"रत्नसिंह": अवतरणों में अंतर
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छो his ruling time is 1302 to 1303. which is also stated in below description this topic |
छो his ruling time is 1302 to 1303. so it has to be thirteenth instead of fourteenth |
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== परिचय तथा इतिहास ==
[[बप्पा रावल]] के वंश के अंतिम शासक रावल रत्नसिंह 'रावल समरसिंह' के पुत्र थे तथा
सुप्रसिद्ध इतिहासकार महामहोपाध्याय रायबहादुर [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] ने कर्नल टॉड की भूल स्पष्ट करते हुए रावल रत्नसिंह की ऐतिहासिकता सिद्ध की। ओझा जी ने सारी भ्रांतियाँ तथा सच्चाई स्पष्ट करते हुए लिखा है कि "रावल समरसिंह के पीछे उसका पुत्र रत्नसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठा। उस को शासन करते थोड़े ही महीने हुए थे, इतने में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया और छः महीने से अधिक लड़ने के अनन्तर उसने किला ले लिया। मेवाड़ के कुछ ख्यातों, राजप्रशस्ति, महाकाव्य और कर्नल टॉड के राजस्थान में तो रत्नसिंह का नाम तक नहीं दिया। समरसिंह के बाद करण सिंह का राजा होना लिखा है, परन्तु करणसिंह (कर्ण) समरसिंह के पीछे नहीं, किन्तु उससे ८ पीढ़ी पहले हुआ था। मुहणोत नैणसी अपनी ख्यात में लिखता है कि रतनसी (रत्नसिंह) पद्मणी (पद्मिनी) के मामले में अलाउद्दीन से लड़कर काम आया; परन्तु वह रत्नसिंह को एक जगह तो समरसी (समरसिंह) का पुत्र और दूसरी जगह अजैसी (अजयसिंह) का पुत्र और भड़लखमसी (लक्ष्मणसिंह) का भाई बतलाता है, जिसमें से पिछला कथन विश्वास-योग्य नहीं है, क्योंकि लखमसी अजैसी का पुत्र नहीं किन्तु पिता और सीसोदे का सरदार था। इस प्रकार रत्नसिंह लखमसी का भाई नहीं किंतु मेवाड़ का स्वामी और समरसिंह का पुत्र था, जैसा कि राणा कुंभकर्ण के समय के वि० सं० १५१७ (ई० स० १४६०) के कुंभलगढ़ के शिलालेख और एकलिंगमाहात्म्य से पाया जाता है। इन दोनों में यह भी लिखा है कि समरसिंह के पीछे उसका पुत्र रत्नसिंह राजा हुआ। उसके मारे जाने पर लक्ष्मणसिंह चित्तौड़ की रक्षार्थ म्लेच्छों (मुसलमानों) का संहार करता हुआ अपने सात पुत्रों सहित मारा गया।"<ref>उदयपुर राज्य का इतिहास, प्रथम खंड, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर, द्वितीय संस्करण-1999, पृ०-179-80.</ref>
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