"रुक्मिणी": अवतरणों में अंतर

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रुक्मिणी (या रुक्मणी) भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी और रानी हैं, [1] द्वारका के राजकुमार कृष्ण ने उनके अनुरोध पर एक अवांछित विवाह को रोकने के लिए उनका अपहरण कर लिया और उनके साथ भाग गए और उन्हें दुष्ट शिशुपाल (भागवत पुराण में वर्णित) से बचाया। रुक्मिणी कृष्ण की पहली और सबसे प्रमुख रानी है। रुक्मिणी को भाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।
 
जन्म
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तो उस समय वह स्त्री चिल्ला चिल्ला कर के अपने समाज को अपने परिजनों को सहायता के लिए पुकारती है जबकि यहां इस परिस्थिति में यह सब कुछ नहीं हुआ रुक्मणी जी ने स्वयं श्री कृष्ण जी को बुलाया और वह स्वयं उनका हाथ पकड़कर रथ पर विराजमान भी हुई थी अतः यह स्वयं सिद्ध स्वयंवर है।
 
वह इस विवाह के पक्ष में थी।इसमें विवाह की जो दो आवश्यक अध्यात्मवादी शर्ते हैं उनमें से केवल एक ही पूरी हो रही है।
रुकमणी जी इस विवाह के पक्ष में थी।
 
रुकमणी जी इस विवाह के पक्ष में थी।
 
कोई इस विवाह के पक्ष में नहीं था तो वह केवल रुक्मणी जी का भाई राजकुमार रुकमि था।
यहां पर जो विवाह संपन्न हुआ उसे शास्त्र भले ही राक्षस विवाह की श्रेणी में रखते हैं परंतु वह एक प्रकार से स्वयंबर भी था ।था।
 
यहां पर जो विवाह संपन्न हुआ उसे शास्त्र भले ही राक्षस विवाह की श्रेणी में रखते हैं परंतु वह एक प्रकार से स्वयंबर भी था ।
 
और इस श्लोक मैं भी यहां प्रतिपादित हो रहा है कि रुकमणी जी ने श्रीकृष्ण जी को पत्र लिखकर के बुलाया था।
तो इसे एक प्रकार का स्वयंवर भी कह सकते हैं और स्वयंवर कभी भी निंदनीय नहीं रहा है भारतीय इतिहास में,प्राचीन समाज में।।
 
तो इसे एक प्रकार का स्वयंवर भी कह सकते हैं और स्वयंवर कभी भी निंदनीय नहीं रहा है भारतीय इतिहास में,प्राचीन समाज में।।