"यूरोपीय ज्ञानोदय": अवतरणों में अंतर
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[[यूरोप]] में 1650 के दशक से लेकर 1780 के दशक तक की अवधि को '''प्रबोधन युग''' या '''ज्ञानोदय युग''' (Age of Enlightenment) कहते हैं। इस अवधि में पश्चिमी यूरोप के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वर्ग ने परम्परा से हटकर [[तर्क]], [[विश्लेषण]] तथा वैयक्तिक स्वातंत्र्य पर जोर दिया। ज्ञानोदय ने [[कैथोलिक चर्च]] एवं समाज में गहरी पैठ बना चुकी अन्य संस्थाओं को चुनौती दी।
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यूरोप में 17वीं-18वीं शताब्दी में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों के कारण इस काल को प्रबोधन, ज्ञानोदय अथवा विवेक का युग कहा गया और इसका आधार पुनर्जागरण, धर्मसुधार आंदोलन व वाणिज्यिक क्रांति ने तैयार कर दिया था। पुनर्जागरण काल में विकसित हुई वैज्ञानिक चेतना ने, तर्क और अन्वेषण की प्रवृत्ति ने 18वीं शताब्दी में परिपक्वता प्राप्त कर ली। वैज्ञानिक चिंतन की इस परिपक्व अवस्था को 'प्रबोधन' के नाम से जाना जाता है। प्रबोधनकालीन चिंतकों ने इस बात पर बल दिया कि इस भौतिक दुनिया और प्रकृति में होने वाली घटनाओं के पीछे किसी न किसी व्यवस्थित अपरिवर्तनशील और प्राकृतिक नियम का हाथ है। [[फ्रांसिस बेकन]] ने बताया कि विश्वास मजबूत करने के तीन साधन हैं- अनुभव, तर्क और प्रमाण; और इनमें सबसे अधिक शक्तिशाली [[प्रमाण]] है क्योंकि तर्क/अनुभव पर आधारित विश्वास स्थिर नहीं रहता।
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