"टीपू सुल्तान": अवतरणों में अंतर

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'''[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल टीपू सुलतान]''' का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 (21 मील) किमी उत्तर)मे हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम [[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल हैदर अली]] और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को '''मैसूर के शेर''' के रूप में जाना जाता है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़॰य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। टीपूसुल्तान को एक तरह से दक्षिण भारत का अंबेडकर भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में दलितों, पिछड़ों को उनके सामाजिक अधिकार दिलाया तथा अगड़ो द्वारा हो रहे अत्याचार से मुक्त कराया तथा उन्हें जीने का एक मकसद दिया टीपू सुल्तान महिला सशक्तिकरण के पक्षधर थे उनके शासनकाल में महिलाओं का सम्मान स्थान था किंतु उसके ऊपर एक कलंक भी था,
उसने औरंगजेब की तरह हिंदुओं को तलवार के बल पर मुसलमान बनाया और जिस किसी ने इस्लाम स्वीकारने की मना की उसकी हत्या कर देता था।।<ref>https://jivanihindi.com/tipu-sultan-ki-jivani/टीपू सुलतान की जीवनी</ref>
 
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टीपू का सुसंस्कृत मन था। मोहिबुल हसन के अनुसार, वह बहुमुखी थे और हर तरह के विषयों पर बात कर सकते थे। वह कन्नड़ और हिंदुस्तानी (उर्दू) बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी, लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदीदा विषय थे। कवियों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया, और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने का शौकीन था। वह सुलेख में बहुत रुचि रखते थे, और उनके द्वारा आविष्कृत सुलेख के नियमों पर ""रिसाला डार खत-ए-तर्ज़-ए-मुहम्मदी"" नामक फारसी में एक ग्रंथ मौजूद है। उन्होंने ज़बरजद नामक ज्योतिष पर एक किताब भी लिखी। उनकी लाइब्रेरी की बाध्य पुस्तकें भगवान, मोहम्मद, उनकी बेटी फातिमा और उनके बेटों, हसन और हुसैन के नाम को कवर के मध्य में और चार कोनों पर चार खलीफाओं के नाम के साथ ले जाती हैं। उनकी निजी लाइब्रेरी में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, उर्दू और हिंदी पांडुलिपियों के 2,000 से अधिक संगीत, हदीस, कानून, सूफीवाद, हिंदू धर्म, इतिहास, दर्शन, कविता और गणित से संबंधित हैं।
 
7 दिसंबर, 1782 ई. को '''हैदरअली की कैंसर से''' मृत्यु हो गई और हैदरअली के पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा।
==तृतीय मैसूर युद्ध==
 
अंग्रेजों और टीपू के बीच मार्च, 1784 में शांति-संधि हो गई और दोनों ने एक-दूसरे के जीते हुए सारे प्रदेश लौटा दिये।
 
