"शत्रुघन सिन्हा": अवतरणों में अंतर

→‎फिल्मी सफर: मैंने इसमें शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्मी सफर से राजनीति तक की पूरी कहानी लिखिए
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== फिल्मी सफर ==
 
शत्रुघ्न सिन्हा का जन्म 9 दिसंबर 1945 बिहार के पटना के कदमकुआं स्थित एक साधारण परिवार में हुआ. शत्रुघ्न बचपन से फिल्मों में ही काम करना चाहते थे लेकिन पिता चाहते थे कि वो पढ़ाई-लिखाई करके डॉक्टर या इंजीनियर बनें. लेकिन शत्रुघ्न अपना भविष्य कहीं और ही देख रहे थे. लिहाजा शत्रुघ्न सिन्हा ने पिता को बिना बताए फिल्म इंस्टीट्यूट पुणे का फॉर्म भर दिया. जहां दाखिले में बड़े भाई लखन ने सहयोग किया. फिल्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद शत्रुघ्न फिल्मों में काम ढूंढने लगे, लेकिन होठ कटे होने के कारण उन्हें काम नहीं मिल रहा था. शत्रुघ्न ने अपने होठ की सर्जरी कराने का फैसला किया लेकिन उस वक्त के सुपरस्टार देवानंद ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया. इसके बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने फिल्म साजन के साथ करियर की शुरुआत की.
शत्रुघ्न सिन्हा आए तो थे हीरो बनने लेकिन विलेन बन गए. विलेन में छाप छोड़ने के बाद वो हीरो भी बने और सिनेमा में100 से भी ज्यादा फिल्में की. बॉलीवुड में एक वक्त ऐसा भी आया था कि जब शत्रुघ्न सिन्हा की तूती बोलती थी, निर्माता निर्देशक धर्मेंद्र और अमिताभ की जगह शत्रुघ्न सिन्हा को तरजीह दिया करते थे. फिल्मों में लंबा करियर करने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने राजनीति का रुख किया. वहां भी शत्रुघ्न सिन्हा की एंट्री ने सबको हिलाकर रख दिया.
1991 में लाल कृष्ण आडवाणी ने गांधी नगर और दिल्ली, दो सीटों से चुनाव लड़े और जीते भी. एल के आडवाणी ने दिल्ली सीट छोड़ दी और वहां से 1992 में उपचुनावों में शत्रुघ्न सिन्हा को मौका मिला. शत्रुघ्न के सामने थे बॉलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना. दिलचस्प मुकाबले में शत्रुघ्न सिन्हा ने राजेश खन्ना को मामूली अंतर से हरा दिया. एक इंटरव्यू में शत्रुघ्न सिन्हा ने बताया था कि उनके दिल्ली सीट से चुनाव लड़ने से राजेश खन्ना नाराज हो गए थे और इस बात का उन्हें हमेशा अफसोस रहेगा. इस चुनाव के बाद शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल हो गए. कुछ ही दिनों में वह अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी जैसे नेताओं के करीबी हो गए और इसका फायदा उन्हें कई मौकों पर मिला. 1996 में बीजेपी ने शत्रु को राज्यसभा को भेजा. एक कार्यकाल पूरा होने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा को दोबारा राज्यसभा भेजा गया.
अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वस्त लोगों में शामिल रहे शत्रुघ्न को 2002 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया. 2003 में उन्हें जहाजरानी मंत्री भी बनाया गया था. 2009 में लाल कृष्ण आडवाणी ने उन्हें बिहार की पटना साहिब सीट से उतारा जहां से शत्रुघ्नने जबरदस्त जीत हासिल की. इसके बाद 2014 में उन्हें फिर से इसी सीट से टिकट दिया गया. यहां से उन्हें जीत मिली. कहते हैं कि इस सीट से रविशंकर प्रसाद चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. चुनाव जीतने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीद थी कि वह मंत्री बनेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यहीं से शुरू हुई शत्रुघ्न सिन्हा की नाराजगी. दूसरी तरफ उनको प्रदेश स्तर पर अनदेखा किया जाने लगा और ये नाराजगी बगावत के रूप में बदल गई. धीरे-धीरे शत्रुघ्न की नाराजगी को अन्य पार्टियों ने भुनाने की कोशिश की और वो कामयाब भी होते चले गए. आखिर में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और पटना साहिब से उनका टिकट काट दिया गया. इसके बाद शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें पटना साहिब से उम्मीदवार बनाए गए. लिहाजा अब उनका मुकाबला बीजेपी के रविशंकर प्रसाद से है.
 
==राजनीतिक कैरियर==
सिन्हा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (2019) के सदस्य हैं। राजेश खन्ना के खिलाफ एक उपचुनाव में चुनाव लड़कर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। सिन्हा ने एक साक्षात्कार में उद्धृत किया कि उनके जीवन में उनका सबसे बड़ा अफसोस उनके दोस्त खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था। खन्ना ने 25,000 वोटों से सिन्हा को हराकर चुनाव जीते लेकिन हालांकि, उन्हें चोट लगी और उसके बाद सिन्हा से कभी बात नहीं की। सिन्हा ने खन्ना के साथ अपनी दोस्ती का पुनर्निर्माण करने की कोशिश की, हालांकि 2012 में खन्ना की मौत तक कभी नहीं हुआ।