"स्वनिम": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 10:
 
== स्वनिम व्यवस्था ==
किसी भी भाषा के स्वनिम अपने वितरण में व्यतिरेकी (contranstive) होते हैं। इसका आशय यह है कि जहाँ एक की उपस्थिति होगी वहाँ दूसरा नहीं आ सकता। जैसे - कमल में म और ल के वितरण को ल और म से बदल दें तो वह कलम हो जाएगा, इस प्रकार स्वनिम परिवर्तन से अर्थ परिवर्तन भी घटित होता है। इसका आशय यह है कि जहाँ एक की उपस्थिति होगी वहाँ दूसरा नहीं आ सकता। जैसे - कमल में म और ल के वितरण को ल और म से बदल दें तो वह कलम हो जाएगा, इस प्रकार स्वनिम परिवर्तन से अर्थ परिवर्तन भी घटित होता है। हालांकि किसी स्वनिम के सहस्वन या उपस्वन (Allophone) का वितरण व्यतिरेकी न होकर परिपूरक (Complementary) होता है। वितरण की एक ऐसी भी अवस्था है जब ध्वनि में अन्तर होने पर भी अर्थ-परिवर्तन नहीं होता, इसको मुक्त वितरण (Free Distribution) कहते हैं। हिन्दी में स्वनिम के ऐसे प्रयोग मिल जाते हैं; यथा- दीवार > दीवाlल, ग़म > गम। यहाँ प्रथम शब्द में / र / - / ल और द्वितीय में / ग / - / ग / ध्वनियों के अतिरिक्त पूरा परिवेश समान है। इसके लिए '''~''' चिन्ह का प्रयोग करते हैं; यथा- दीवार > दीवाल / र / ~ / ल।<ref>{{cite book|title=Hindi Bhasa Ki Sanrachna|url=https://books.google.com/books?id=NBNjU2sgCsgC&pg=PA12|publisher=Vani Prakashan|pages=12–}}</ref>
 
किसी शब्द के आदि, मध्य और अन्त में प्रयुक्त होने पर यदि अर्थ-परिवर्तन हो, तो स्वनिम रूप निश्चित हो जाता है; यथा - 'आप' शब्द के आदि और अन्त में 'ज' प्रयोग से अर्थ-परिवर्तित रूप इस प्रकार मिलते हैं -