"गरुड़ पुराण": अवतरणों में अंतर
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== संरचना ==
'गरूड़पुराण' में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में उपलब्ध [[पाण्डुलिपि]]यों में लगभग आठ हजार श्लोक ही मिलते हैं। गरुणपुराण के दो भाग हैं- पूर्वखण्ड तथा उत्तरखण्ड। पूर्वखण्ड में २२९ अध्याय हैं (कुछ पाण्डुलिपियों में २४० से २४३ तक अध्याय मिलते हैं)। उत्तरखण्ड में अलग-अलग पाण्डुलिपियों में अध्यायों की सख्या ३४ से लेकर ४९ तक है। उत्तरखण्ड को प्रायः 'प्रेतखण्ड' या 'प्रेतकल्प' कहा जाता है। इस प्रकार गरुणपुराण का लगभग ९० प्रतिशत सामग्री पूर्वखण्ड में है और केवल १० प्रतिशत सामग्री उत्तरखण्ड में। पूर्वखण्ड में विविध प्रकार के विषयों का समावेश है जो जीव और जीवन से सम्बन्धित हैं। प्रेतखण्ड मुख्यतः मृत्यु के पश्चात जीव की गति एवं उससे जुड़े हुए कर्मकाण्डों से सम्बन्धित है।
सम्भवतः गरुणपुराण की रचना [[अग्निपुराण]] के बाद हुई। इस पुराण की सामग्री वैसी नहीं है जैसा [[पुराण]] के लिए भारतीय साहित्य में वर्णित है। इस पुराण में वर्णित जानकारी [[गरुड़]] नेण [[विष्णु|विष्णु भगवान]] से सुनी और फिर [[कश्यप]] ऋषि को सुनाई।
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