"अंग तंत्र": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:SystemExample.jpg|thumb|300px|तंत्र का एक उदाहरण - तंत्रिका तंत्र ; इस चित्र में दिखाया गया है कि यह तंत्र मूलत: चार अंगों से मिलकर बना है : [[मस्तिष्क]], प्रमस्तिष्क (cerebellum), मेरुदण्ड (spinal cord) तथा तंत्रिकाएं (nerve)]]
नाना प्रकार के [[ऊतक]] (tissue) मिलकर [[शरीर]] के विभिन्न [[अंग (शरीर रचनाशारीरिकी)|अंग तंत्र]] (organ system) का निर्माण करते हैं। कई अंग तंत्र मिलकर [[जीव]] (जैसे, मानव शरीर) की रचना करते हैं।
 
== मानव शरीर के विभिन्न तंत्र ==
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मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित तंत्रों द्वारा होता है :
 
(1) [[मानव कंकाल|कंकाल तंत्र]], (Skeletal system)
 
(2) [[संधि (शरीररचना)|संधि तंत्र]],
 
(3) [[पेशीतन्त्र|पेशीय तंत्र]], (Muscular system)
 
(4) रुधिर [[परिसंचरण तंत्र]], (Circulatory system)
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(5) आशय तंत्र :
* (क) [[श्वसन तंत्र]], (Respiratory system)
* (ख) [[मानव का पोषण नाल|पाचन तंत्र]], (Digestive system)
* (ग) [[मूत्र]] एवं [[प्रजनन तंत्र|जनन तंत्र]], (Urinary system and Reproductive system)
 
(6) [[तन्त्रिका तन्त्र|तंत्रिका तंत्र]] (Nervous system), तथा
 
(7) [[ज्ञानेन्द्रियाँ|ज्ञानेन्द्रिय तंत्र]]।
 
हमारे शरीर के लिए सभी तंत्र महत्वपूर्ण है |
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== संधि तंत्र ==
[[चित्र:909 Types of Synovial Joints esp.jpg|right|thumb|350px]]
दो या अधिक अस्थियों के जोड़ को [[संधि (व्याकरण)|संधि]] कहते हैं। इसमें स्नायु (ligaments) सहायक होते हैं। संधियाँ कई प्रकार की होती हैं। गीत के अनुसार इनके भेद निम्नलिखित हैं :
 
* चल संधियाँ, जैसे स्कंध संधि (Shoulder joint)। चल संधियों के प्रभेदों में हैं
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संधियों के ऊपर से पेशियाँ गुजरती हैं तथा उन्हें गति प्रदान करती हैं। संधियों की अपनी रुधिर वाहिकाएँ होती हैं। संधियों का विलगना चोट लगने से होता है। इसे संधिभ्रंश कहते हैं। संधियों की स्नायु पर आघात होने को मोच कहते हैं।
 
== [[पेशीतन्त्र|पेशी तंत्र]] ==
पेशियों का निर्माण कई पेशी तंतुओं के मिलने से होता है। ये पेशीतंतु पेशीऊतक से बनते हैं। पेशियाँ रचना एवं कार्य के अनुसार तीन प्रकार की होती हैं :
 
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== रुधिर परिसंचरण तंत्र ==
इस तंत्र में [[हृदय]], इसके दो अलिंद, दो [[निलय]], उनका कार्य, [[फुफ्फुसफेफड़ा|फुप्फुस]] में रुधिर शोधन तथा प्रत्येक अंगों को शुद्ध रुधिर ले जानेवाली धमनियाँ एवं हृदय में अशुद्ध [[रक्त|रुधिर]] को वापस लानेवाली [[शिरा|शिराएँ]] रहती हैं।
 
रुधिर परिसंचरण तीन चक्रों में विभक्त किया जा सकता है :
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रुधिर में प्लाज़्मा, लाल रुधिर कोशिकाएँ, श्वेत रुधिर कोशिकाएँ आदि रहती हैं। मानव के एक घन मिमि. रुधिर में 50,00,000 लाल रुधिर कोशिकाएँ तथा 6,000 से 9,000 तक श्वेत रुधिर कोशिकाएँ रहती हैं। शरीर में रुधिर नहीं जमता, पर शरीर से बाहर निकलते ही रुधिर जमने लगता है।
 
