"समानता": अवतरणों में अंतर

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समानता की परिभाषा<ref>{{Cite web|url=https://www.rajnitivigyan.in/2018/02/justice-meaning-and-definition.html?m=1|title=समानता का अर्थ एवं परिभाषा|last=|first=|date=|website=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref> करना जरा कठिन है। यह मूर्त्त की अपेक्षा बहुत अधिक अमूर्त्त है। ज्यादातर लोग इसे अचेतन रूप से उन भावों से जोड़ते हैं जो ‘वही’, ‘एक-जैसा’, ‘न्यायोचित’ आदि शब्दों से संप्रेषित होते हैं। एच.जे. लास्की का कहना है, ‘राजनीति विज्ञान के पूरे क्षेत्र में कोई भी विचार’ समानता से ‘अधिक कठिन नहीं है।’<ref> एच.जे. लास्की, ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स, पृ. 152</ref>
 
[[रूसो]] प्राकृतिक और पारंपरिक असमानताओं में भेद करते थे। प्रकृति-प्रदत्त असमानताएँ (उदाहरण के लिए एक आदमी लंगड़ा या अंधा है और दूसरा ऐसा कुछ नहीं। प्राकृतिक असमानताएँ हैं, समाज द्वारा सृजित असमानताएँ (जैसे जाति, लिंग, अमीर-गरीब, मजदूर-पूँजीपति, मालिक-नौकर आदि) पारंपरिक असमानताएँ हैं। समाजवादियों और मार्क्सवादियों का कहना है कि पारंपरिक असमानताओं, खासतौर से पारंपरिक आर्थिक असमानताओं में इतनी शक्ति होती है कि वे तमाम प्राकृतिक असमानताओं को ढक देती हैं। [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] कहते हैं:
 
:‘मैं''मैं क्या हूँ और मुझमें क्या योग्यता है, यह किसी भी तरह मेरी वैयक्तिकता से तय नहीं होता। मैं कुरूप हूँ, लेकिन मैं अपने लिए सबसे रूपवती स्त्रियों को खरीद सकता हूँ। इसलिए मैं कुरूप नहीं हूँ, क्योंकि पैसा कुरूपता के प्रभाव को - उसकी बाधक शक्ति को - शून्य कर देता है। मेरी व्यक्तिगत खामी यह है कि मैं लंगड़ा हूँ, लेकिन पैसा मेरे लिए दो दर्जन पैर जुटा देता है। इसलिए मैं लंगड़ा नहीं हूँ। मैं बेईमान, काइयाँ और मूर्ख हूँ, लेकिन पैसे की इज्जत होती है, इसलिए जिसके पास वह है, उसकी इज्जत होती है।... मैं बेदिमाग हूँ, लेकिन असली दिमाग पैसा है, इसलिए जिसके पास पैसा है वह बेदिमाग कैसे हो सकता है? इसके अलावा, वह चतुर लोगों को अपने लिए खरीद सकता है और जिसके बस में चतुर व्यक्ति हैं वह क्या चतुर व्यक्ति से भी अधिक चतुर नहीं है?''<ref> कार्ल मार्क्स, इकोनॉमिक एंड फिलोसोफिकल मेन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844, मास्को, 1974, पृ. 120-21।</ref>
 
सर्वाधिक प्रभावशाली सकारात्मक चिंतकचिन्तक [[लास्की]] ने समानता के लिए निम्नलिखित स्थितियों को आवश्यक बतायाः
 
# समाज में [[विशेषाधिकार|विशेषाधिकारों]] का अंतअन्त,
# सबके लिए अपने व्यक्तित्वों की समस्त संभावना का विकास करने के पर्याप्त अवसर,
# सभी के लिए सामाजिक लाभ पाने की सुविधा, जिसमें पारिवारिक स्थिति या धन अथवा उत्तराधिकार आदि के आधार पर कोई प्रतिबंध न हो,
# आर्थिक और सामाजिक शोषण की अनुपस्थिति।
 
हाल में [[ब्रायन वर्नन]] ने समानता की एक व्यापक अवधारणा प्रस्तुत करते हुए सुझाया है कि समानता में निम्नलिखित घटक अवधारणाओं का समावेश होना चाहिएः
 
* '''व्यक्तियों के बीच मूलभूत समानता''', जिसकी अभिव्यक्ति, उदाहरणार्थ, इस तरह के कथनों में होती हैः ‘ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं‘।
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* '''स्थितियों की समानता''', अर्थात् प्रासंगिक सामाजिक समूहों के लिए जीवन के लिए जरूरी स्थितियों को समान बनाने का प्रयत्न हो। उदाहरण के लिए, यदि कुछ लोगों को जीवन-यात्रा की शुरूआत मूलभूत आर्थिक या अन्य प्रकार की मूलभूत निर्योग्यताओं से करनी पड़े और जीवन की दौड़ का मार्ग समान न हो तो यह कहना काफी नहीं है। स्पर्धा तो पूरी तरह खुली हुई है।
 
* '''परिणाम की समानता''', या दूसरे शब्दों में ऐसे परिणामों की समानता जिनमें उन असमानताओं को, जिनके साथ हम आरंभआरम्भ करते हैं, अंततःअन्ततः सामाजिक समानताओं में बदल देने का प्रयत्न निहित हो। समानता के मुख्य रूप से चार पहलू हैं : कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक।
 
== कानूनी समानता==