"टीपू सुल्तान": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox royalty
| name = [https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ टीपू सुलतान]
| name = टीपू सुलतान
| title = बादशाह <br />नसीब अद-दौला <br />मीर फ़तेह अली बहादुर
| image = TipuSultanPic.jpg
| reign = 10 दिसम्बर 1782 – 4 May 1799
| coronation = 29 दिसम्बर 1782
| predecessor = [[[https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ हैदर अली]]]
| predecessor = [[हैदर अली]]
| succession = [[Kingdom of Mysore|Sultan of Mysore]]
| successor = [[Krishnaraja Wodeyar III]] (as Woodeyar ruler)
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| royal anthem =
| full name =Badshah Nasibuddaulah Sultan Mir Fateh Ali Bahadur Sahab
| father = [[[https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ हैदर अली]]]
| father = [[हैदर अली]]
| mother = फ़ातिमा फ़ख्रुन्निसा
| religion = [[इस्लाम]]
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}}
 
'''[https://historyguruji.com/मैसूर-[https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ हैदरअली]-और-टीपू-सुल टीपू सुलतान]''' का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 (21 मील) किमी उत्तर)मे हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम [https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल हैदर अली] और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को '''मैसूर के शेर''' के रूप में जाना जाता है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़॰य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। टीपूसुल्तान को एक तरह से दक्षिण भारत का अंबेडकर भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में दलितों, पिछड़ों को उनके सामाजिक अधिकार दिलाया तथा अगड़ो द्वारा हो रहे अत्याचार से मुक्त कराया तथा उन्हें जीने का एक मकसद दिया टीपू सुल्तान महिला सशक्तिकरण के पक्षधर थे उनके शासनकाल में महिलाओं का सम्मान स्थान था किंतु उसके ऊपर एक कलंक भी था,
उसने औरंगजेब की तरह हिंदुओं को तलवार के बल पर मुसलमान बनाया और जिस किसी ने इस्लाम स्वीकारने की मना की उसकी हत्या कर देता था।।<ref>https://jivanihindi.com/tipu-sultan-ki-jivani/टीपू सुलतान की जीवनी</ref>
 
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==जीवनी==
18 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हैदर अली का देहावसान एवं [https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ टीपू सुल्तान] का राज्यरोहन मैसूर कि एक प्रमुख घटना है टीपू सुल्तान के आगमन के साथ ही अंग्रेजों कि साम्राज्यवादी नीति पर जबरदस्त आधात पहुँचा जहाँ एक ओर कम्पनी सरकार अपने नवजात ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रयत्नशील थी तो दूसरी ओर टीपू अपनी वीरता एवं कुटनीतिज्ञता के बल पर मैसूर कि सुरक्षा के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा था वस्तुत:18 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था जिसने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयत्न किया। अपने पिता हैदर अली के पश्चात 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा।
 
