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[[शुंग राजवंश|शुंग वंश]] के अन्तिम शासक देवभूति के मन्त्रि वसुदेव ने उसकी हत्या 73 ई पू में कर दी तथा मगध की गदी पर '''कण्व वंश''' की स्थापना की। कण्व वंश ने 75 इ.पू. से 30 इ.पू. तक शासन किया। वसुदेव [[पाटलिपुत्र]] के कण्व वंश का प्रवर्तक था। वैदिक धर्म एवं संस्कृति संरक्षण की जो परम्परा शुंगो ने प्रारम्भ की थी। उसे कण्व वंश ने जारी रखा। इस वंश का अन्तिम सम्राट सुशर्मा कण्य अत्यन्त अयोग्य और दुर्बल था। और मगध क्षेत्र संकुचित होने लगा। कण्व वंश का साम्राज्य बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित हो गया और अनेक प्रान्तों ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया तत्पश्चात उसका पुत्र नारायण और अन्त में सुशर्मा जिसे [[सातवाहन|सातवाहन वंश]] के प्रवर्तक सिमुक ने पदच्युत कर दिया था। इस वंश के चार राजाओं ने ७५इ.पू.से ३०इ.पू.तक शासन किया।
इस वंश के चार शासक हुए - वासुदेव (संस्थापक),,भूमिपुत्र, नारायण, सुशर्मा(अन्तिम)
पुराणों में इन्हें शुंगभृत्य कहा गया है। यह ब्राहम्ण वंश था। कण्व वंशी शासकों का राज्य मगध एवं उसके आसपास के क्षेत्र तक सीमित रह गया था।