"हाडी": अवतरणों में अंतर

छो 1000 ईस्वी
छो सेलुलर जेल
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भारतीय इतिहास के लिखित स्रोतों में, [[अलबरूनी]] द्वारा लिखित विवरण के हवाले से इनके उस समय होने को प्रमाणित किया जाता है।<ref name="Alka2018">{{cite book|author=Omlata Singh Alka|title=Chauhan Satta Ka Vikash: Vasudev Se Arnoraj Tak Chauhan Vansh|url=https://books.google.com/books?id=UE5mDwAAQBAJ&pg=PA163|date=10 August 2018|publisher=Educreation Publishing|pages=163–|id=GGKEY:JQFN65GJNS6}}</ref> अलबरूनी ने इनका ज़िक्र [[चांडाल]] समुदाय के भाग के रूप में किया है जिसमें इनके साथ डोम, चंडाल, बधाथु का उल्लेख है। कुछ विद्वानों ने यह भी साबित करने का प्रयास किया है कि ये निम्नतम स्तर पर मानी जाने वाली जातियाँ हमेशा से ऐसी नहीं रहीं, उदाहरणार्थ एक लेखक ने [[हजारी प्रसाद द्विवेदी]] के हवाले से लिखा है, "मुसलमान आगमन के अव्यवहित पूर्वकाल में डोम-हाडी या हलखोर इत्यादि जातियाँ काफी संपन्न और शक्तिशाली थीं।"<ref name="Sharma2018">{{cite book|author=राजमणि शर्मा|title=Hindi Sahityetihas Ke Kuchhek Jwalant Prashn|url=https://books.google.com/books?id=wnxHDwAAQBAJ&pg=PA38|date=9 जनवरी 2018|publisher=वाणी प्रकाशन|isbn=978-93-87648-46-3|pages=38–}}</ref>
 
वर्तमान में इन्हें कई राज्यों में [[अनुसूचित जाति]] का दर्जा प्राप्त है जैसे [[उत्तर प्रदेश]] में "हरी" अथवा "हरि" के उपनाम लिखने वालों को<ref name="Shastri">{{cite book|author=Vijay Sonkar Shastri|title=Hindu Valmiki Jati|url=https://books.google.com/books?id=IEVqCwAAQBAJ&pg=PA70|isbn=978-93-5048-566-8|pages=70–}}</ref>; कुछ इलाकों में नाडिया और हाडी का उल्लेख एक साथ है<ref>{{cite journal |last1=Nayak |first1=Vijay |last2=Prasad |first2=Shailaja |title=On Levels of Living of Scheduled Castes and Scheduled Tribes |journal=Economic and Political Weekly |date=1984 |volume=19 |issue=30 |pages=1205–1213 |url=https://www.jstor.org/stable/4373471 |accessdate=20 नवम्बर 2018}}</ref>; बिहार झारखण्ड बंगाल में हाडी अथवा हरि<ref>[http://planningcommission.nic.in/reports/sereport/ser/ser_bihar2807.pdf Circular issued by the Government of Bihar (1999)], as cited by Deshkal Society.</ref> सहिस उपनाम लिखने वालों के रूप में। गुजरात के हाड़ी समुदाय वर्तमान में मछली व्यवसाय से जुड़े हैं और गुजरात के तटीय क्षेत्रो मे पाए जाते हैं
 
आज भी अंडमान द्वीप के सेलुलर जेल जिसे काला पानी की सजा कही जाती थी उनमे मौजूद हैं राम हाड़ी जी ‘स्‍वराज्‍य’ पत्रिका जो गाजियाबाद से प्रकाशित होती थी उसके संपादक थे। उन्‍हें अपने तीन संपादकीयों को ब्रिटिश सरकार द्वारा ''‘राजद्रोह’'' करार दिये जाने के कारण सेलुलर जेल में 21 वर्ष की कैद हुई थी।आज भी उनका नाम सेलुलर जेल के यूनाइटेड प्रोविन्स शिलापठ  पर स्वर्ण अक्षरों से अंकित हैं 1950 से पहले उत्तर प्रदेश का नाम यूनाइटेड प्रोविन्स था एक सदी के बाद, 15 अगस्‍त, 1957 को पोर्ट ब्‍लेयर में ‘शहीद स्‍तम्‍भ’ प्राण न्‍यौछावर करने वाले अचर्चित और गुमनाम शहीदों को समर्पित किया गया, बाबु राम हाड़ी के बारे मे यह भी कहा जाता हैं की इनका सम्बन्ध पंजाब प्रान्त के गुरुदास पुर जिला से हैं मगर सेलुलर जेल के शिलापठ पर पंजाब प्रान्त के इनसे मिलते जुलते नाम अंकित हैं जो हिदा राम हैं, सजाऐ काला पानी के सूची मे और भी कई ऐसे नाम अंकित हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नो से गायब हो गया हैं, हाड़ी जाति से सम्बंधित राम हाड़ी का शहीद स्‍तम्‍भ’ पुरे विश्व के हाड़ी जाति के लिए एक पवित्र तीर्थ से कम नहीं है
 
भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्तरी मुगल शासन में कैसे हो गई। जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं। जिन क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए गंदे कार्य में धकेल दिया गया। वही लोग भंगी, वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों, यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलौता, मेहतर, हलालखोर , हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक, गेहलोत, चन्देल, टिपणी कहलाए। डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, <nowiki>''</nowiki> ये अनुसूचित जातियां उन्हीं ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, <nowiki>''</nowiki> प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" आदि कहा गया, वे ब्राहम्ण और क्षत्रिय थे। स्टेनले राइस ने अपने पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे। गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'पतित प्रभाकर' अर्थात मेहतर जाति का इतिहास था। इस छोटी-सी पुस्तक में "भंगी","मेहतर", "हलालखोर", "चूहड़" आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, इसमें एक खास बात यह हैं की किसी साहित्यकार ने इन जातियों के साथ हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर का जिक्र नहीं किया , मतलब साफ़ है की भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति के लोग कोई और नहीं हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर जाति के लोग ही थे,
"https://hi.wikipedia.org/wiki/हाडी" से प्राप्त