ऊर्ध्व एवं अध: महाशिराएँ समस्त शरीर के रुधिर को हृदय के दक्षिण में अलिंद में लाती हैं, जहाँ से रुधिर दक्षिणी निलय में जाता है। निलय से रुधिर हृदय के स्पंदन के कारण फुप्फुसीय धमनी द्वारा फुप्फुस में शोधन के लिए जाता है तथा शुद्ध होने के बाद वह फुप्फुसीय शिराओं द्वारा बाएँ अलिंद में आता है। बाएँ अलिंद के संकुचन के कारण रुधिर बाएँ निलय में जाता है, जहाँ से महाधमनी एवं उसकी शाखाओं द्वारा समस्त शरीर में जाता है। शिराओं में अशुद्ध रुधिर और धमनियों में शुद्ध रुधिर रहता है, पर फुप्फुसीय धमनी एवं वृक्क धमनी इसका अपवाद है। हृदय का स्पंदन एक मिनट में 72 बार होता है। हृदय हृदयावरण से आवृत रहता है। अलिंद तथा निलय के मध्य [[द्वार|कपाट]] रहते हैं, जो रुधिर को विपरीत दिशा में जाने से रोकते हैं।
 
== आशय तंत्र ==
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===[[श्वसन तंत्र]]===
इस तंत्र में श्वासोच्छ्वास क्रिया में काम करनेवाले समस्त अंगों की रचना का वर्णन आता है। इसमें नासा, [[गला|कंठ]], स्वरयंत्र, [[श्वास नलिका|श्वासनली]], श्वसनिका फुप्फुस, फुप्फुसावरण तथा उन पेशियों का, जो [[श्वासोच्छ्वास]] क्रिया कराती हैं, वर्णन मिलता है। इस तंत्र द्वारा रुधिर का शोधन होता है। मनुष्य एक मिनट में 16-20 बार श्वास लेता है।
 
===[[मानव का पोषण नाल|पाचन तंत्र]]===
इस तंत्र में वे सब अंग सम्मिलित हैं, जो भोजन के पाचन, अवशोषण, चयोपचय से संबंधित हैं, जैसे ओष्ठ, दाँत, जिह्वा, कंठ, अन्ननलिका, आमाशय, पक्वाशय, लघु, आंत्र, बृहत्, आंत्र, मलाशय, यकृत अग्न्याशय (pancreas) तथा लालाग्रंथियाँ। अन्न नलिका 10 इंच लंबी होती है तथा विशेषत: वक्ष गुहा में रहती है। आंत्र की लंबाई 20 फुट होती है। पक्वाशय अंग्रेजी के सी (C) के आकार का, अग्न्याशय के चारों ओर, 10 इंच लंबा होता है। [[यकृत]] उदर गुहा में ऊपरी तथा दाहिनी ओर रहता है। इसका भार किलोग्राम है तथा यह खंडों में विभाजित रहता है। इसके पास में पित्ताशय होता है। यकृत में पित्त का निर्माण होता है। उदर गुहा के ये सब अंग पेरिटोयिम कला से आवृत रहते हैं। इस कला के दो भाग होते हैं : एक वह जो गुहाभित्ति पर लगा रहता है, दूसरा आशयों पर संलग्न रहता है। यह कला फुप्फुसावरण तथा मस्तिष्कावरण के समान ही है। पेरिटोनियम कला की गुहा, इसके दो स्तरों के मध्य में होती है, जिसमें जल का पतला स्तर होता है, परंतु स्त्रियों में डिंबवाहिनी गुहा, गर्भाशय गुहा तथा योनि-गुहा द्वारा यह बाह्य वातावरण में खुलती है। इस पेरिटोनियम कला की परतों के द्वारा आशय उदर गुहा में लटके रहते हैं।
 
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मूत्राशय, मूत्रनली, प्रॉस्टेटग्रंथि तथा इनकी रुधिर वाहिनियाँ आदि इस तंत्र के अंतर्गत हैं। वृक्क के दो गोले कटि कशेरुक के दोनों ओर रहते हैं। ये रुधिर से मूत्र को पृथक् करते हैं। यह मूत्र, गविनियों द्वारा मूत्रालय में एकत्रित होता है तथा वहाँ से मानव के इच्छानुसार से बाहर निकलता है। गवनियों की लंबाई 10 इंच होती है। मूत्राशय भगास्थि के पीछे श्रोणि गुहा में रहता है तथा मूत्र के मात्रानुसार आकार में फैलता जाता है। पुरुषों में मूत्र नली की लंबाई 7 इंच तथा स्त्रियों में मूत्र नली की लंबाई 1 इंच होती हैं।
 
