"स्वनिम": अवतरणों में अंतर

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== उपयोगिता ==
 
* 1.# स्वनिम ज्ञान से भाषा के शुद्ध उच्चारण में सरलता होती है। स्वनिम के माध्यम से ही किसी भाषा की मूल ध्वनियों का ज्ञान होता है। इस प्रकार भाषा-शिक्षण में स्वनिम ज्ञान का विशेष महत्त्व है।
 
* 2.# स्वनिम उच्चरित भाषा से सम्बन्धित है। इनके माध्यम से भाषा की ध्वनियों की संख्या का नियन्त्राणनियंत्रण होता है। इस प्रकार के नियन्त्राणनियंत्रण से भाषा उच्चारण में समुचित व्यवस्था बनी रहती है। स्वनिम व्यवस्था से नई ध्वनियों के आगम पर उनका सीखना सम्भवसंभव और सरल होता है।
 
* 3.# स्वनिम भाषा की अर्थ भेदक इकाई है। भाषा की अन्य इकाइयाँ - शब्द, पद, वाक्य आदि का ज्ञान तब तक सम्भवसंभव नहीं होता जब तक स्वनिम का ज्ञान न हो, क्योंकि भाषा की परवर्ती वृहत्तर इकाइयाँ स्वनिम पर आधारित हैं।
 
* 4.# लिपि-निर्माण में स्वनिम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भाषा के स्वनिमों के निश्चयन के पश्चात्पश्चात ही लिपि का निर्माण होता है। इस प्रकार स्वनिम को लिपि का मूलाधार कह सकते हैं।
 
* 5.# आदर्श लिपि का निश्चय ही स्वनिम के माध्यम से होता है। जिस लिपि में एक स्वनिम के लिए एक लिपि चिह्न हो, उसे आदर्श लिपि कहतेकह सकते हैं।
 
* 6# स्वनिम के माध्यम से ही अन्तर्राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय लिपि (I.N.P.A) का रूप सामने आया है। सभी भाषाओं के विभिन्न स्वनिमों के लिए इसमें समुचित रूप से एक-एक चिन्हचिह्न की व्यवस्था होती है। इस प्रकार भाषा के शुद्ध उच्चारण, [[आदर्श लिपि]] और [[अन्तरराष्ट्रीय लिपि]] निर्माण आदि में स्वनिम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।<ref name="ध्वनिविज्ञान">{{cite book |last1=शर्मा |first1=देवेन्द्रनाथ, दीप्ति |title=भाषाविज्ञान की भूमिका |date=1966 |publisher=राधाकृष्ण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |isbn=978-81-7119-743-9 |edition=2018}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==