अपने पिता की तरह ही वह भी अत्याधिक महत्वांकाक्षी कुशल सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ थे यही कारण था कि वह हमेशा अपने पिता की पराजय का बदला अंग्रेजों से लेना चाहते थे अंग्रेज उनसे काफी भयभीत रहते थे। टीपू सुल्तान की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी। वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता थे अपने पिता के समय में ही उन्होंने प्रशासनिक सैनिक तथा युद्ध विधा लेनी प्रारंभ कर दी थी परन्तु उनका सबसे बड़ा अवगुण उनके पराजय का कारण बना वह फ्रांसिसियों पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, वह अपने पिता के समान ही निरंकुश और स्वंत्रताचारी थे लेकिन फिर भी प्रजा के तकलीफों का उनहे काफी ध्यान रहता था। अत: उनके शासन काल में किसान प्रसन्न थे। वह कट्टर व धर्मान्त मुस्लमान थे वह हिन्दु, मुस्लमानों को एक नजर से देखते थे।
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वह गुलामी को खत्म करने वाला पहला शासक था। कुछ मौलवियों ने इस उपाय को थोड़ा बहुत बोल्ड और अनावश्यक माना। टीपू अपनी बंदूकों से चिपक गया। उन्होंने पूरे जोश के साथ उस लाइन को लागू करने के फैसले को लागू कर दिया जिसमें उनके देश में प्राप्त स्थिति को इस उपाय की आवश्यकता थी।
टीपू सुल्तान सामंतवाद के प्रति उनका दृष्टिकोण है। उन्होंने इसे एक बार में समाप्त कर दिया और नतीजा यह है कि आज भी कर्नाटक के किसान - विशेष रूप से पूर्व मैसूर क्षेत्र में - उत्तरी भारत के किसानों से अलग हैं। ज़मीन के टिलर टीपू के दिनों से ही अपनी पकड़ के मालिक थे। इस उपाय के परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र में एक विकसित देश है। कर्नाटक के किसान किसान मालिक हैं और उनके बेटों और बेटियों ने शिक्षा में अच्छा किया है।
[https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ टीपू सुल्तान] भी अपने राज्य के ब्राह्मण पादरियों के प्रति निष्ठावान थे और उनके सहयोग की माँग करते थे - यहाँ तक कि देवताओं के आशीर्वाद के लिए विशेष प्रार्थना करने का भी अनुरोध किया जाता था। 1791 में श्रीगंगातट के जगतगुरु स्वामी को लिखे उनके पत्र हिंदू विषयों के साथ उनके उत्कृष्ट संबंधों के प्रमाण हैं। इस दावे के लिए टीपू के कुछ 30 पत्रों को भारतीय पुरातत्व विभाग में संरक्षित किया गया है। दक्षिण भारत के विल्क्स हिस्टोरिकल स्केच, टीपू सुल्तान की हिंदू-नफरत के रूप में कोई भी न्याय नहीं करते हैं
गांधीजी उन सभी इतिहास की पुस्तकों का विमोचन करते हैं, जो टीपू सुल्तान को हिंदुओं पर धर्मांतरण के लिए मजबूर करती हैं। वह सोचते हैं कि कन्नड़ भाषा में टीपू के पत्र हिंदुओं के प्रति उनकी उदारता का जीवंत प्रमाण हैं। गांधीजी ने टीपू को महान वक्फों (ट्रस्टों) के लिए हिंदू मंदिरों के लिए स्थापित किया। उनके महल वेंकटरमन श्रीनिवास और श्री रंगनाथ मंदिरों के करीब खड़े थे। वह विशेष रूप से मैसूर के शासक की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि शेर के जीवन का एक दिन सियार के 100 साल के जीवन से बेहतर होता है। '
टीपू का सुसंस्कृत मन था। मोहिबुल हसन के अनुसार, वह बहुमुखी थे और हर तरह के विषयों पर बात कर सकते थे। वह कन्नड़ और हिंदुस्तानी (उर्दू) बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी, लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदीदा विषय थे। कवियों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया, और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने का शौकीन था। वह सुलेख में बहुत रुचि रखते थे, और उनके द्वारा आविष्कृत सुलेख के नियमों पर ""रिसाला डार खत-ए-तर्ज़-ए-मुहम्मदी"" नामक फारसी में एक ग्रंथ मौजूद है। उन्होंने ज़बरजद नामक ज्योतिष पर एक किताब भी लिखी। उनकी लाइब्रेरी की बाध्य पुस्तकें भगवान, मोहम्मद, उनकी बेटी फातिमा और उनके बेटों, हसन और हुसैन के नाम को कवर के मध्य में और चार कोनों पर चार खलीफाओं के नाम के साथ ले जाती हैं। उनकी निजी लाइब्रेरी में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, उर्दू और हिंदी पांडुलिपियों के 2,000 से अधिक संगीत, हदीस, कानून, सूफीवाद, हिंदू धर्म, इतिहास, दर्शन, कविता और गणित से संबंधित हैं।
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अंग्रेजों और टीपू के बीच मार्च, 1784 में शांति-संधि हो गई और दोनों ने एक-दूसरे के जीते हुए सारे प्रदेश लौटा दिये।
 