टीपू सुल्तान का जन्म कर्नाटक के कोलार जिले के ‘'''देवनहल्ली'''’ (यूसुफाबाद) में 20 नवंबर, 1750 को '''फकरुन्निसा''' (फातिमा) से हुआ था। टीपू का पूरा नाम ‘'''सुल्तान फतेह अलीखान शाहाब टीपू’''' था।
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल/ तृतीय मैसूर युद्ध]==
[[File:Tippu's cannon.jpg|thumb|left|1799 में [[श्रीरंगपट्टन]] की लड़ाई में टीपू सुल्तान की सेनाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तोप]]
मंगलोर कि संन्धि से अंग्रेज मैसूर युद्ध का नाटक समाप्त नहीं हो पाया दोनों पक्ष इस सन्धि को चिरस्थाई नहीं मानते थे 1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस भारत का गवर्नर जेनरल बना वह भारतीय राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के मामले में सामर्थ नहीं था लेकिन उस समय कि परिस्थिति को देखते हुए उसे हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि उस समय टिपु सुल्तान उसका शत्रु था इसलिए अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए निजाम के साथ सन्धि कर ली इस पर टिपु ने भी फ्रांसीसियो से मित्रता के लिए हाथ बढ़ाया दोनों दक्षिण में अपना प्रमुख स्थापित करना चाहता था। कार्नवालिस जानता था कि टिपु के साथ उसका युद्ध अनिवार्य है। और इसलिए महान शक्तियों के साथ वह मित्रता स्थापित करना चाहता था। उसने निजाम और मराठों के साथ सन्धि कर टीपू के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा कायम किया और इसके बाद उसने टीपू के खिलाफ युद्ध कि घोषणा कर दी इस तरह तृतीय मैसुर युद्ध प्रारंभ हुआ यह युद्ध दो वर्षों तक चलता रहा प्रारंभ में अंग्रेज असफल रहे लेकिन अन्त में इसकी विजय हुई। मार्च 1792 ई. में श्री रंगापटय कि संन्धि के साथ युद्ध समाप्त हुआ टीपू ने अपने राज्य का आधा हिस्सा और 30 लाख पॉन्ड अंग्रेजों को दिया इसका सबसे बड़ा हिस्सा कृष्ण ता पन्द नदी के बीच का प्रदेश निजाम को मिला।
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कुछ हिस्सा मराठों को भी प्राप्त हुआ जिससे उसकी राज्या की सीमा तंगभद्रा तक चली आई शेष हिस्सों पर अंग्रेजों का अधिकार रहा टीपू सुल्तान ने जायतन के रूप में अपने दो पुगों को भी कार्नवालिस को सुपुर्द किया इस पराजय से टीपु सुल्तान को भारी छति उठानी पड़ी उनका राज्य कम्पनी राज्य से घिर गया तथा समुद्र से उनका सम्पर्क टुट गया। आलोचकों का कहना है कि कार्नवालिस ने इस सन्धि को करने में जल्दबाजी कि और टीपू का पूर्ण निवास नहीं कर के भुल कि अगर वह टीपु की शक्ती को कुचल देता तो भविष्य में चतुर्थ मैसुर युद्ध नहीं होता लेकिन वास्तव में कार्नवालिस ने ऐसा नहीं करके अपनी दूरदर्शता का परिचय दिया था उस समय अंग्रेजी सेना में बिमारी फैली हुई थी और युरोप में इंग्लैड और फ्रांस के बीच युद्ध की संभावना थी ऐसी स्थिति में टीपु फ्रांसिसीयों कि सहायता ले सकते थे अगर सम्पूर्ण राज्य को अंग्रेज ब्रिटिश राज्य में मिला लेता तो मराठे और निजाम भी उससे जलने लगते इसलिए कार्नवालिस का उद्देश्य यह था कि टीपू की शक्ति समाप्त हो जाए और साथ ही साथ कम्पनी के मित्र भी शक्तिशाली नहीं बन सके इसलिए उन्होंने बिना अपने मित्रों को शक्तिशाली बनाये टीपू की शक्ति को कुचलने का प्रयास किया।
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल/ चतुर्थ अंग्रेज मैसूर युद्ध]==
[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल टीपु सुल्तान] इस अपमानजनक सन्धि से काफी दुखी थे और अपनी बदनामी के कारण वह अंग्रेजो को पराजित कर दूर करना चाहता थे प्रकृति ने उन्हें ऐसा मौका भी दिया लेकिन भाग्य ने टीपु का साथ नहीं दिया इस समय इंग्लैण्ड और फ्रांस में युद्ध चल रहा था इस अन्तराष्ट्र परिस्थिति से लाभ उठाने के लिए टीपु ने विभिन्न देशों में अपना राजदुत भेजा फ्रांसिसियों को उसने अपने राज्य में विभिन्न तरह कि सुविधाएं प्रदान कि अपने सैनिक संगठन के उन्होने फ्रांसीसी अफसर न्युक्त किये और उनहोने अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता कि अप्रैल 1798 ई. में कुछ फ्रांसीसी टीपु कि सहायता के लिए पहुँचा फलत: अंग्रेज और टीपु के बीच संघर्ष आवश्यक हो गया। इस समय लार्ड वेलेजली बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया था। उन्होनें टिपु कि शक्ति को कुचलने का निश्चय किया टीपु के विरुद्ध उसने निजाम और मराठों के साथ गठबंधन करने कि चेष्टा कि निजाम को मिलाने में वह सफल हुए लेकिन मराठों ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया 1798 में निजाम के साथ वेलेजली ने सहायक सन्धि कि और यह घोषणा कर दी जीते हुए प्रदेशों में कुछ हिस्सा मराठों को भी दिया जाय पुर्ण तैयारी के साथ वेलेजली ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया इस तरह मैसुर का चौथा युद्ध प्रारंभ हुआ।
 
