"औपनिवेशिक भारत": अवतरणों में अंतर

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: फ्रांसीसी उपनिवेश
: डेनमार्क के उपनिवेश
 
भारत बहुत दिनों तक इंग्लैंड का उपनिवेश रहा है। सन 1600 ई में स्थापित यह कम्पनी मुगल शासन उत्तराधिकार बनी। प्रारंभ का उद्देश्य व्यापार करना तथा मुंबई कोलकाता और मद्रास के बंदरगाह से होकर शेष भारत में इसका संपर्क रहता था। धीरे-धीरे कंपनी की प्रादेशिक मौत का अच्छाइच्छा प्रबल होती गई और और शीघ्र विवाह भारत में एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति बन गई थी ।
सन 1773 से 1858 ई. तक का युग ऐसा रहा जिसे हम दोहरी सरकार का काल कहते हैं।कंपनी के साथ साथ ब्रिटिश संसद में भारतीय प्रशासनिक विषयों में अधिक रुचि लेने लगे।बंगाललगे। में दीवानी अधिकार प्राप्त करने के समय से लेकर विषयों में अधिक रुचि लेने लगे।बंगालबंगाल में दीवानी अधिकार प्राप्त करने के समय से लेकर सन अठारह सौ सत्तावन ईसवी तक कंपनी शासन ने अपने आप को एक ऐसा स्थिति में पाया जिसे मुगलकालीन प्रशासन उसके अपने साम्राज्यवादी उद्देश्य के अनुरूप नहीं था और भारत जैसा देश में अंग्रेजी प्रशासन की विशेषताएं उत्पन्न करना एक कठिन कार्य था।सन 18 सो 58 से 1947 तक क्राउन की सरकार ने संवैधानिक सीमा में रहते हुए संसदीय संस्थाओं को विकसित करने का अनेक प्रयत्न किया।जिसके फलस्वरूप भारतीय प्रशासन को भी राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की दृष्टि से एक नया प्रयोग क्षेत्र माना जाने लगा। रेगुलेटिंग एक्ट से प्रारंभ होने वाले संवैधानिक विकास के चरण जिस महत्वपूर्ण बरसों से गुजरे हैं उसमें 1813 1833 1818 1861 1893 1909 1919 और 1935 महत्वपूर्ण हैं।सन 18 सो 58 में क्राउन द्वारा सत्ता हस्त गत कर लिए जाने पर लंदन में गिरी सरकार की स्थापना हुई और महारानी विक्टोरिया ने उदारवादी घोषणा द्वारा अपनी भावी सुधारों की ओर संकेत किया।
1761 के अधिनियम ने भारत के प्रांतीय और कार्यकारिणी को संगठित बनाया तथा इसके द्वारा आधुनिक प्रांतीय विधान मंडलों की नीव पड़ी। 18 सो 58 से 18 से 62 ईसवी तक की उदारवादी मांगों के फल स्वरुप एक समिति व्यवस्था का जन्म हुआ जिसमें अप्रत्यक्ष चुनाव का वादा किया।
1 858 के पूर्व प्रशासनिक व्यवस्था:- भारतीय संवैधानिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था के विकास में 1773 के अधिनियम का विशेष महत्व है। इस अधिनियम के पूर्व भारत में कोई केंद्रीय सत्ता नहीं। ईस्ट इंडिया कंपनी किस शासन शक्तियां तीन स्थानों मुंबई बंगाल और मद्रास में केंद्रित थी।