[https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ टीपू सुल्तान] का जन्म कर्नाटक के कोलार जिले के ‘'''देवनहल्ली'''’ (यूसुफाबाद) में 20 नवंबर, 1750 को '''फकरुन्निसा''' (फातिमा) से हुआ था। टीपू का पूरा नाम ‘'''सुल्तान फतेह अलीखान शाहाब टीपू’''' था।
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल/ तृतीय मैसूर युद्ध]==
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[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल टीपु सुल्तान] इस अपमानजनक सन्धि से काफी दुखी थे और अपनी बदनामी के कारण वह अंग्रेजो को पराजित कर दूर करना चाहता थे प्रकृति ने उन्हें ऐसा मौका भी दिया लेकिन भाग्य ने टीपु का साथ नहीं दिया इस समय इंग्लैण्ड और फ्रांस में युद्ध चल रहा था इस अन्तराष्ट्र परिस्थिति से लाभ उठाने के लिए टीपु ने विभिन्न देशों में अपना राजदुत भेजा फ्रांसिसियों को उसने अपने राज्य में विभिन्न तरह कि सुविधाएं प्रदान कि अपने सैनिक संगठन के उन्होने फ्रांसीसी अफसर न्युक्त किये और उनहोने अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता कि अप्रैल 1798 ई. में कुछ फ्रांसीसी टीपु कि सहायता के लिए पहुँचा फलत: अंग्रेज और टीपु के बीच संघर्ष आवश्यक हो गया। इस समय लार्ड वेलेजली बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया था। उन्होनें टिपु कि शक्ति को कुचलने का निश्चय किया टीपु के विरुद्ध उसने निजाम और मराठों के साथ गठबंधन करने कि चेष्टा कि निजाम को मिलाने में वह सफल हुए लेकिन मराठों ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया 1798 में निजाम के साथ वेलेजली ने सहायक सन्धि कि और यह घोषणा कर दी जीते हुए प्रदेशों में कुछ हिस्सा मराठों को भी दिया जाय पुर्ण तैयारी के साथ वेलेजली ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया इस तरह मैसुर का चौथा युद्ध प्रारंभ हुआ।
 
प्रारंभ से ही [https://historyguruji.com/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%82-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b2/ टीपु सुल्तान] एक अच्छे योध्दा थे। आखिर तक युद्ध करते करते मर गये मैसूर पर अंग्रेजो कि अधिकार हो गया इस् प्रकार 33 वर्ष पुर्व मैसुर में जिस मुस्लिम शक्ति का उदय हुआ था सिर्फ उसका अन्त ही नहीं हुआ बल्कि अंग्रेज मैसुर युद्ध का नाटक ही समाप्त हो गया। मैसुर जो 33 वर्षों से लगातार अंग्रेजों कि प्रगति का शत्रु बना था अब वह अंग्रेजों के अधिकार में आ गया था अंग्रेज और निजाम ने मिल कर मैसुर का बटवारा कर लिया कुछ हिस्सा अंग्रेजों को मिला और कुछ पर निजाम का अधिकार स्वीकार किया गया मराठों को भी उत्तर पश्चिम में कुछ प्रदेश दिये गये लेकिन उसने लेने से इनकार कर दिया बचा हुआ मैसुर राज्य मैसुर के पुराने हिन्दु राजवंश के एक नाबालिग लड़के को दे दिया गया और उसके साथ अंग्रेजों ने एक सन्धि कि इस सन्धि के अनुसार मैसुर की सुरक्षा का भार अंग्रेजों पर आ गया वहाँ ब्रिटिश सेना तैनात किया गया सेना का खर्च मैसुर के राजा ने देना स्वीकार किया। इस नीति से अंग्रेजों को काफी लाभ पहुँचा मैसुर राज्य बिल्कुल छोटा पड़ गया और दुश्मन का अन्त हो गया कम्पनी कि शक्ति में काफी वृद्धि हुई मराठों को मिला हुआ हिस्सा उसने वापस कर दिया फलत: मैसुर चारों ओर से ब्रिटिश राज्य से घिर गया इसका फायदा उन्होनें भविष्य में उठाया जिससे ब्रिटिश शक्ति के विकास में काफी सहायता मिली और एक दिन उसने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया।
 
==[https://historyguruji.com/मैसूर-हैदरअली-और-टीपू-सुल टीपू सुल्तान की धार्मिक नीति]==