"अत्तिला": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Attila-ChroniconPictum.jpg|thumb|right|सिंहासन पर अत्तिला हूण]]
'''अत्तिला''' ([[406]]-[[४५३|453]]) या '''अत्तिला हूण''' वर्ष [[434]] से अपनी मृत्यु तक [[हूण लोग|हूणों]] का राजा था। यह [[हूण साम्राज्य]] का नेता था यह मूल रूप से भारत में आये स्वेत हूंणों का ही वंशज था जो मूल रूप से गुर्जर वंश के थे हूंणों के परिवार के सदस्य कंषान [[गुर्जर कुषान/ड]] के परिवार के थे। [[जर्मनी]] से [[यूराल नदी]] और [[डैन्यूब नदी]] से [[बाल्टिक सागर]] तक फैला हुआ था। अपने राजकाल में यह [[पश्चिमी रोमन साम्राज्य|पश्चिमी]] और [[पूर्वी रोमनबाइज़ेंटाइन साम्राज्य|पूर्वी]] [[रोमन साम्राज्य]] का सबसे भयानक शत्रु था। इसे बाद के इतिहासकारों ने ' भगवान का कोड़ा' (Scourge of God.) कहा।
 
इसने दो बार [[बाल्कन|बाल्कन क्षेत्र]] पर हमला किया, [[गोल]] (आधुनिक [[फ़्रान्स|फ्रांस]]) में यह [[ऑर्लेयाँ]] तक पहुँच गया, पर इसने [[इस्तांबुल|इस्तानबुल]] या [[रोम]] पर कभी आक्रमण नहीं किया। लगभग सारे [[पश्चिमी यूरोप]] में इसे क्रूरता और लोभ के परम उदाहरण के रूप में याद किया जाता है, लेकिन कुछ ऐतिहासिक विवरणों और कहानियों में अटिला को महान सम्राट के रूप में दर्शाया गया है। [[नोर्स]] गाथाओं में अटिला की प्रमुख भूमिका है।
अत्तिला के पिता का नाम मुंदजुक था। उसके जन्म से कुछ पहले ही [[कैस्पियन सागर|कास्पियन सागर]] के उत्तरवर्ती प्रदेशों के हूण [[दानूब नदी]] की घाटों में जा बसे थे। अत्तिला के पिता का परिवार भी उन्हीं हूणों में से था। चाचा रुआस के मरने पर अपने भाई ब्लेदा के साथ अत्तिला दानूबतटीय हूणों का संयुक्त राजा बना। रुआस का शासनकाल हूणों के यूरोप में विशेष उत्कर्ष का था। उसने जर्मन और स्लाव जातियों पर आधिपत्य कर लिया था और उसका दबदबा कुछ ऐसा बढ़ा कि पूर्वी रोमन सम्राट उसे वार्षिक कर देने लगा। चाचा के ऐश्वर्य का अत्तिला ने प्रभूत प्रसार किया और आठ वर्षों में वह कास्पियन और बाल्टिक सागर के बीच के समूचे राज्यों का, राइन नदी तक, स्वामी बन गया।
 
450 ई. के पश्चात्‌ अत्तिला पूर्वी साम्राज्य को छोड़ पश्चिमी साम्राज्य की ओर बढ़ा। पश्चिमी साम्राज्य का सम्राट तब वालेंतीनियन तृतीय था। सम्राट की भगिनी जुस्ताग्राता होनोरिया ने अपने भाई के विरुद्ध सहायता के अर्थ अत्तिला को अपनी अँगूठी भेजी थी। इसे विवाह का प्रस्ताव मान हूणराज ने सम्राट से भगिनी के यौतुक में आधा राज्य माँगा और अपनी सेना लिए वह गाल को रौंदता, मेत्स को लूटता, ल्वार नदी के तट पर बसे और्लियाँ जा पहुँचा, पर रोमन सेना ने पश्चिमी गोथों और नगरवासियों की सहायता से हूणों को नगर का घेरा उठा लेने को मजबूर किया। फिर दो महीने बाद जून, 451 में इतिहास की सबसे भयंकर खूनी लड़ाइयों में से एक लड़ी गई, जब दोनों सेनाएँ सेन नदी के तट पर त्रॉय के निकट परस्पर मिलीं। भीषण युद्ध हुआ और जीवन में बस एक वार हारकर अत्तिला को भागना पड़ा।