"दादासाहब फालके": अवतरणों में अंतर

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| birth_name = धुंडीराज गोविंद फाल्के
| birth_date = 30th April 1870
| birth_place = [[त्रंबक]], [[बंबई प्रेसीडेंसी|बॉम्बे प्रेसिडेंसी]], [[ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी और प्रांत|ब्रिटिश भारत]]
| death_date = {{Death date and age|df=yes|1944|2|16|1870|4|30}}
| death_place = [[नासिक]], [[बंबई प्रेसीडेंसी|बॉम्बे प्रेसिडेंसी]], [[ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी और प्रांत|ब्रिटिश भारत]]
| occupation = फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक
| years_active = १९१३ - १९३७
| spouse =
| alma_mater = [[सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट]]<ref>{{cite web|url=http://www.fortunecity.com/athena/ginsberg/2197/id61.htm |title=Dada Saheb Phalke – A Distinguished Student of Kalabhavan |publisher=Fortunecity.com |date=16 February 1944 |accessdate=5 January 2012 |url-status=dead |archiveurl=https://web.archive.org/web/20120315014405/http://www.fortunecity.com/athena/ginsberg/2197/id61.htm |archivedate=15 March 2012 |df=dmy }}</ref>,
[[वड़ोदरा|बड़ौदा]] के [[महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय]]
| children =
| homepage =
}}
''' धुंडिराज गोविन्द फालके''' उपाख्य '''दादासाहब फालके''' ([[मराठी भाषा|मराठी]] : दादासाहेब फाळके) (३० अप्रैल १८७० - १६ फ़रवरी १९४४) वह महापुरुष हैं जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह' कहा जाता है। <ref>{{cite book|url=https://books.google.com/books/about/Dadasaheb_Phalke_the_father_of_Indian_ci.html?id=zTZnAAAAMAAJ&redir_esc=y |title=Dadasaheb Phalke, the father of Indian cinema – Bāpū Vāṭave, National Book Trust – Google Books |publisher=Books.google.co.in |date= |accessdate=17 November 2012}}</ref><ref>{{cite news|author=Sachin Sharma, TNN 28 June 2012, 03.36AM IST |url=http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-06-28/vadodara/32456429_1_godhra-dadasaheb-phalke-father-of-indian-cinema |title=Godhra forgets its days spent with Dadasaheb Phalke – Times of India |publisher=Articles.timesofindia.indiatimes.com |date=28 June 2012 |accessdate=17 November 2012}}</ref><ref>{{cite book|last=Vilanilam|first=J. V.|title=Mass Communication in India: A Sociological Perspective|year=2005|publisher=Sage Publications|location=New Delhi|isbn=81-7829-515-6|page=128|url=https://books.google.com/books?id=XBU6pN7toHsC&pg=PA128&dq=dadasaheb+phalke+father+indian+cinema#v=onepage&q=dadasaheb%20phalke%20father%20indian%20cinema&f=false}}</ref>
 
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन [[वड़ोदरा|बड़ौदा]] से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था। उन्होंने फोटो केमिकल प्रिंटिंग की प्रक्रिया में भी प्रयोग किये थे। प्रिंटिंग के जिस कारोबार में वह लगे हुए थे, 1910 में उनके एक साझेदार ने उससे अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया। उस समय इनकी उम्र 40 वर्ष की थी कारोबार में हुई हानि से उनका स्वभाव चिड़िचड़ा हो गया था। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी। उनके पास सभी तरह का हुनर था। वह नए-नए प्रयोग करते थे। अतः प्रशिक्षण का लाभ उठाकर और अपनी स्वभावगत प्रकृति के चलते प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का असंभव कार्य करनेवाले वह पहले व्यक्ति बने।
 
