"क़ुरआन की आलोचना": अवतरणों में अंतर

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== आलोचना ==
क़ुरान एक सामाजिकमजहबी किताब हेहै ! मुसलमान क़ुरान केकी हिसाबहिदायतो से जीवनको जीतेमानते हेहै ! पर इसके कुछ तथ्य आज बिलकुल प्रामाणिक नही हेलगते जैसे "ब्याज हराम है "
 
१. क़ुरान मुस्लिम को बैंकिंग की सुविधा से वंचित कर देते हें क़ुरान के कुछ नियमो के वजह से मुस्लिम बैंकिंग का इस्तेमाल करने से कतराते हें
 
२. आज कल फैले आतंकवाद में भी लोग क़ुरान कोके ग़लत कहतेमतलब हेंनिकालते है जैसे जिहाद !
 
कुछ कट्टरपन्थी क़ुरान की ग़लत व्याख्या कर मुस्लिम युवको को आतंकवाद की ओर आसानी से धकेल देते हें
 
 
 
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