"अस्पृश्यता": अवतरणों में अंतर

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छुआ छुत की इस प्रथा को अनुच्छेद 17के तहत समाप्त कर दिया गया
'''अस्पृश्यता''' का शाब्दिक अर्थ है - '''न छूना'''। इसे सामान्य भाषा में 'छूआ-छूत' की समस्या भी कहते हैं। अस्पृश्यता का अर्थ है किसी व्यक्तिवय्क्ति या समूह के सभी लोगों के शरीर को सीधे छूने से बचना या रोकना। ये मान्यता है कि अस्पृश्य या अछूत लोगों से छूने, यहाँ तक कि उनकी परछाई भी पड़ने से उच्च जाति के लोग 'अशुद्ध' हो जाते है और अपनी शुद्धता वापस पाने के लिये उन्हें पवित्र गंगा-जल में स्नान करना पड़ता है। [[भारत]] में अस्पृश्यता कीgjकी प्रथा को अनुच्छेद १७ के अंतर्गत एक दंडनीय [[अपराध]] घोषित कर किया गया है। अनुच्छेद 12 निम्नलिखित है-
प्रथा को अनुच्छेद १७ के अंतर्गत एक दंडनीय [[अपराध]] घोषित कर किया गया है। अनुच्छेद 12 निम्नलिखित है-
:'' 'अस्पृश्यता' का अन्त किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। 'अस्पृश्यता' से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा।
 
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===धार्मिक भावना===
धर्म में पवित्रता एवं शुध्दि का महत्वपूर्ण स्थान है, अतः निम्न व्यवसाय वालों को हीन दृष्टि से देखा जाता है। भारतीय समाज में इन्हीं कारणों से सफाई का काम करने वालों तथा कर्मचारों आदि को अस्पृश्य समझा जाता था।
 
===सामाजिक कारण===
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===आर्थिक विकास===
हरिजनों को कृषि तथा गृह-उद्योग के लिए जमीन, हल, बैल आदि तथा अन्य आर्थिक मदद राज्य की ओर से मिलनी चाहिए। हरिजनों की आर्थिक दशा में सुधार के लिए सूदखोरी की रोकथाम के लिए कानून बनाने चाहिए, जिससे हरिजनों की रक्षा हो सके। समाज में अस्पृश्यता के दोषों को प्रचार द्वारा दूर करना चाहिये जिससे अस्पृश्यों को मानवीय अधिकार प्राप्त करने में सहायता मिल सके।
 
==सन्दर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.hindikiduniya.com/social-issues/untouchability/ अस्पृश्यता या छूआछूत]
*[http://www.gadyakosh.org/gk/अस्पृश्यता-उसका_स्रोत_/_भीमराव_आम्बेडकर अस्पृश्यता-उसका स्रोत] (भीमराव आम्बेडकर)