"एम डी मदन": अवतरणों में अंतर

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'''एमडी मदन''' [[भारत]] के सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं शिक्षाविद थे। [[जमशेदपुर]] उनकी कर्मभूमि रही। भारत में [[सहकारितासहकार]]िता के आधार पर स्थापित एकमात्र [[महाविद्यालय (कॉलेज)|महाविद्यालय]] [[जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज|जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज]] है। पचास के दशक में स्व. एमडी मदन ने एक-एक सौ रुपये के शेयर बेचकर इसकी स्थापना की थी।
 
== परिचय ==
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उन दिनों कालेज खोलने में काफी दिक्कतें थीं। कालेज का अपना भवन हो, योग्य स्टाफ हो, खेल-कूद का मैदान हो, अपना कोर्स हो और विश्वविद्यालय के नाम कालेज एक अच्छी राशि जमा करे। स्वीकृति पाने पर भी कालेजों को कुछ खास अनुदान नहीं मिलता था। इसीलिए कुछ लोग अपने नाम पर कालेज खोलते थे या कोई ट्रस्ट यह काम अपने हाथ में लेता था। मदन साहब [[पारसी]] थे। उन्होंने यह बीड़ा उठाया और दिखा दिया कि पुरुषार्थी के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। उन्होंने [[केएमपीएम हाईस्कूल]] के कुछ कमरे केवल शाम में तीन घंटे के उपयोग के लिए लिया।
 
मदन साहब [[मुंबई विश्वविद्यालय|बंबई विवि]] के स्नातक थे। [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]] काफी अच्छी थी। वे स्वयं भी कुछ क्लास लेते थे। कभी-कभी परिसर में घास पर बैठकर छात्रों को पढ़ाते और देश, समाज आदि के विषय में काफी चर्चाएं करते। नाइट कालेज में सह शिक्षा थी। मदन ने लड़कियों को निर्भीक बनाया और [[नारी-सशक्तीकरण]] की नींव रखी। वे पैदल घूमते थे। विचारों पर नियंत्रण नहीं सह सकने के चलते उन्होंने [[टाटा इस्पात|टाटा स्टील]] के शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर के पद से त्याग पत्र दे दिया था। उन्हें पैसे के प्रति कोई मोह नहीं था। आखिरकार उनकी तपस्या से को-ऑपरेटिव कालेज का भवन जुबिली पार्क के पास बना। परिसर काफी विस्तृत था। पुस्तकालय और प्रयोगशालाओं के अलग-अलग भवन बने।
 
पुरानी मान्यता के अनुसार पारसी लोग शव को जलाते नहीं थे। कहीं खुले में छोड़ देते थे। यह [[पर्यावरण]] के लिए हानिकारक था। मदन साहब ने इच्छापत्र लिखा कि मेरा शव जलाया जाएगा और कुछ भस्म को-ऑपरेटिव कालेज के प्रांगण में रखकर एक चबूतरा बना दिया जाएगा। मैं नई पीढ़ी के साथ सदा रहूंगा। आज भी उनकी समाधि कालेज परिसर में है। जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के संस्थापकों में मदन प्रमुख थे।