"मऊ, उत्तर प्रदेश": अवतरणों में अंतर

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सामान्यत: यह माना जाता है कि 'मऊ' शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। वस्तुत: इस जगह के इतिहास के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है प्रसिद्ध शासक [[शेर शाह सूरी]] के शासनकाल में इस क्षेत्र में कई आर्थिक विकास करवाए गए। वहीं मिलिटरी बेस और शाही मस्जिद के निर्माण में काफी संख्या में श्रमिक और कारीगर मुगल सैनिकों के साथ यहां आए थे।
 
कुछ विवरणों के अनुसार जब यह समूचा इलाका घोर घना जंगल था। यहाँ बहने वाली नदी के आस-पास जंगली व आदिवासी जातियाँ निवास करती थीं। यहाँ के सबसे पुराने निवासी नट माने जाते है। इस इलाके पर उन्हीं का शासन भी था। उन दिनों इस क्षेत्र में मऊ नट का शासन था और तमसा तट पर हजारों वर्ष पूर्व बसे इस इलाके में सन् 1028 के आस-पास बाबा [[मलिक ताहिर]] का आगमन हुआ जो एक सूफी संत थे और अपने भाई [[मलिक क़ासिम]] के साथ फौज की एक टुकड़ी के साथ यहाँ आये थे। इन लोगों का तत्कालीन हुक्मरान [[सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी|सैय्यद सालार मसऊद ग़ाज़ी]] ने इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भेजा था। ग़ाज़ी उस समय देश के अन्य हिस्सों पर कब्जा करता हुआ बाराबंकी में सतरिक तक आया था और वहाँ से उसने विभिन्न हिस्सों में कब्जे के लिये फौजी टुकडि़याँ भेजी थी। कब्जे को लेकर मऊ नट एवं मलिक बंधुओं के बीज भीषण युद्ध हुआ जिसमें मऊ नट का भंजन (मारा गया) हुआ और इस क्षेत्र को मऊ नट भंजन कहा गया जो कालान्तर में मऊनाथ भंजन हो गया।गया मूल निवासी भर हैं।
 
मऊनाथ भंजन के इस नामकरण को लेकर अन्य विचार भी है। कुछ विद्वान इसे संस्कृत शब्द ‘‘मयूर’’ का अपभ्रंश मानते हैं। मऊ नाम की और भी कई जगहें हैं, लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ स्थानीय विशेषण लगे हुए हैं; जैसे- फाफामऊ, मऊ-आईमा, जाज-मऊ आदि है।