"मुहम्मद बिन क़ासिम": अवतरणों में अंतर

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== आरंभिक जीवन ==
[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ मुहम्मद बिन क़ासिम] का जन्म आधुनिक [[सउदी अरब]] में स्थित [[ताइफ़]] शहर में हुआ था। वह उस इलाक़े के [[अल-सक़ीफ़]] (जिसे [[अरबी भाषा|अरबी लहजे]] में अल-थ़क़ीफ़​ उच्चारित करते हैं) क़बीले का सदस्य था। उसके पिता क़ासिम बिन युसुफ़ का जल्द ही देहांत हो गया और उसके ताऊ [[हज्जाज बिन युसुफ़]] ने (जो उमय्यादों के लिए [[इराक़]] के राज्यपाल थे) उसे युद्ध और प्रशासन की कलाओं से अवगत कराया। उसने हज्जाज की बेटी (यानि अपनी चचाज़ात बहन) ज़ुबैदाह से शादी कर ली और फिर उसे सिंध पर [[मकरान]] तट के रास्ते से आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया गया।
 
== भारत पर हमला ==
[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ मुहम्मद बिन क़ासिम के भारतीय अभियान] को हज्जाज [[कूफ़ा]] के शहर में बैठा नियंत्रित कर रहा था। ७१० ईसवी में [[ईरान]] के शिराज़ शहर से ६,००० सीरियाई सैनिकों और अन्य दस्तों को लेकर मुहम्मद बिन क़ासिम पूर्व की ओर निकला। [[मकरान]] में वहाँ के राज्यपाल ने उसे और सैनिक दिए। उस समय मकरान पर अरबों का राज नया था और उसे पूर्व जाते हुए फ़न्नाज़बूर और अरमान बेला (आधुनिक 'लस बेला') में विद्रोहों को भी कुचलना पड़ा। फिर वे किश्तियों से सिंध के आधुनिक [[कराची]] शहर के पास स्थित [[देबल]] की बंदरगाह पर पहुंचे, जो उस ज़माने में सिंध की सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह थी।
 
देबल से अरब फ़ौजें पूर्व की ओर निकलती गई और रास्ते में नेरून और सहवान जैसे शहरों को कुचलती गई। यहाँ उन्होंने बहुत बंदी बनाए और उन्हें गुलाम बनाकर भारी संख्या में हज्जाज और ख़लीफ़ा को भेजा। बहुत सा ख़ज़ाना भी भेजा गया और कुछ सैनिकों में बाँटा गया। बातचीत करके अरबों ने कुछ स्थानीय लोगों को भी अपने साथ मिला लिया। सिन्धु नदी के पार [[रोहड़ी]] में दाहिर सेन की सेनाएँ थीं जो हराई गई। दाहिर सेन की मृत्यु हो गई और मुहम्मद बिन क़ासिम का सिंध पर क़ब्ज़ा हो गया। दाहिर सेन के सगे-सम्बन्धियों को दास बनाकर हज्जाज के पास भेज दिया गया। ब्राह्मनाबाद और [[मुल्तान]] पर भी अरबी क़ब्ज़ा हो गया। यहाँ से मुहम्मद बिन क़ासिम ने सौराष्ट्र की तरफ दस्ते भेजे लेकिन [[राष्ट्रकूट राजवंश|राष्ट्रकूटों]] के साथ संधि हो गई। उसने भी बहुत से भारतीय राजाओं को ख़त लिखे की वे [[इस्लाम]] अपना लें और आत्म-समर्पण कर दें। उसने [[कन्नौज]] की तरफ १०,००० सैनिकों की सेना भेजी लेकिन कूफ़ा से उसे वापस आने का आदेश आ गया और यह अभियान रोक दिया गया।<ref name="ref84qacah">[http://books.google.com/books?id=AUPZt-4yqzQC India: A History], John Keay, pp. 174, Grove Press, 2011, ISBN 9780802145581, ''... Muhammad ibn Qasim then resumed his march upriver. Brahmanabad (the later Mansurah), then Alor (Rohri) and finally Multan, the three principal cities of Sind, were either captured or surrendered, probably during the years 710–13 ...''</ref>
 
