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'''वात्स्यायन''' या '''मल्लंग वात्स्यायन''' [[भारत]] के एक प्राचीन [[दार्शनिक]] थे। जिनका समय [[गुप्त राजवंश|गुप्तवंश]] के समय (६ठी शताब्दी से ८वीं शताब्दी ) माना जाता है। उन्होने [[कामसूत्र]] एवं न्यायसूत्रभाष्य की रचना की। महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान [[चाणक्य|कौटिल्य]] का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है। वह भारत में दूसरी या तीसरी शताब्दी के दौरान थे, शायद पाटलिपुत्र (आधुनिक [[पटना]]) में।<ref>{{cite web|url=https://khabar.ndtv.com/news/zara-hatke/bihar-diwas-pm-modi-bihar-cm-nitish-kumar-wishes-bihar-diwas-know-facts-about-bihar-2011406|title=Bihar Diwas: 107 साल का हुआ बिहार, जानिए इस राज्य से जुड़ी 13 खास बातें}}</ref>
 
==कामसूत्र के रचयिता वात्स्यायन==
[[चाणक्य]] और [[वात्स्यायन]] के जीवन, स्थिति काल और नामकरण पर अतीत काल से मतभेद चला आ रहा है। हेमचन्द्र, वैजयन्ती, त्रिकाण्ड शेष और नाममालिका कोशों में कौटल्य और वात्स्यायन - ये नाम एक ही व्यक्ति के माने गए हैं। इनके अतिरिक्त चाणक्य, विष्णुगुप्त, मल्लनाग, पक्षिलस्वामी, द्वामिल या द्रोमिण, वररुचि, मेयजित्, पुनर्वसु और अंगुल नाम भी इन्हीं के साथ जोड़े गए हैं।
 
[[हिन्दी विश्वकोश]] ( पृ० २७४ ) में [[कामन्दकीय नीतिसार|नीतिसार]] के रचयिता [[कामन्दकीय नीतिसार|कामन्दक]] को चाणक्य (कौटल्य) का प्रधान शिष्य कहा गया है। कोशकारों के मत से कामन्दक ही वात्स्यायन था और कामन्दक-नीतिसार में उन्होंने प्रारम्भ में ही कौटल्य का अभिनन्दन कर उनके [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]] के आधार पर नीतिसार लिखने की बात कही है। इसके विपरीत कामन्दकीय नीतिसार की उपाध्याय-निरपेक्षिणी टीका के रचयिता ने कौटल्य ही को न्यायभाष्य, कौटल्य भाष्य ( अर्थशास्त्र ), वात्स्यायनभाष्य और गौतमस्मृतिभाष्य- इन चार [[भाष्य]]ग्रन्थों को रचयिता माना है। यदि हम कामन्दकीय नीतिसार एवं [[गौतम धर्मसूत्र|गौतमधर्मसूत्र]] के मस्करी भाष्य को देखते हैं तो कौटल्य के लिए 'एकाकी’ और ‘असहाय' विशेषणों के प्रयोग मिलते हैं।
 
[[सुबन्धु]] द्वारा रचित [[वासवदत्ता]] में कामसूत्रकार को नाम 'मल्लनाग' उल्लिखित है। कामसूत्र के लब्धप्रतिष्ठ जयमङ्गला टीकाकार [[यशोधर पंडित|यशोधर]] ने वात्स्यायन का वास्तविक नाम मल्लनाग माना है। इस प्रकार कौटल्य, वररुचि, मल्लनाग सभी को वात्स्यायन कहा जाता है। अभी तक यह निर्णय नहीं किया जा सका है कि वात्स्यायन कौन थे। न्यायभाष्यकर्ता वात्स्यायन और कामसूत्रकार वात्स्यायन एक ही थे, या भिन्न-भिन्न।
 
जिस प्रकार वात्स्यायन के नामकरण पर मतभेद है उसी प्रकार उनके स्थितिकाल में भी अनेक मतवाद और प्रवाद प्रचलित हैं और कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जीवनकाल ६०० ईसापूर्व तक पहुँचता है।<ref>Karl H. Potter (1970). [https://books.google.com/books?id=Bo0FeYVcOmUC&pg=PA239 The Encyclopedia of Indian Philosophies: Indian metaphysics and epistemology]. Motilal Banarsidass. p. 239. ISBN 978-81-208-0309-1.</ref> आधुनिक इतिहासकारों में म० म० [[हरप्रसाद शास्त्री]] वात्स्यायन को ईसवी पहली शताब्दी का मानने का आग्रह करते हैं किन्तु शेष प्रायः सभी मूर्द्धन्य इतिहासकारों में कुछ तो तीसरी शती और कुछ चौथी शती स्वीकार करते हैं।
 
[[सूर्य नारायण व्यास|सूर्यनारायण व्यास]] ने [[कालिदास]] और वात्स्यायन के कृतित्व की तुलना करते हुए वात्स्यायन को कालिदास के बाद ईसवी पूर्व प्रथम शती की माना है। व्यासजी ने ऐतिहासिक और आभ्यन्तरिक अनेक प्रमाणों द्वारा अपने मत की पुष्टि की है किन्तु उन्होंने वात्स्यायन नाम के पर्यायों की ओर कोई संकेत नहीं किया है।
 
==सन्दर्भ==