"पदावली": अवतरणों में अंतर
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पदावली [[विद्यापति]] द्वारा चौदहवीं सदी में रचा गया [[काव्य]] है। यह [[भक्ति]] और [[
==कुछ महत्वपूर्ण पदसमूह==
===१===
ए सखि हामारि दुखेर नाहि ओर।
ए भरा बादर माह भादर शून्य मन्दिर मोर ||३||
झञझा घन गरजन्ति सन्तति भुबन भरि बरिखिन्तिया।
कान्त पाहुन काम दारुण सघने खर शर हन्तिया ||७||
कुशिल शत शत पात-मोदित मूर नाचत मातिया।
मत्त दादुरी डाके डाहुकी फाटि याओत छातिया ||११||
तिमिर भरि भरि घोर यामिनी थिर बिजुरि पाँतिया।
बिद्यापति कह कैछे गोङाय়बि हरि बिने दिन रातिया ||१५||
===२===
कि कहब रे सखि आनन्द ओर ।
चिरदिने माधब मन्दिरे मोर ॥
पाप सुधाकर यत दुख देल ।
पियमुख दरशने तत सुख भेल ॥
निर्धन बलिया पियार ना कैलु यतन ।
अब हाम जानलु पिया बड़ धन ॥
आँचल भरिया यदि महानिधि पाङ ।
तब हाम दूर देशे पिया ना पाठाङ ॥
शीतेर ओड़नि पिया गिरिसेर बाओ ।
बरिसार छत्र पिया दरियर नाओ ॥
भनये बिद्यापति शन बरनारी ।
सुजनक दुख दिबस दुइ चारि ॥
===३===
हाथक दरपण माथक फुल ।
नय়नक अञ्जन मुखक ताम्बुल ॥
हृदय়क मृगमद गीमक हार ।
देहक सरबस गेहक सार ॥
पाखीक पाख मीनक पानि ।
जीबक जीबन हाम ऐछे जानि ॥
तुहु कैछे माधब कह तुहुँ मोय ।
बिद्यापति कह दुहु दोहाँ होय ॥|
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