"नरेन्द्र देव": अवतरणों में अंतर

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== जीवन वृतांत ==
आचार्य नरेंद्रदेव का जन्म संवत् [[1889]] (सन् 1889 ई.) में कार्तिक शुक्ल अष्टमी को [[उत्तर प्रदेश]] के [[सीतापुर]] में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री बलदेवप्रसाद जी अपने समय के बड़े वकीलों में थे। वे धार्मिक वृत्ति के थे। कांग्रेस और सोशल कानफरेंस के कामों में भी थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेते थे। इस नाते उपदेशक, संन्यासी और पंडित उनके घर आया करते थे। इस तरह बचपन में ही [[स्वामी रामतीर्थ]], पंडित [[मदनमोहन मालवीय]], पं॰ दीनदयालु शर्मा आदि के संपर्क में आने का मौका मिला। पिता जी के प्रभाव से आचार्य जी (तब अविनाशीलाल) के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग उपजा। इसी कारण आगे चलकर आपने एम.ए. में [[संस्कृत]] की शिक्षा ली। इसके पूर्व [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से बी.ए. किया। बी.ए. पास कर पुरातत्व पढ़ने काशी के [[क्वींस कालेज]] में आए। सन् 1913 में एम.ए. पास किया। घरवालों ने वकालत पढ़ने का आग्रह किया। नरेंद्रदेव जी को यह पेशा पसन्द नहीं था। किंतु वकालत करते हुए राजनीति में भाग ले सकने की दृष्टि से कानून पढ़ा। 1915-20 तक पाँच वर्ष [[फैजाबाद]] में वकालत की। इसी बीच [[असहयोग आंदोलन]] प्रारंभ हुआ। असहयोग आन्दोलन के शुरू होने के बाद श्री जवाहरलाल नेहरू की सूचना और अपने मित्र श्री [[शिवप्रसाद गुप्त]] के आमंत्रण पर नरेंद्रदेव जी विद्यापीठ आए।
 
इस सम्बन्ध में आचार्य नरेंद्रदेव जी ने "मेरे संस्मरण" शीर्षक रेडियो वार्ता में कहा है : "मेरे जीवन में सदा दो प्रवृत्तियाँ रही हैं - एक पढ़ने-लिखने की और, दूसरी राजनीति की ; और इन दोनों में संघर्ष रहता है। यदि दोनों की सुविधा एक साथ मिल जाए तो मुझे बड़ा परितोष रहता है और यह सुविधा मुझे विद्यापीठ में मिली। इसी कारण वह मेरे जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा है जो विद्यापीठ की सेवा में व्यतीत हुआ।"