"महमूद ग़ज़नवी": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=मई 2019}}
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| name = sultan [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ महमूद ग़ज़नवी]
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'''[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ महमूद ग़ज़नवी]''' (971-1030) मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित [[गज़नवी वंश]] का एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। वह तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) [[सल्जूक़]] तुर्कों की तरह पूर्व में एक [[सुन्नी]] इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया (सम्मिलिलित रूप से [[ख़ोरासान]]), पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे। उनके युद्धों में [[फ़ातिमी]] सुल्तानों (शिया), काबुल शाहिया राजाओं (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है। भारत में इस्लामी शासन लाने और आक्रमण के दौरान लूटपाट मचाने के कारण भारतीय हिन्दू समाज में उनको एक आक्रामक शासक के रूप में जाना जाता है।
वह पिता के वंश से तुर्क था पर उसने [[फ़ारसी भाषा]] के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाँलांकि उसके दरबारी कवि फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की पर वो हमेशा कवि का समर्थक नहीं रहा था। [[ग़ज़नी]], जो मध्य अफ़गानिस्तान में स्थित एक छोटा शहर था, को उन्होंने साम्राज्य के धनी और प्रांतीय शहर के रूप में बदल गया। बग़दाद के इस्लामी ([[अब्बासी]]) ख़लीफ़ा ने उनको सुल्तान की पदवी दी। Bagdaad ke khalifa न यामीन-उद-दौला और
अमीन-उल-मिल्लत की अपद पदवी दी
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हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण करना तथा इनके मंदिरों को लूटना हिन्दुओं को कमजोर तथा इनको मारना विशेष मूल रहा।ये हिन्दुओं के लिए अभिशाप था ।
 
[[[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ अल्पतगीन एक तुर्क ग़ुलाम] (दास) था जिसने खोरासान के सामानी शासकों से अलग होकर ग़ज़नी में स्थित अपना एक छोटा शासन क्षेत्र स्थापित किया था। पर उसकी ईरानी बेगम की संतान महमूद ने साम्राज्य बहुत विस्तृत किया। फ़ारसी काव्य में महमूद के अपने ग़ुलाम [[[https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ मलिक अयाज़]]] प्रेम का ज़िक्र मिलता है ([[हाफ़िज़ शिराज़ी]])<ref>दीवान-ए-हाफ़िज़ का एक शेर है - <br> बार-ए-दिले मजनूं व ख़म ए तुर्रे-इ-लैली, <br> रुख़सार ए महमूद कफ़-ए-पाए अयाज़ अस्त। (लैली की जुल्फों के मोड़, मजनूं के दिल का भारीपन जैसे महमूद का चेहरा अयाज के तलवों में हो।)</ref>। उर्दू में [[इक़बाल]] का लिखा एक शेर -
<blockquote>
न हुस्न में रहीं वो शोखियाँ, न इश्क़ में रहीं वो गर्मियाँ;
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(ऐ शाह महमूद, देशों को जीतने वाले; अगर किसी से नहीं डरता हो तो भगवान से डर)।
 
इन पंक्तियों में उसके जनकों (ख़ासकर माँ) के बारे में अपमान जनक बातें लिखी थी। लेकिन, कुछ दिनों के बाद, ग़ज़नी की गलियों में लोकप्रिय इन पंक्तियों की ख़बर जब महमूद को लगी तो उसने दीनारों का भुगतान करने का फैसला किया। कहा जाता है कि जब [[तूस]] में उसके द्वारा भेजी गई मुद्रा पहुँची तब शहर से फिरदौसी का जनाजा निकल रहा था। फिरदौसी की बेटी ने राशि लेने से मना कर दिया। [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ अलबरूनी] उत्बी फारुखी फिर्दोशी [https://historyguruji.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%a3/ महमूद गजनबी] के दरबारी थे।
 
== संदर्भ और विवरण ==