‍''
 
[[महात्मा गांधी|गाँधीजी]] ने व्यापक [[हड़ताल]] का आह्वान किया। रोलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय लेवल का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य'और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की और से किया गया था, जिसमें सर डि.इ.वादी, [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]], [[तेज बहादुर सप्रु]], [[श्री निवास शास्त्री]] जैसे नेता शामिल थे।किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर [[होम रूल आन्दोलन|होमरूल लीग]] के सदस्यों का समर्थन मिला था।
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====इतिहास ====
10 दिसम्बर 1917 को '''[https://historyguruji.com/महात्मा-गांधी-और-रौलेट-ऐक रॉलेट एक्ट]''' की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था।
नौकरशाही के दमन चक्र, मध्यादेशराज,युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में सरकार द्वारा कठोरता बरते जाने के कारण अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता में तीव्र असंतोष पनप रहा था। देश भर में उग्रवादी घटनाएं घट रही थीं। इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट लेकर आई।
 
रौलट ऐक्ट से ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाये और बिना दंड दिये जेल में बंद कर सके।
 
रौलट ऐक्ट से कैदी को अदालत में प्रत्यक्ष उपस्थित करने अर्थात् बंदी प्रत्यक्षीकरण का जो कानून ब्रिटेन में नागरिक स्वाधीनताओं की बुनियाद था, उसे भी निलंबित करने का अधिकार सरकार ने प्राप्त कर लिया।
 
रौलट ऐक्ट किसी को बिना मुकदमा चलाये दो वर्षों तक बंदी रखने की व्यास्था के द्वारा युद्ध-काल में नागरिक अधिकारों पर लगाये गये प्रतिबंधों को स्थायी बनाने का एक प्रयास था।
 
रौलट ऐक्ट सरकारी और गैर-सरकारी गोरे जनमत को प्रसन्न करने का भी प्रयास था जो मांटेग्यू द्वारा किये गये उदार वादों एवं द्विशासन की पद्धति से नाराज था।
 
भारतीय राजनीतिक जनमत के सभी स्तरों पर रौलट ऐक्ट के प्रति गहरा असंतोष फैला।
 
अखिल भारतीय सतर पर रौलट ऐक्ट का सार्वजनिक विरोध करने का एक अनूठा और व्यावहारिक ढंग गांधीजी ने सुझाया।
 
[https://historyguruji.com/गांधीजी-सविनय-अवज्ञा-आंद/ गांधीजी] ने 24 फरवरी को एक ‘सत्याग्रह सभा’ का गठन किया।
 
सरकार ने 1916 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था।