उन्होंने 5 पौंड में एक सस्ता कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया। फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किये। ऐसे उन्माद से काम करने का प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा। उनकी एक आंख जाती रही। उस समय उनकी पत्नी सरस्वती बाई ने उनका साथ दिया। सामाजिक निष्कासन और सामाजिक गुस्से को चुनौती देते हुए उन्होंने अपने जेवर गिरवी रख दिये (40 साल बाद यही काम सत्यजित राय की पत्नी ने उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ बनाने के लिए किया)। उनके अपने मित्र ही उनके पहले आलोचक थे। अतः अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बर्तन में मटर बोई। फिर इसके बढ़ने की प्रक्रिया को एक समय में एक फ्रेम खींचकर साधारण कैमरे से उतारा। इसके लिए उन्होंने टाइमैप्स फोटोग्राफी की तकनीक इस्तेमाल की। इस तरह से बनी अपनी पत्नी की जीवन बीमा पॉलिसी गिरवी रखकर, ऊंची ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने में वह सफल रहे।
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फरवरी 1912 में, फिल्म प्रोडक्शन में एक क्रैश-कोर्स करने के लिए वह इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा। कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में मदद की। इन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी। चूंकि उस दौर में उनके सामने कोई और मानक नहीं थे, अतः सब कामचलाऊ व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी पड़ी। अभिनय करना सिखाना पड़ा, दृश्य लिखने पड़े, फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी करने पड़े। महिला कलाकार उपलब्ध न होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे (वेश्या चरित्र को छोड़कर)। होटल का एक पुरुष रसोइया सालुंके ने भारतीय फिल्म की पहली नायिका की भूमिका की। शुरू में शूटिंग दादर के एक स्टूडियो में सेट बनाकर की गई। सभी शूटिंग दिन की रोशनी में की गई क्योंकि वह एक्सपोज्ड फुटेज को रात में डेवलप करते थे और प्रिंट करते थे (अपनी पत्नी की सहायता से)। छह माह में 3700 फीट की लंबी फिल्म तैयार हुई। 21 अप्रैल 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में यह रिलीज की गई। पश्चिमी फिल्म के नकचढ़े दर्शकों ने ही नहीं, बल्कि प्रेस ने भी इसकी उपेक्षा की। लेकिन फालके जानते थे कि वे आम जनता के लिए अपनी फिल्म बना रहे हैं, अतः यह फिल्म जबरदस्त हिट रही।<ref>{{cite news|author=PTI |url=http://timesofindia.indiatimes.com/news/india/Harishchandrachi-Factory-Indias-entry-for-Oscars/articleshow/5033889.cms |title='Harishchandrachi Factory' India's entry for Oscars – Times of India |publisher=Timesofindia.indiatimes.com |date=20 September 2009 |accessdate=17 November 2012}}</ref><ref>{{cite web|author=Express News Service |url=http://www.expressindia.com/latest-news/harishchandrachi-factory-to-tell-story-behind-making-of-indias-first-feature-film/304892/ |title=Harishchandrachi Factory to tell story behind making of India's first feature film |publisher=Express India |date= |accessdate=17 November 2012 |url-status=dead |archiveurl=https://web.archive.org/web/20120930065757/http://www.expressindia.com/latest-news/harishchandrachi-factory-to-tell-story-behind-making-of-indias-first-feature-film/304892/ |archivedate=30 September 2012 |df=dmy }}</ref>
 
फालके के फिल्मनिर्मिती के प्रयास तथा पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण पर [[मराठी भाषा|मराठी]] में एक फिचर फिल्म 'हरिश्चंद्राची फॅक्टरी' २००९ में बनी, जिसे देश विदेश में सराहा गया।
 
== Dada Saheb Phalke जीवन परिचय ==
दादासाहब फालके का पूरा नाम धुंडीराज गोविन्द फालके है और इनका जन्म महाराष्ट्र के नाशिक शहर (प्रसिद्ध तीर्थ) से लगभग २०-२५ किमी की दूरी पर स्थित बाबा भोलेनाथ की नगरी त्र्यंबकेश्वर (यहाँ प्रसिद्ध शिवलिंगों में से एक स्थित भी है) में ३० अप्रैल १८७० ई. को हुआ था। इनके पिता [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के प्रकांड पंडित थे और मुम्बई के एलफिंस्तन कालेज में प्राध्यापक थे। इस कारण दादासाहब की शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में ही हुई। २५ दिसम्बर १८९१ की बात है, मुम्बई में 'अमेरिका-इंडिया थिएटर' में एक विदेशी मूक चलचित्र "लाइफ ऑफ क्राइस्ट" दिखाया जा रहा था और दादासाहब भी यह चलचित्र देख रहे थे। चलचित्र देखते समय दादासाहब को प्रभु ईसामसीह के स्थान पर कृष्ण, राम, समर्थ गुरु रामदास, शिवाजी, संत तुकाराम इत्यादि महान विभूतियाँ दिखाई दे रही थीं। उन्होंने सोचा क्यों नहीं चलचित्र के माध्यम से भारतीय महान विभूतियों के चरित्र को चित्रित किया जाए। उन्होंने इस चलचित्र को कई बार देखा और फिर क्या, उनके हृदय में चलचित्र-निर्माण का अंकुर फूट पड़ा।
 
उनमें चलचित्र-निर्माण की ललक इतनी बड़ गई कि उन्होंने चलचित्र-निर्माण संबंधी कई पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन किया और कैमरा लेकर चित्र खींचना भी शुरु कर दिया।