"शास्त्रीय नृत्य": अवतरणों में अंतर
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{{मुख्य|कथक}}
[[चित्र:Sharmila Sharma et Rajendra Kumar Gangani 2.jpg|thumb|right|200px|शर्मीला शर्मा और राजेन्द्र कुमार कथक करते हुए]]
कथक की शैली का जन्म [[ब्राह्मण]] पुजारियों द्वारा हिन्दुओं की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें कथिक कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई तथा एक नृत्य रूप बन गया। उत्तर भारत में मुगलों के आने पर इस नृत्य को शाही दरबार में ले जाया गया और इसका विकास ए परिष्कृत कलारूप में हुआ, जिसे मुगल शासकों का संरक्षण प्राप्त था और कथक ने वर्तमान स्वरूप लिया। इस नृत्य में अब धर्म की अपेक्षा सौंदर्य बोध पर अधिक बल दिया गया।
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