====[[प्रजनन तंत्र|जनन तंत्र]]====
पुरुषों एवं स्त्रियो में जनन तंत्र के भिन्न भिन्न अंग है। पुरुष के अंडकोष में दो अंड ग्रंथियाँ रहती हैं। यहाँ पर [[शुक्राणु]] का निर्माण होता है। ये शुक्राणु शुक्रवाहिनियों द्वारा श्रोणिगुहा स्थित शुक्राशयों में ले जाए जाते हैं। जहाँ शुक्राशय द्रव इनमें मिल जाता है। दोनों [[शुक्राशय]] मूत्रनली के पुरस्थ भाग में खुलते हैं। [[मैथुन]] द्वारा पुरुष अपने शुक्र का त्याग मूत्रनली द्वारा करता है। स्त्रियों में भगास्थि तथा मूत्राशय के पीछे स्थित ऊध्र्व, लंबा गर्भाशय स्थित है। श्रोणि गुहा में दोनों ओर बादाम के समान दो ग्रंथियाँ रहती हैं, जिन्हें डिंब ग्रंथियाँ कहते हैं। इनमें ग्राफियन पुटिका (Graafian follicle) से डिंब का निर्माण होता है। डिंब प्रति मास डिंब वाहिनियों द्वारा ग्रहण किया जाता है और वहाँ शुक्राणु द्वारा प्रफलित होने पर गर्भाशय में अवस्थित होकर, वृद्धि प्राप्त करता है, अथवा प्रति मास गर्भाशय अंतकंला के टूटकर निकलने से होनेवाले मासिक रुधिरस्राव के साथ, यह अप्रफलित डिंब बाहर फेंक दिया जाता है।
 
== [[तन्त्रिका तन्त्र|तंत्रिका तंत्र]]==
[[चित्र:Nervous_system_diagram-hi.svg|दाएँ|अंगूठाकार|[[होमो सेपियन्स|मानव]] का तंत्रिकातंत्र; केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (पीले रंग में) तथा परिधीय तंत्रिका तंत्र (नीले रंग में)]]
इसको दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :
*[[मस्तिष्क|केंद्रीय तंत्रिका तंत्र]] तथा
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''' स्पर्शोंद्रिय''' - इसके अंतर्गत त्वचा आती है। त्वचा से ही गरमी ठंढक, मृदुता, कठोरता, पीड़ा, स्पर्श आदि का ज्ञान होता है। त्वचा के दो भाग होते हैं : (1) बाह्य त्वचा तथा (2) अंतस्त्वचा। तलुए और हथेली में त्वचा की मोटाई मुख की त्वचा की मोटाई से 10 गुनी होती है। त्वचा शरीर को बाहर से आवृत्त कर रक्षा एवं मलविसर्जन भी करती है। त्वचा में एक स्तर रंजक कणों का भी होता है। त्वचा में रोमकूप तथा स्वेद ग्रंथियाँ भी होती हैं। त्वचा ताप का नियंत्रण भी करती है। इसी तरह त्वचा में अवशोषण का कार्य भी होता है। त्वचा में नख शय्या भी होती है।
 
==[[बालचिकित्सा|भ्रूण विज्ञान]]==
 
इसके अंतर्गत शुक्राणु, डिंब उनका निर्माण, सम्मिलन, गर्भाशय में स्थिति, पोषण, जरायु, अपरा का निर्माण, भ्रूण की साप्ताहिक एवं मासिक वृद्धि, भ्रूण के भिन्न भिन्न अंगों प्रत्यंगों, संस्थानों का निर्माण तथा यमल के निर्माण का संपूर्ण विषय आता है। आजकल इस संबंध में ज्ञान की अभिवृद्धि बहुत हो गई है, अत: यह अब एक भिन्न शास्त्र ही माना जाने लगा है। इसके अध्ययन के अंतर्गत [[आनुवंशिकी]], प्रायोगिक भ्रूण विज्ञान तथा रासायनिक भ्रूण विज्ञान भी आता है। जन्मजात विकृतियों का अध्ययन भी इसके अंतर्गत आता है। शरीर के मुख्य अंग हैं : शिर, ग्रीवा, वक्ष, उदर, हाथ और पैर होते हैं। '''शरीर की गुहाएँ''' हैं :