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| [[हिन्दी]], [[उर्दु]]संस्कृत
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| '''[[राजवंश]]'''
| [[पांचाल]] ([[महाभारत]] कालीन)<br />[[मुगल]] (1526-1736)<br />[[रोहिल्ला]]रोहिला (1736-1858)राजपूत
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| '''ऐतिहासिक [[राजधानी]]'''
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'''रोहिलखंड या रुहेलखण्ड''' [[उत्तर प्रदेश]] के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।<ref>[http://encyclopedia.jrank.org/RHY_RON/ROHILKHAND.html Encyclopædia Britannica Eleventh Edition: Rohilkhand]</ref><ref>[http://www.1911encyclopedia.org/Rohilkhand Rohilkhand]{{1911}}</ref>.
 
रोहिलखंड [[गंगा]] की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर [[उत्तराखंड]] और [[नेपाल]] उत्तर में हैं। पूर्वी ओर [[अवध]] है। इसका नाम यहां की एक जनजाति रोहिल्ला के नाम पर पड़ा। [[महाभारत]] में इसे मध्यरोह देशशब्द केअवरोह नामधातु से जानालिया गया है।<ref>[http://www.britannica.com/eb/article-9083753/Rohilkhandहै Encyclopædiaजिसका Britannicaअर्थ Online:है Rohilkhand]</ref>.चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान यक्त ओर द्रहयु के वंशजो द्रोही रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।
 
तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।
 
रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।
 
रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)
 
रोहिला एक संघ था, भारत
 
के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।
 
रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं
 
वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है
 
*रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
 
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
 
*वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
 
सुन्दर बलिष्ठ
 
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
 
इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है
 
रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे
 
उनका प्रवर गोत्र काठी था
 
इस कटेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सामंत थे
 
उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे
 
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
 
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपत/ गहलोत
 
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मुसले
 
6- कतेहरिया/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार
 
12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी प्रत्येक गोत्रो से थे
 
सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए
 
(वासुदेवशरण अगरवाल)
 
इतिहास कार
 
हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे
 
आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है
 
जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये
 
जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए
 
काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे
 
महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था
 
काठेर रोहिल्लख़ंड राजपूत!
 
ये कतेहरिया काठी निकुम्भ वन्स के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए
 
नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे
 
सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया
 
राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया
 
परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए
 
क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची
 
रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया
 
चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो
 
पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया
 
मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था
 
निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी
 
राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये
 
थे निहत्थे लड़े बहुत पंरन्तु मारे गए
 
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ
 
रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी
 
किले को मुसलमान घेर चुके थे
 
रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ
 
हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावलि में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी
 
कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में
 
जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था
 
राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान
 
एक शौर्य दिवस
 
रक्षाबंधन एक गोरव गाथा
 
आज से 763 वर्ष पूर्व दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर
 
यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है
 
रोहिला क्षत्रिय वास्तव में
 
विशुद्ध क्षत्रिय राजवंस है
 
एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है
 
इतिहास इस बात का साक्षी है
 
रोहिले क्षत्रियो ने आज तक
 
कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कोम पर जीते जी आंच नहीं आने दी
 
800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है
 
विधर्मी का संघार किया है
 
शाका और * जौहर* किया है
 
परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।
 
रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु
 
इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*
 
रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
 
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
 
*वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
 
सुन्दर बलिष्ठ
 
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
 
🤺🤺🤺
 
अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले
 
इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ
 
और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस
 
का उदय हुआ
 
चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए
 
इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला
 
द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है
 
भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट
 
ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया
 
रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )
 
यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही
 
यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था
 
इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे
 
इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में परवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया
 
कठ गणराज्य
 
क्षुद्रक गणराज्य
 
मालव गणराज्य
 
तक्षक गणराज्य
 
अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
 
गुजरात में कठियावाद
 
पंचाल में कटेहर राज्यों की स्थापना की
 
पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धे राज्य की स्थापना की
 
यह क्षत्रीय यहाँ पर
 
कठेहरिया/, rohile रोहिले कहलाये
 
(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)
 
(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)
 
रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*
 
*रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला अर्थात--?
 
रूह ( उर्दू/ फ़ारसी/ अरबी) + ला --
 
आत्मा+ ला----?
 
ला--का अर्थ वाला
 
What is the difference between
 
* rohila* &*ruhela*
 
 
U
 
राजा रणवीर सिंह के समय रोहिल खंड की राजधानी रामपुर में थी
 
1702 से हिन्दू रोहिले राजपूतो की राजधानी बरेली में हुई
 
महान राजा इन्दर सेन
 
 
/इन्दर गिरी जी महाराज थे उन्होंने ही 1761 विक्रमी या 1702 इसवी में रोहिल खंड। की पश्चिमी सीमा पे सहारनपुर में रोहिला किला का निर्माण कराया था🙏🏽
 
इस कटेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सामंत थे
 
उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे
 
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
 
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपत/ गहलोत
 
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मुसले
 
6- कतेहरिया
 
/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🤺🤺🤺🤺🤺🤝🤝👍🏽
 
 
राजपूतो की यह रोहिला खाफ सदैव संघर्ष करती रही और दिल्ली सुल्तान कभी भी 16वी सदी तक पूर्णतया रोहिले राजपूतो को जीत नही पाए
 
हरीसिंह खड्ग सिंह राव नरसिंह आदि जगत सिंह बर्लदेव बाँसदेव बरेली स्थापना तक रोहिले भारी पड़े और मुल्ला देखते रहे खड़े खड़े
 
अकबर ने अफगानों के हाथों धोखे से रोहिला राजा को मरवाया ओर अलीमुहम्मद आदि ने रहमत खा रुहेला ने रोहिला राजपूतो से रोहिलखण्ड को छीन लिया और रूहेलखंड कहने लगे उर्दू रूह शब्द है
 
फिर 18 वी सदी में रोहिले संगठित हुए और 1702 में बरेली को स्वतंत्र रोहिलखण्ड राज्य घोषित किया 1720 तक शासन किया
 
 
Refrences--
 
भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
 
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974
 
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
 
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
 
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
 
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
 
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
 
7- इतिहास रोहिला राजपूत
 
डॉक्टर के सी सेन
 
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
 
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
 
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
 
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
 
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
 
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
 
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला
 
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका
 
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
 
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश
 
महेश सिंह कठायत नेपाल
 
 
जय हिंद जय राजपूताना जय रोहिलखंड देश के नाम से जाना गया है।<ref>
 
== इतिहास ==