"संक्षारण": अवतरणों में अंतर

प्रभावित करने वाले कारक
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सामान्यत: धातुओं की संक्षारण क्रिया में निर्मित होनेवाला अंतिम उत्पाद ऐसा यौगिक होता है जो प्रकृति में खनिज पदार्थ के रूप में पाया जाता है। उदाहरणार्थ, ताँबे के पट्ट को बहुत वर्षों तक आंतरस्थलीय वातावरण में, खुली अवस्था में रखने से पट्ट के ऊपरी तल पर क्षारक सल्फेट की एक परत जर्म जाती है। ताँबे का यह क्षारक सल्फेट प्रकृति में पाए जानेवाले खनिज ब्रोकैटाइट जैसा होता है। इसी प्रकार लोहे अथवा इस्पात के पट्ट को लवणीय जल में पूर्णत: निमज्जित रखने पर वर्षा में उसके तल पर जलयोजित लोह (फेरिक) ऑक्साइड की कठोर परत जम जाती है। जलयोजित फेरिक ऑक्साइड प्रकृति में पाए जानेवाले खनिज गोथइट जैसा होता है। इस प्रकार धातुओं की संक्षारण क्रिया धातुओं के मध्यस्थायी धात्विक अवस्था में स्थायी ऑक्सीकृत अवस्था में प्रत्यावर्तन की क्रिया है। जो धातुएँ प्रकृति में अपने शुद्ध रूप में पाई जाती हैं, जैसे स्वर्ण, उनमें सामान्यत: प्रकृति में उपस्थित कारकों द्वारा संक्षारण क्रिया नहीं होती और इसके फलस्वरूप ही ऐसी धातुएँ असंयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं।
 
== प्रभावित करने वाले कारक ==
== प्रभाव ==
संरचनात्मक आधार पर संक्षारण क्रिया निम्नांकित विभिन्न स्वरूपों में धातुओं पर प्रभाव उत्पन्न करती है :