"दमोह ज़िला": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
दमोह नाम रानी manikarnikaदमयंती के नाम पर रखा गया है
दमोह का महत्व 14वीं शताब्दी से रहा है जब खिलजी ने क्षेत्रीय प्रशासनिक केंद्र को चंदेरी के बटियागढ़ से दमोवा (दमोह) स्थानातंरित किया। दमोह मराठा गर्वनर की सीट थी। ब्रिटिश काल के बाद यह मध्य प्रांत का भाग हो गया। इसके बाद 16 सौ ईसवी में गोंड वंश के महाराजा संग्राम शाह मरावी के 52 गढ़ों में शामिल था। जिसे उनकी पुत्र बधू महारानी दुर्गावती ने गोंड़वाना साम्राज्य का राजपाट चलाया। बाद में महारानी दुर्गावती की लड़ाई anil raiअकबर के सेनापति आसफखां से हुई थी जिसमें 15 बार युद्ध किया और 16वे युद्ध में आसफ खा से परास्त हो गए और यह गोंड़वाना की क्षति के साथ 24 जून सन 1664 में वीरगति को प्राप्त हुई। तथा 1867 में इसे म्यूसिपालिटी बना दिया गया था। यहां आयल मिल, हैण्डलूम तथा धातु के बर्तन, बीडी-सिगरेट, सीमेंट तथा सोने-चांदी के जेवर आदि बनाए जाते हैं। दमोह के आसपास बड़ी संख्या में पान के बाग भी है। यहां से इसका निर्यात भी होता है। यहां पर नागपंचमी पर वार्षिक मेला आयोजित होता है तथा जनवरी में जटाशंकर मेले का भी आयोजन होता है। यहां पर पशु बाजार लगता है तथा कई छोटे उद्योग भी है। साथ ही हथकरघा और मिट्टी के बर्तन भी बनाए जाते हैं। दमोह जिला 2816 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में उत्तर से दक्षिण तक फैला है। साथ ही चारों ओर पहाड़ियों (भाऩरेर ऋणी) तथा जंगल से घिरा हुआ है। जिले की अधिकांश भूमि उपजाऊ है। जिले में मु्ख्यतः दो नदियां सुनार और बैरमा बहती हैं। जिले में मुख्यतः नदियों से ही सिंचाई की जाती हैं।
 
==विकास==