प्रारंभ से ही टीपु सुल्तान एक अच्छे योध्दा थे। आखिर तक युद्ध करते करते मर गये मैसूर पर अंग्रेजो कि अधिकार हो गया इस् प्रकार 33 वर्ष पुर्व मैसुर में जिस मुस्लिम शक्ति का उदय हुआ था सिर्फ उसका अन्त ही नहीं हुआ बल्कि अंग्रेज मैसुर युद्ध का नाटक ही समाप्त हो गया। मैसुर जो 33 वर्षों से लगातार अंग्रेजों कि प्रगति का शत्रु बना था अब वह अंग्रेजों के अधिकार में आ गया था अंग्रेज और निजाम ने मिल कर मैसुर का बटवारा कर लिया कुछ हिस्सा अंग्रेजों को मिला और कुछ पर निजाम का अधिकार स्वीकार किया गया मराठों को भी उत्तर पश्चिम में कुछ प्रदेश दिये गये लेकिन उसने लेने से इनकार कर दिया बचा हुआ मैसुर राज्य मैसुर के पुराने हिन्दु राजवंश के एक नाबालिग लड़के को दे दिया गया और उसके साथ अंग्रेजों ने एक सन्धि कि इस सन्धि के अनुसार मैसुर की सुरक्षा का भार अंग्रेजों पर आ गया वहाँ ब्रिटिश सेना तैनात किया गया सेना का खर्च मैसुर के राजा ने देना स्वीकार किया। इस नीति से अंग्रेजों को काफी लाभ पहुँचा मैसुर राज्य बिल्कुल छोटा पड़ गया और दुश्मन का अन्त हो गया कम्पनी कि शक्ति में काफी वृद्धि हुई मराठों को मिला हुआ हिस्सा उसने वापस कर दिया फलत: मैसुर चारों ओर से ब्रिटिश राज्य से घिर गया इसका फायदा उन्होनें भविष्य में उठाया जिससे ब्रिटिश शक्ति के विकास में काफी सहायता मिली और एक दिन उसने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया।
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल टीपू सुल्तान की धार्मिक नीति]==
=== मंदिरों को दान ===
टीपू सुल्तान ने हिंदू मन्दिरों को तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुअ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा [[शिवलिंग]] भेंट किया। [[श्रीरंगपट्टण]] के [[श्रीरंगम]](रंगनाथ मन्दिर) को टीपू ने सात [चाँदी] के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया।
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टीपू सुल्तान ने अन्य हिंदू मन्दिरों को भी तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुआ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया।<ref>A. Subbaraya Chetty, 2002, "Tipu's endowments to Hindus" in Habib. 111–115.</ref> मान्यता है कि ये दान हिंदू शासकों के साथ गठबंधन बनाने का एक तरीका थे।<ref>Hasan, Mohibbul (1951), p360, History of Tipu Sultan, Aakar Books, Delhi, ISBN 81-87879-57-2</ref>
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल/ मृत्यु]==
== मृत्यु ==
4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टना में बडी चालाकी से टीपू की अंग्रेजों द्वारा हत्या कर दी गयी। हत्या के बाद उनकी तलवार टीपू के हाथ से छुडाने के लिये बडी मेहमत लगी। उनकी तलवार अंगरेज़ अपने साथ ब्रिटेन ले गए। टीपू की मृत्यू के बाद सारा राज्य अंग्रेज़ों के हाथ आ गया।