== मृत्यु ==
मुहम्मद बिन क़ासिम भारत में [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ अरब साम्राज्य] के आगे विस्तार की तैयारी कर रहा था जब हज्जाज की मृत्यु हो गई और ख़लीफ़ा अल-वलीद प्रथम का भी देहांत हो गया। अल वलीद का छोटा भाई सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक अगला ख़लीफ़ा बना। अपने तख़्त पर आने के लिए वह हज्जाज के राजनैतिक दुश्मनों का आभारी था और उसने फ़ौरन [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ हज्जाज] के वफ़ादार सिपहसालारों, मुहम्मद बिन क़ासिम और क़ुतैबाह बिन मुस्लिम, को वापस बुला लिया। उसने याज़िद बिन अल-मुहल्लब को फ़ार्स, किरमान, मकरान और सिंध का राज्यपाल नियुक्त किया। याज़िद को कभी हज्जाज ने बंदी बनाकर कठोर बर्ताव किया था इसलिए उसने तुरंत मुहम्मद बिन क़ासिम को बंदी बनाकर बेड़ियों में डाल दिया। मुहम्मद बिन क़ासिम की मौत की दो कहानियाँ बताई जाती हैं:
 
* '[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ चचनामा]' नामक ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार मुहम्मद बिन क़ासिम ने राजा दाहिर सेन की बेटियों सूर्या और परिमला को तोहफ़ा बनाकर ख़लीफ़ा के पास भेजा था। जब ख़लीफ़ा उनके पास आया तो उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए कहा कि मुहम्मद बिन क़ासिम पहले ही उनकी इज़्ज़त लूट चूका है और अब ख़लीफ़ा के पास भेजा है। ख़लीफ़ा ने मुहम्मद बिन क़ासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस [[दमिश्क़]] मंगवाया और उसी चमड़ी में बंद होकर दम घुटने से वह मर गया। जब ख़लीफ़ा को पता चला कि बहनों ने उस से झूठ कहा था तो उन्हें ज़िन्दा दीवार में चुनवा दिया।<ref name="ref17rajij">[http://books.google.com/books?id=qghuAAAAMAAJ History of India and Pakistan], Muhammad Tariq Awan, Ferozsons, 1994, ISBN 9789690100344, ''... she stated that she was not worthy because Qasim had dishonoured her and her sister ... that Mohammad-bin-Qasim should suffer himself to be sewn up in a raw hide and thus despatched to the capital ...''</ref>
* ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के अनुसार कहानी अलग थी। नया [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ ख़लीफ़ा हज्जाज] का दुश्मन था और उसने हज्जाज के सभी सगे-सम्बन्धियों पर सज़ा ढाई। मुहम्मद बिन क़ासिम को वापस बुलवाकर इराक़ के मोसुल शहर में बंदी बनाया गया। वहाँ उसपर कठोर व्यवहार और पिटाई की गई जी से उस ने दम तोड़ दिया।<ref name="ref48zuqec">[http://books.google.com/books?id=YFE8AAAAMAAJ Journal of the Research Society of Pakistan, Volume 22], Research Society of Pakistan, 1985, ''... Yazid also despatched his own brother Mu'awiyah to accompany the new governor, arrest Muhammad bin Qasim and bring him back to Iraq. This was done. According to Baladhuri, Muhammad bin Qasim was brought back in shackles under Mu'awiyah's escort ...''</ref>
 
कहानी जो भी हो, मुहम्मद बिन क़ासिम को उसके अपने ख़लीफ़ा ने बीस वर्ष की आयु में मार दिया। उसकी क़ब्र कहाँ है, यह भी अज्ञात है।
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मोहम्मद बिन कासिम हज्जाज बिन युसुफ़ का दामाद भी था और इराक और ईरान के साहिलों इलाकों में हज्जाज बिन युसुफ़ का दखल इतना बढ़ चुका था कि चाह कर भी खलीफा उसकी मुखालिफत नहीं कर सकता था। सिंध में लगातार हो रही नाकामी के बावजूद भी वलीद बिन अब्दुल मलिक नहीं चाहते थे कि हज्जाज अपने दामाद मोहम्मद बिन कासिम को लश्करकशी का जिम्मा सौपें लेकिन हज्जाज ने यही किया, और यहीं से उस कहानी की शुरुआत हुई कि जिसका अंजाम मोहम्मद बिन कासिम के साथ खत्म हुआ।
 
जब आप हकीकत की नजर से तारीख (history) का मुताला करेंगे तो आपको पता चलेगा कि मोहम्मद बिन कासिम का सियासी वजूहात की वजह से कत्ल किया गया था, यह कहानी कि खलीफा ने [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ मोहम्मद बिन कासिम] को खुद को एक बक्से में बंद करके दारुल हुकूमत की तरफ रवाना होने को कहा इसमें कोई सच्चाई नजर नहीं आती क्योंकि अगर मोहम्मद बिन कासिम ने कोई गलती की थी या उस पर कोई इल्जाम लगा था तो बगैर उसकी दलील सुने उसका कत्ल कर देना कहीं का इंसाफ नहीं था लेकिन ऐसा किया गया क्योंकि सियासत को उस वक़्त भी खून की जरूरत थी।
 
== Mohammad bin Kasim attack on India on 712 ==