"इल्तुतमिश": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox royalty
| name =शम्स-उद-दीन इल्तुत्मिश
| title = [https://historyguruji.com/%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%a8/ दिल्ली का सुल्तान]<br/>बदायुं का राज्यपाल<br/>नासिर अमीर-उल-मोमिनिन
| image= [[चित्र:Iltutmish Tomb Delhi in 1860.jpg |200px|]]
| caption =इल्तुतमिश का मकबरा
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}}
 
'''शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ''' [[दिल्ली सल्तनत]] में शम्सी वंंश का एक प्रमुख शासक था। तुर्की-राज्य संस्थापक [[कुतुब-उद-दीन ऐबक]] के बाद वो उन शासकों में से था जिससे [https://historyguruji.com/%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%a8/ दिल्ली सल्तनत] की नींव मजबूत हुई। वह ऐबक का दामाद भी था। उसने 1211 इस्वी से 1236 इस्वी तक शासन किया। राज्याभिषेक समय से ही अनेक [[तुर्क]] [[अमीर]] उसका विरोध कर रहे थे। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर मुहम्मद ग़ोरी ने उसे “अमीरूल उमरा” नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। अकस्मात् मुत्यु के कारण कुतुबद्दीन ऐबक अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र आरामशाह (जिसे इतिहासकार नहीं मानते) को लाहौर की गद्दी पर बैठाया, परन्तु दिल्ली के तुर्को सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश, जो उस समय बदायूँ का सूबेदार था, को दिल्ली आमंत्रित कर राज्यसिंहासन पर बैठाया गया। आरामशाह एवं इल्तुतमिश के बीच दिल्ली के निकट जड़ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ, जिसमें आरामशाह को बन्दी बनाकर बाद में उसकी हत्या कर दी गयी और इस तरह ऐबक वंश के बाद इल्बारी वंश का शासन प्रारम्भ हुआ।
 
== प्रतिद्वंदी ==
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== कठिनाइयों से सामना ==
[[File:Delhisultanatet under iltutmish.jpg|left|thumb|इल्तुतमिश के अधीन [https://historyguruji.com/%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%a8/ दिल्ली सल्तनत] का विस्तार]]
सुल्तान का पद प्राप्त करने के बाद इल्तुतमिश को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसकी प्रारम्भिक कठानाई अनेक गद्दी के दावेदारों का होना था। जिनका बाद में ‘कुल्बी’ अर्थात कुतुबद्दीन ऐबक के समय सरदार तथा ‘मुइज्जी’ अर्थात् मुहम्मद ग़ोरी के समय के सरदारों के विद्रोह का दमन किया। इल्तुमिश ने इन विद्रोही सरदारों पर विश्वास न करते हुए अपने 40 ग़ुलाम सरदारों का एक गुट या संगठन बनाया, जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी' का नाम दिया गया। इस संगठन को ‘चरगान’ भी कहा जाता है। इल्तुतिमिश के समय में ही अवध में पिर्थू विद्रोह हुआ।