"उत्तर प्रदेश": अवतरणों में अंतर

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सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। [[बुद्ध]] ने अपना पहला उपदेश [[वाराणसी]] ([[बनारस]]) के निकट [[सारनाथ]] में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि [[चीन]] व [[जापान]] जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि [[बुद्ध]] को [[कुशीनगर]] में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले [[कुशीनगर]] में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले [[मगध]], जो वर्तमान [[बिहार]] राज्य में स्थित था और बाद में [[उज्जैन]], जो वर्तमान [[मध्य प्रदेश]] राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में [[नंदवंश]] संस्थापक महान चक्रवर्ती सम्राट [[महापद्मनंद]] थे। जो एक [[नाई]] सम्राट थे। सम्राट पद्मनंद के पुत्र सम्राट [[धनानंद]] थे। शासनकाल लगभग (268-330ई.)इतने वर्षों के शासनकाल के दौरान 323ई में नंदवंश का सुनहरा दौर था।इस समय यह प्रदेश [[मगध]] के नाम से जाना जाता था। जिसकी सीमा गंगा के विशाल मैदान को लांघ गई थी। और '''केंद्रीय शासन पध्दति''' भी इसी समय शुरू हुई थी किन्तु ईर्ष्या के कारण यह सफल नहीं हुई। [[चन्द्रगुप्त प्रथम]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व [[अशोक]] (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और [[समुद्रगुप्त]] (लगभग 330-380 ई.) और [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक [[हर्षवर्धन]] (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक [[कन्नौज]] के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, [[बिहार]], [[मध्य प्रदेश]], [[पंजाब]] और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
 
[https://sarkaarijob.in/govt-jobs/indian-coast-guard-recruitment-2020/ coast guard recruitment]
 
इस काल के दौरान [[बौद्ध]] संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। [[गुप्त काल]] (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही [[बौद्ध धर्म]] का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता [[दक्षिण भारत]] में जन्मे शंकर थे, जो [[वाराणसी]] पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और [[हिमालय]] में [[बद्रीनाथ]] में प्रसिद्ध [[मन्दिर]] की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं।