"अंश (वित्त)": अवतरणों में अंतर

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वित्त में, '''अंश''' अथवा '''शेयर''' का अर्थ किसी [[कंपनी|कम्पनी]] में भाग या हिस्सा होता है। एक कंपनी के कुल स्वामित्व को लाखों करोड़ों टुकड़ों में बाँट दिया जाता है। स्वामित्व का हर एक टुकड़ा एक शेयर होता है। जिसके पास ऐसे जितने ज्यादा टुकड़े, यानी जितने ज्यादा शेयर होंगे, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी उतनी ही ज्यादा होगी।
लोग इस हिस्सेदारी को खरीद-बेच भी सकते हैं। इसके लिए बाकायदा शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) बने हुए हैं। भारत में [[बंबई स्टॉक एक्सचेंज|बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज]] (बी॰एस॰ई॰) और [[नेशनल स्टॉक एक्सचेंज]] (एन॰एस॰ई॰) सबसे प्रमुख शेयर बाजार हैं।
 
== प्रकार ==
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== पार वैल्यु ==
पार वैल्यू किसी शेयर का अनुमानित मान (National वैल्यू) होता है, यानी कि वो कीमत जो उसे जारी करने वाली कंपनी की बैलेंस शीट में दर्ज होती है। आमतौर पर कंपनियाँ १० या १०० रुपये की पार वैल्यू रखती है। लेकिन कंपनियाँ कोई भी पार वैल्यू तय कर सकती हैं लेकिन वह १० के गुणक या अंश में होनी चाहिए जैसे कि १३.५। कंपनी इनीशियल इश्यू के बाद पार वैल्यू में बदलाव कर सकती है।<ref name="ऐसापैसा"/> कोई कंपनी पार वैल्यू से अधिक मूल्य के शेयर जारी कर सकती है, जिसे [[प्रीमियम]] कहा जाता है, यदि वह [[भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड|सेबी]] के लाभप्रदता मानदंड (''प्रॉफिटेबिलिटी क्राइटेरिया'') या लाभ देन सकने के पैमाने पर खरी उतरती है। इसका अर्थ ये हुआ कि कोई कंपनी जरूरी रकम उगाहने के लिए कम शेयर जारी कर पाएगी और साथ ही उसकी डिविडेंड लाएबिलिटी या लाभांश की देनदारी भी उसी के हिसाब से कम हो जाएगी। उदाहरण के लिये किसी कंपनी के शेयर्स की पार वैल्यू ५० रुपये हैं लेकिन कंपनी सेबी के प्रॉफिटैबिलिटी क्राइटेरिया पर खरी उतरती है इसलिए वो अपने शेयरों को ७५ रुपये की कीमत पर जारी कर सकती है। यानी २५ रुपये के प्रीमियम पर जारी कर सकती है। यहाँ ये ध्यान योग्य है कि कंपनी अपना लाभांश या डिविडेंड शेयर के पार या फेस वैल्यू पर घोषित करती है, चाहे वो शेयर कितने भी प्रीमियम पर जारी क्यों ना हुआ हो।
 
== शेयर का मूल्य ==
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अंश का वास्तविक स्वरूप सरलता से स्पष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रमंडल उसका निर्माण करने वाले अंशधारियों के समूह से सर्वथा भिन्न है। संस्थापित प्रमंडल (Incorporated Company) की अंशपूँजी (Capital stock) का होना सार्वत्रिक है, यद्यपि अनिवार्य नहीं। यह भी समान रूप से सार्वत्रिक है, अनिवार्य नहीं, कि पूँजी को अभिहितमूल्य (nominal value) के अंशों में बाँटा जाए। वह व्यक्ति जिसके पास इस प्रकार का अंश है, अंशधारी (Shareholder) कहलाता है। इसलिए प्रत्येक अंशधारी के पास प्रमंडल की पूँजी का एक भाग रहता है। लेकिन विधिक दृष्टि से अंशधारी उस उद्यम या कारखाने का आंशिक स्वामी नहीं है। उद्यम अंशधारियों की संपूर्ण पूँजी से कुछ भिन्न वस्तु हैं। प्रमंडल की समस्त परिसंपत्ति (Assets) उक्त सुसंगठित संस्थान में निहित है, उसे बनाने वाले व्यक्तियों में नहीं।
 
विधान की दृष्टि में अंशधारियों के कुछ अधिकारों और निहित स्वार्थों के साथ साथ कुछ दायित्व भी हैं। अंशधारी का हित या स्वार्थ महज चल संपत्ति से नहीं, वरन्‌ स्वयं प्रमंडल से होता है। यह स्वार्थ स्थायी ढंग का होता है। अंश प्रमंडल में अंशधारी का वह हित है जो दो दृष्टियों से धन की रकम के रूप में मापा जाता है, एक तो दायित्व और लाभांश की दृष्टि से, दूसरे ब्याज की दृष्टि से। और इसमें [[अंतर्नियमावली|प्रमंडल की अंतर्नियमावली]] (Article of Association) में निहित संविदाएँ भी सम्मिलित हैं। अंश मुद्रा या धन (money) नहीं, अपितु मुद्र के रूप में आँका गया वह हित है जिसमें विभिन्न अधिकार और दायित्व जुड़े हुए हैं। अंश अधिकारों या हकों का विद्यमान समूह है। उदाहरणार्थ, अंश के कारण अंशधारी प्रमंडल के लाभों का एक समानुपातिक भाग प्राप्त करने, अंतर्नियमों के आधार पर प्रमंडल के कारोबार में हाथ बँटाने, कारोबार की समाप्ति पर संपत्ति का आनुपातिक भाग पाने तथा सदस्यता के सभी अन्य लाभों का अधिकारी हो जाता है। अंश के कुछ दायित्व भी हैं। उदाहरणार्थ - प्रमंडल की परिसमाप्ति पर पूर्ण मूल्य की देयता। यह सभी अधिकार और दायित्व प्रमंडल के अंतर्नियमों द्वारा नियमित अधिकार और दायित्व शेयर या अंश का मूलभूत तत्व है।
 
== सन्दर्भ ==
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== इन्हें भी देखें ==
* [[अंशधारी|भागीदार]] या साझीदार या अंशधारक
 
== बाहरी कड़ियाँ ==