"महमूद ग़ज़नवी": अवतरणों में अंतर
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वह पिता के वंश से तुर्क था पर उसने [[फ़ारसी भाषा]] के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाँलांकि उसके दरबारी कवि फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की पर वो हमेशा कवि का समर्थक नहीं रहा था। [[ग़ज़नी]], जो मध्य अफ़गानिस्तान में स्थित एक छोटा शहर था, को उन्होंने साम्राज्य के धनी और प्रांतीय शहर के रूप में बदल गया। बग़दाद के इस्लामी ([[अब्बासी]]) ख़लीफ़ा ने उनको सुल्तान की पदवी दी। Bagdaad ke khalifa न यामीन-उद-दौला और
अमीन-उल-मिल्लत की अपद पदवी दी
पंक्ति 29:
हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण करना तथा इनके मंदिरों को लूटना हिन्दुओं को कमजोर तथा इनको मारना विशेष मूल रहा।ये हिन्दुओं के लिए अभिशाप था ।
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न हुस्न में रहीं वो शोखियाँ, न इश्क़ में रहीं वो गर्मियाँ;
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(ऐ शाह महमूद, देशों को जीतने वाले; अगर किसी से नहीं डरता हो तो भगवान से डर)।
इन पंक्तियों में उसके जनकों (ख़ासकर माँ) के बारे में अपमान जनक बातें लिखी थी। लेकिन, कुछ दिनों के बाद, ग़ज़नी की गलियों में लोकप्रिय इन पंक्तियों की ख़बर जब महमूद को लगी तो उसने दीनारों का भुगतान करने का फैसला किया। कहा जाता है कि जब [[तूस]] में उसके द्वारा भेजी गई मुद्रा पहुँची तब शहर से फिरदौसी का जनाजा निकल रहा था। फिरदौसी की बेटी ने राशि लेने से मना कर दिया।
== संदर्भ और विवरण ==
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