"परिसंचरण तंत्र": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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=== हृदय की कपाटिकाएँ ===
[[चित्र:Latidos.gif|right|thumb|300px|हृदय की कपाटिकाएँ, खुलते और बन्द होते हुए]]
ये बड़े महत्व की संरचनाएँ हैं, जो रुधिर को केवल एक मार्ग से अग्रसर होने देती हैं, लौटने नहीं देतीं। दाहिनी ओर की कपाटिका तीन कौड़ी के समान भागों की बनी है और त्रिवलन कपाटिक (Tricuspid) कहलाती है। बाई ओर द्विवलन (bicuspid) कपाटिका है। निलय की ओर के पृष्ठ पर इनमें बारीक रज्जु के समान तंतु लगे हुए हैं, जिनके दूसरे सिरे निलय की दीवार से निकले हुए अंकुरों पर लगते हैं। ये कंडरीयरज्जु (cordaetendinae) कहलाते हैं और अंकुरों को पैपिलीय पेशी (Musculipapillares) कहा जाता है। अलिंद के संकोच से निलय में रुधिर भर जाने पर, जब वह संकुचित होता है, तो रुधिर कपर्दों के पीछे पहुँचकर उनको छिद्रों की ओर उठा देता है, जिससे उनके सिरे आपस में मिलकर छिद्र के मार्ग को रोक देते हैं और रुधिर अलिंद में नहीं लौट पाता। पैपिलीय पेशी भी संकुचित हो जाती हैं, जिससे कंडरीयरज्जु तन जाती है और कपाटिकाओं के कपर्द अलिंद में उलटने नहीं पाते। इस प्रकार के प्रबंध से रुधिर केवल एक ही दिशा में, अलिंद से निलय में, जा सकता है। फुप्फुसी और महाधमनी के छिद्रों पर भी अर्धचंद्राकार कपाटिकाएँ लगी हुई हैं।
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