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[[चित्र:Werft.jpg|right|thumb|300px|जर्मनी का एक डॉकयार्ड]]
[[गोलाबारूद]], [[ईन्धन|ईंधन]] और माल की पूर्ति, कर्मिकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की व्यवस्था और [[जलयान|जहाजों]] की मरम्मत करने के लिए प्रत्येक [[नौसेना]] के वास्ते स्थायी '''डॉकयार्ड''' तथा अड्डों का होना परमावश्यक है। व्यापारी बेड़ों के लिए भी ऐसे अड्डे आवश्यक हैं, यद्यपि उन्हें विश्व के सभी बड़े व्यापारी बंदरगाह और मरम्मती अड्डों की सेवा उपलब्ध हो सकती है। किंतु आधुनिक अर्थों में डॉकयार्ड रणपोतों का निर्माण और देखभाल करनेवाली राष्ट्रीय संस्था है। डॉकयार्ड में रणपोत का निर्माण, साजसज्जा और उसे डॉक में ले जाने की सारी सुविधाएँ होती हैं। यहाँ गोलाबारूद और शस्त्रास्त्रों के निर्माण तथा उनकी पूर्ति की ओर कर्मिकों के लिए बिसातबान, आहार, प्रशिक्षण, चिकित्सा आदि की व्यवस्थाएँ होती हैं। पूर्ण रूप से सुसज्जित डॉकयार्ड कम ही होते हैं और उनमें भी कुछ ही डॉकों में रणपोतों का वास्तविक निर्माण होता है। प्राय: सभी राजकीय डॉकयार्ड नए जहाजों को सुसज्जित करने, युद्धपोतों को युद्ध के लिए तैयार करने तथा जहाजी बेड़ों की देखभाल का काम करते हैं। प्राय: सभी देशों में तोप, कवच, इंजन, बॉयलर आदि का निर्माण व्यवसाय संघ करते हैं और अंतिम अवस्था तक जहाज का निर्माण कर समापन के लिए उसे सरकारी संस्थाओं को दे देते हैं। कुछ डॉकयार्डों में जहाज के निर्माण की कोई विशेष सुविधा नहीं रहती, पर उनमें बड़े-बड़े पोतों की देखभाल के लिए पूरी व्यवस्था रहती है। कुछ छोटे डॉकयार्ड साधारण मरम्मत, गोलाबारूद, इर्धंन और भंडार की पूर्ति करते हैं। ये वस्तुत: इर्धंन प्रदान करनेवाले सुदृढ़ नौसैनिक अड्डे होते हैं।
 
सभी राजकीय डॉकयार्ड नौसैनिक अड्डे होते हैं, किंतु सभी नौसैनिक अड्डे डॉकयार्ड नहीं होते। आधुनिक बेड़ों के लिए अड्डों का होना आवश्यक है, जहाँ से वह अपना कार्य कर सकें। निरापद बंदरगाह अड्डे की प्राथमिक आवश्यकता है, जहाँ जहाज का सहायक जलयान पहुँचकर बिना किसी छेड़छाड़ के इर्धंन, गोलाबारूद और आवश्यक भंडार का पुनर्भरण कर सके। वहाँ श्रमिकों के विश्राम और मनोरंजन की व्यवस्था भी रहनी चाहिए। डॉकयार्ड या अड्डे को पनडुब्बी, तारपीडो और हवाई आक्रमणों से बचाने के लिए पर्याप्त रक्षासेनाओं की स्थायी व्यवस्था रहती है। समुद्री प्रभुता की रक्षा के लिए नियुक्त बेड़े की क्षमता पर ही डॉक या अड्डे की सुरक्षा निर्भर करती है।
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२०वीं शती के प्रारंभकाल में उत्तर सागर में जर्मनों के बढ़ते हुए संकट को रोकने के लिए, सुदूर उत्तर में पूर्वी तट पर, नया अड्डा बनाया गया, जहाँ पहुँचना चैटेम की अपेक्षा सरल था। १९०३ ई० में रोसाइथ (Rosyth) में नया अड्डा स्वीकृत हुआ, जो आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध में वरदान सिद्ध हुआ। १९३९ ई० में इसका बड़ी श्घ्रीाता से अधिक विस्तार हुआ।
 
[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] में [[इंग्लैण्ड|इंग्लैंड]] के अधीन रोसाइथ, पोर्टस्मथ, प्लिमथ, चैटेम और मॉल्टा अड्डे थे, जिनकी छोटी शाखाएँ शीरनेस, पोर्टलैंड, हॉलबोलिन (Haulbowline) और पेंब्रोक में थीं। जिब्रॉल्टर-हांगकांग, बरम्यूडा, साइमंज़टाउन और सिडनी के बड़े तथा कोलबों, वेहाइवे (चीन) और बंबई तथा कलकत्ते के छोटे अड्डे भी युद्ध में सहायक हुए।
 
[[द्वितीय विश्वयुद्ध|द्वितीय महायुद्ध]] छिड़ जाने पर वेहाइवे चीन के और हॉलबोलिन आयरलैंड के अधिकार में चला गया। शेष सब अड्डे अंग्रेज़ों के अधीन रहे। जापान के आक्रमण को रोकने के लिए सिंगापुर में एक विशाल डॉकयार्ड स्थापित हुआ, किंतु वह शीघ्र ही हाथ से निकल गया। युद्धकाल में स्कॉटलैंड, मिस्त्र, पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका, लंका और आस्ट्रेलिया में नए अड्डों का निर्माण हुआ तथा बंबई, कलकत्ता, विशाखपटणम्‌, केपटाउन और मैडागैस्कर के अड्डों में अधिक सुविधाओं की व्यवस्था हुई।
 
द्वितीय युद्धकाल में प्रशांत महासागर में तैरते अड्डों की स्थापना से अड्डों में नया विकास हुआ, जिससे बेड़ा महीनों तक समुद्र में रह सकता है। ऐसे अड्डों में तैरती कर्मशाला (workshop), भंडार, सब प्रकार के वाहक, छोटे जलयानों के लिए डॉक का काम करनेवाले लघु जहाज, स्नेहकयान, सुख सुविधा के सामानवाले जहाज, जिनमें सुराशालाएँ भी सम्मिलित हैं, आदि होते थे। युद्धसमाप्ति के बाद अनेक अस्थायी, अड्डे बंद हो गए, पर डोमिनियन नौसेना और राष्ट्रमंडल के अड्डों के विकास के लिए नए विकास प्रयास चलते रहे।