"अण्डमानी लोग": अवतरणों में अंतर

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== करेन ==
[[म्यान्मार|बर्मा]] और भारतवर्ष के सीमा क्षेत्र में करेन जन-जाति के लोग प्राय: उपद्रव मचाया करते थे--ब्रिटिश राज के दिनों में इनमें से अनेक लोगों को अण्डेमान में निर्वासित कर दिया गया। जब बर्मा को स्वतन्त्रता मिली तो इनमें से अनेक लोग अपने देश बर्मा पहुंच गये। मध्य अण्डेमान में माया बन्दर से लगभग ९ किलोमीटर की दूरी पर करेन लोगों की बस्ती है। बेबी नामक इस गांव में करेन लोगों के कई गिरजाघर हैं। गिरजागर में बच्चों के लिये एक ईसाई मिशन द्वारा स्थापित एक विद्यालय भी चलता है। इस बच्चों को करेन बोली के साथ-साथ अंग्रेजी, हिन्दी और धार्मिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाता है।
 
करेन लोग गोरे रंग के होते हैं--इनका मुंह गोल, नाक चपटी और कद नाटा होता है। ये शिकार के शौकीन, मेहनती और बड़े हट्टे-कट्टे होते हैं। स्त्री और पुरुष सभी लुंगी पहनते हैं। यह खुशी की बात है कि करेन लोग अपने पड़ोस की बस्तियों जैसे, लखनऊ, लटाव, रामपुर, दानापुर और पोखाडेरा में रहने वाले बंगालियों और अन्य भाषा-भाषियों के साथ हिन्दी में बातचीत करते हैं। बच्चों को विद्यालय में करेन, हिन्दी और अंग्रेजी के गीत आदि सिखाये जाते हैं।
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== मलयाली ==
[[केरल]] से अनेक [[मलयालम भाषा|मलयालम]] भाषी लोग आकर इन द्वीपों में बसे हैं। मालावार तट के मोपला लोगों के अलावा अनेक शिक्षक, लिपिक, अधिकारी, नर्सें आदि इन द्वीपों में आकर बस गये हैं। लगभग सभी उच्च अधिकारियों के निजी सहायक केरलवासी हैं। इन द्वीपों का जलवायु केरल के जलवायु से बहुत मिलता जुलता है। मलयालम भाषी वर्ग ने एक मत होकर अपने बच्चों के लिये पांचवी कक्षा के बाद अनिवार्य रूप से हिन्दी पढ़ाने की मांग की है। केरल वासी अपने साथ केरल की संस्कृति और कथाकली जैसी परम्पराओं का इन द्वीपों में प्रसार कर रहे हैं। मलयालम भाषी लोग मुख्य रूप से ओबरा ब्राज, मन्नार घाट, पद्मनाभ पुरम, स्वदेश नगर और हैडो आदि क्षेत्रों में केन्द्रित हैं।
 
== राँची लोग ==
इन द्वीपों में [[बिहार]], [[ओडिशा|उड़ीसा]], [[मध्य प्रदेश]] के मिलन स्थल [[छोटा नागपुर पठार|छोटा नागपुर]] क्षेत्र से द्वीपों में आए व्यक्तियों को "राँची लोग" का नाम दिया गया है। छोटा नागपुर क्षेत्र में राँची नामक पर्वतीय स्थल बिहार राज्य की ग्रीष्म ऋतु की राजधानी कही जाती है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग प्राय: ओरांव, मुण्डा और मिण्डारी बोलियां बोलते हैं। छोटा नागपुर की जनजातियां बहुत परिश्रमी और मन लगा कर काम करने वाली होती है। अण्डेमान के वन क्षेत्र, बहुत कुछ छोटानागपुर के धरातल से मेल खाते हैं। रांची मजदूर बहुत बड़ी संख्या में इन द्वीपों में आए हैं और ये मुख्य रूप से ठेकेदारों द्वारा जंगलों में काम करने के लिए नियुक्त किए गए हैं। जिन क्षेत्रों में बंगाली शरणार्थियों को खेती के लिए भूमि दी गई है वहां भी रांची श्रमिक बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। रांची मजदूरों की एक बहुत बड़ी बस्ती वाराटांग द्वीप में स्थित है। पोर्टब्लेयर, बाराटांग (ओरलकच्चा) और मायाबन्दर क्षेत्र में कई इसाई मिशन इन लोगों के बीच सेवाकार्य कर रहे हैं। इसाई मिशन द्वारा संचालित पोर्टब्लेयर का निर्मला उच्चतम माध्यमिक विद्यालय मुख्य रूप से रांची के लड़के-लड़कियों के लिए शिक्षा और छात्रावास की सुविधाएं प्रदान करता है। इन लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से दक्षिणी अण्डेमान और मध्य अण्डेमान से वन विकास तथा कृषि कार्यों में विशेष योगदान दिया है।
 
[[श्रेणी:अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह]]