"रामधारी सिंह 'दिनकर'": अवतरणों में अंतर

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: ''रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहां जाने दे उनको स्वर्गधीर
: ''फिरा दे हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन भीम वीर॥<ref>[https://www.etvbharat.com/hindi/bihar/bharat/bharat-news/story-of-ramdhari-singh-dinkar-and-nehru/na20190923171547357 वो थे दिनकर, जिन्होंने संसद में नेहरू के खिलाफ पढ़ी थी कविता]</ref>
 
इसी प्रकार एक बार तो उन्होंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा- "क्या आपने [[हिंदी]] को [[राष्ट्रभाषा]] इसलिए बनाया है, ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?" यह सुनकर नेहरू सहित सभा में बैठे सभी लोगसन्न रह गए थे। किस्सा 20 जून 1962 का है। उस दिन दिनकर राज्यसभा में खड़े हुए और हिंदी के अपमान को लेकर बहुत सख्त स्वर में बोले। उन्होंने कहा-
: ''देश में जब भी हिंदी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिंदी वालों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहींइस परिपाटीका आरम्भ किसने किया है, लेकिन मेराख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा प्रधानमंत्री से मिली है। पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिंदी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं कि क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया था ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोजअपशब्द सुनाएं? क्या आपको पता भी है कि इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होगा?
 
यह सुनकर पूरी सभा सन्न रह गई। ठसाठस भरी सभा में भी गहरा सन्नाटा छा गया। यह मुर्दा-चुप्पी तोड़ते हुए दिनकर ने फिर कहा- 'मैं इस सभा और खासकर प्रधानमंत्री नेहरू से कहना चाहता हूं कि हिंदी की निंदा करना बंद किया जाए। हिंदी की निंदा से इस देशकी आत्मा कोगहरी चोट पहंचती है।'<ref>नई दुनिया, सम्पादकीय पृष्ठ, दिनांक ११ फरवरी, २०२०२</ref>
 
== प्रमुख कृतियाँ ==